लखीसराय. आंगनबाड़ी केंद्रों के लिए पोशाक की सिलाई एवं आपूर्ति के लिए आयोजित सात दिवसीय सिलाई-कटाई प्रशिक्षण कार्यक्रम का सोमवार को समापन हो गया. जिला के सात में छह प्रखंडों के कुल 11 प्रशिक्षण कार्यक्रम यथा बड़हिया, रामगढ़ चौक, हलसी, लखीसराय सदर, चानन एवं सूर्यगढ़ा में सात दिन से जारी था. बाढ़ के कारण पिपरिया में सिलाई-कटाई प्रशिक्षण शुरू नहीं हो पाया है. छह प्रखंडों में तीन सौ से अधिक महिलाओं को पोशाक सिलाई के लिए प्रशिक्षकों ने प्रशिक्षण दिया है. प्रति प्रशिक्षण केंद्र सिलाई कटाई की एक विशेषज्ञ महिला दर्जी ने प्रशिक्षणार्थियों को प्रशिक्षण दिया है. इस दौरान संकुल स्तरीय संघ द्वारा पोशाक सिलाई के लिए कपड़े उपलब्ध कराये गये थे. जीविका के गैर कृषि प्रबंधक निशिकांत पटेल ने बताया कि प्रशिक्षण में निपुण महिलाओं को ही सिलाई-कटाई कार्य के लिए चयनित किया जायेगा और उन्हें मानक के अनुरूप मेहनताना मिलेगा. सभी सिलाई केंद्र सह वस्त्र उत्पादक केंद्र जीविका से संबद्ध संकुल स्तरीय संघ द्वारा संचालित हैं और संघ द्वारा ही सिलाई-कटाई प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया था. जीविका से संबद्ध संकुल स्तरीय संघ द्वारा सिलाई केंद्रों के संचालन का उद्देश्य ग्रामीण महिलाओं को स्वावलंबी बनाना और उन्हें रोजगार के नये अवसर प्रदान करना है. इन सिलाई केंद्रों से आंगनबाड़ी केंद्रों पर पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं के लिए ड्रेस की सिलाई होगी और मांग के अनुरूप आपूर्ति की जायेगी. दरअसल आंगनबाड़ी केंदों को शिक्षा ग्रहण करने आने वे छात्र-छात्राओं को पोशाक उपलब्ध कराने के उद्देश्य से एक जुलाई 2025 को बिहार सरकार के जीविका, ग्रामीण विकास विभाग एवं समेकित बाल विकास सेवा, समाज कल्याण विभाग के बीच एक समझौता ज्ञापन हस्ताक्षर हुआ है. सिलाई कटाई में निपुण होने के बाद जीविका दीदियों द्वारा निर्मित परिधानों को आंगनबाड़ी केंद्रों में मांग के अनुरूप आपूर्ति की जायेगी. सिलाई केंद्रों से होनेवाली आमदनी से जीविका दीदियों को जीविकोपार्जन मिलेगा और जीवन जीने का नया आधार भी मिलेगा. सिलाई केंद्रों पर प्रशिक्षण प्राप्त कर रही महिलाओं ने बताया कि उनके पुश्तैनी हुनर को जीविका ने मान-सम्मान दिया है. अब वो बड़े स्तर पर कपड़े का उत्पादन करेंगी और उनकी आमदनी भी बढ़ेगी तथा समाज में मान सम्मान भी मिलेगा.
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