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मुहर्रम में रोजा रखें व नमाज पढ़ें : मौलाना सईदुर्रहमान मुहर्रम पर विशेष

छत्तरगाछ : आज से 1377 वर्ष पूर्व 61 हिजरी मुहर्रम की दसवीं तारीख जुमा के दिन जुमा की नमाज के समय हजरत इमाम हुसैन को इराक के सरमजीन कुफा के करबला मैदान में यजीदी फौजों के द्वारा शहीद कर दिया गया था़ उसी की याद में मुस्लिम समुदाय के लोग प्रत्येक वर्ष दसवीं मुहर्रम को […]

छत्तरगाछ : आज से 1377 वर्ष पूर्व 61 हिजरी मुहर्रम की दसवीं तारीख जुमा के दिन जुमा की नमाज के समय हजरत इमाम हुसैन को इराक के सरमजीन कुफा के करबला मैदान में यजीदी फौजों के द्वारा शहीद कर दिया गया था़ उसी की याद में मुस्लिम समुदाय के लोग प्रत्येक वर्ष दसवीं मुहर्रम को नमाज पढ़ते हैं तथा रोजा भी रखते है़ं

इस्लामी कैलेंडर के मुताबिक दसवीं मुहर्रम 12 अक्तूबर को है़ गौसिया जामा मस्जिद के इमाम मौलाना सईदुर्रहमान ने बताया कि नबी के नवासे हजरत इमाम हुसैन को यजीद पलीद ने 150 खतों को भेज कर मदीना के सरजमीन से इराक के सरजमीन करबला मैदान में बतौर तबलीग ए हक के लिए बुलाये गये़ परंतु मेहमान बुला कर बेदर्दी से उनके नौनिहालों को शहीद किया गया था़ बाद में हजरत इमाम हुसैन को भी शहीद कर दिया गया़

मौलाना रहमान ने बताया कि शब ए आसुरा को चार रकअत नफल नमाज पढ़े और हर रकअत में एक बार सुरह फातेहा और पचास दफा सुरह अखलास पढ़े तो अल्लाह तबारक ताला इस नमाज के सदके पिछले पचास वर्षो तथा अगले 50 वर्षों के गुनाहों को माफ फरमायेंगे़ कस्बा कलियागंज पंचायत के पीर पोखर निवासी मौलाना अमीर उद्दीन कहते हैं कि करबला इराक देश के उस जगह का नाम है जहां पर हजरत इमाम हुसैन अपने अहलो आलो के साथ यजीदी फौजों के जरिये शहीद किये गये थे़ मुसलमानों को चाहिए कि दसवीं मुहर्रम को रोजा रखें और रात को नमाज पढ़ें. मदरसा फिदाउल मुस्लेमिन अठियाबाड़ी के प्रधान मौलवी सईदुर्रहमान कहते हैं कि मुहर्रम माह की काफी फजिलयत व बरकत है़ इस्लामी साल की शुरुआत मुहर्रम माह से होता है़

हदीस ए पाक में है कि मुहर्रम अल्लाह के लिए है़ इसकी जाजिम करो, जिनसे मुहर्रम माह की कदर की तो अल्लाह तबारक व ताला उन्हें जन्नत में जगह अता फरमायेंगे और दोजख से निजात देगी़ मदरसा इसलामिया मकतुबिया नवनदी के प्रधान मौलवी मो इदरीश आलम ने बताया कि हजरत इब्राहीम अलैहे सलाम को अतिश ए नमरूह से निजात आसुरा के दी बख्शी गयी़

फिर उनको आसुरा के दिन गरकाब किया गया था़ हजरत इसा अलैहे सलाम को आसुरा के दिन ही आसमान पर उठाया गया था़ हजरत दाउद अलैहे सलाम की तौबा भी इसी दिन कबूल हुई थी़ इसलिए हर मुसलमानों को चाहिए कि आसुरा के दिन इबादत करे़ं

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