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माघी पूर्णिमा को ले हिंदू मिलन मंदिर की गयी विशेष पूजा-अर्चना

ठाकुरगंज आश्रम पाडा में अवस्थित हिन्दू मिलन मंदिर में माघी पूर्णिमा के अवसर पर बुधवार को फटिक महाराज के नेतृत्व में विशेष पूजा अर्चना की गयी.

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ठाकुरगंज. ठाकुरगंज आश्रम पाडा में अवस्थित हिन्दू मिलन मंदिर में माघी पूर्णिमा के अवसर पर बुधवार को फटिक महाराज के नेतृत्व में विशेष पूजा अर्चना की गयी. इस मौके पर पूरा मंदिर परिसर गीता पाठ और चंडी पाठ के वैदिक मंत्रों से गुंजायमान रहा. पूजन के दौरान फटिक महाराज ने माघी पूर्णिमा के महत्व पर प्रकाश डाला और कहा हिंदू धर्म में माघी पूर्णिमा का बहुत अधिक महत्व है. शास्त्रों में माघ स्नान और व्रत की महिमा बतायी गई है. इस दिन लोग पवित्र नदी में स्नान करके पूजा पाठ और दान करते हैं . वास्तव में माघी पूर्णिमा माघ मास का आखिरी दिन है और इसके ठीक अगले दिन से ही फाल्गुन की शुरूआत होती है. उन्होंने कहा की साल में शरद पूर्णिमा सहित अन्य कई पूर्णिमा पड़ती है लेकिन इन सभी में माघी पूर्णिमा का विशेष महत्व है. शास्त्रों में लिखा गया है कि माघी पूर्णिमा पर विधि विधान से पूजा करना काफी फलदायक होता है . अपने सामर्थ्य के अनुसार लोग साधु, सन्यासियों, ब्राह्मणों और गरीबों को दान करते हैं . माना जाता है कि माघी पूर्णिमा पर भगवान विष्णु स्वयं गंगाजल में निवास करते हैं इसलिए गंगाजल में स्नान और आचमन करना फलदायी होता है. माघी पूर्णिमा पर पितरों को श्राद्ध देना चाहिए. इस दिन देवता रूप बदलकर गंगा में स्नान करने धरती पर उतरते हैं और हर मनुष्य का कल्याण करते हैं. इस शुभ अवसर पर तिल, कम्बल, कपास, गुड़, घी, मोदक, फल, चरण पादुकाएं, अन्न का दान करना फलदायक होता है. इस कार्यक्रम का संचालन प्रदीप दत्ता ने किया. इस मौके पर आयोजित भक्ति संगीत कार्यक्रम , होम , आरती के साथ प्रसाद वितरण का कार्यक्रम भी आयोजित किया गया.

मनाया गया स्वामी प्रणवानन्द का जन्मदिन

स्वामी प्रणवानंद का जन्म बुधवार माघी पूर्णिमा के दिन 29 जनवरी 1896 को बंग-भूमि के फरीदपुर जनपद के वाजितपुर गांव में हुआ था. फरीदपुर वर्तमान में बांग्लादेश में मदारीपुर जनपद के नाम से जाना जाता है. अन्नप्राशन के बाद घरवालों न उनका नाम ””विनोद”” रख दिया.

माघी पूर्णिमा के दिन ही प्राप्ति हुई थी योग सिद्धि

1916 में वाजितपुर ग्राम की श्मशान-भूमि पर स्वामी प्रणवानंद को कदंब वृक्ष के सानिध्य में साधनारत रहते हुए योग सिद्धि की प्राप्ति हुई थी. इस दिन भी माघी पूर्णिमा थी. योग-सिद्धि की प्राप्ति होते ही उनके मुख से नवजागरणरूपी यह सूत्र स्वत: ही प्रस्फुटित हुए थे- ””यह युग महाजागरण का है, यह युग है महामिलन का, यह युग है महासमन्वय तथा महामुक्ति का.”” जन-जागरण एवं नव-जागरण के इन मंत्र-सूत्रों को चरितार्थ करने के लिए स्वामी प्रणवानंद एक व्रती-तपस्वी के रूप में समर्पित हो गए थे.

1924 में प्रयागराज के अद्र्ध कुंभ में गुरु से हुए थे दीक्षित, मिला था नया नाम

स्वामी प्रणवानंद 1924 में प्रयाग पधारे थे. वे यहां आचार्य विनोद के रूप में आए थे. तब प्रयाग में अद्र्ध कुंभ पड़ा था. अद्र्ध कुंभ में माघी पूर्णिमा के दिन स्वामी गोविंदानंद गिरि जी महाराज ने नवयुवक आचार्य विनोद को संन्यास की दीक्षा दी. उन्होंने आचार्य विनोद को दीक्षित कर नया नाम स्वामी प्रणवानंद दिया.

जीवन में जुड़े हैं कई दुर्लभ संयोग, की थी भारत सेवाश्रम संघ की स्थापना

स्वामी प्रणवानंद विलक्षण प्रतिभा संपन्न युगपुरुष थे. उनके जीवन-दर्शन के साथ अनेक दुर्लभ संयोग जुड़े रहे. उन्होंने 1917 में वाजितपुर में माघी पूॢणमा के ही दिन भारत सेवाश्रम संघ की स्थापना की थी. उन्हेंं युग-संतों का प्रेरक सानिध्य प्राप्त हुआ. उन्हेंं 1913 में एकादशी पर गुरु गोरखनाथ की साधना-स्थली गोरक्षपीठ में योगिराज स्वामी गंभीरनाथ से दीक्षित होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. उन्होंने अपने तपस्वी जीवन और अपने चिंतन-मनन को अक्षरश: मानव-सेवा में ही समॢपत कर दिया.

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