दिघलबैंक प्रखंड मुख्यालय के लोगों को शुद्ध पेयजल आपूर्ति करने को लेकर 2011 में जलमीनार का निर्माण कराया गया था, लेकिन इस जलमीनार से आज तक एक बूंद पानी लोगों को नहीं िमल पाया है.
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बीत गये पांच साल,नहीं िमला जलमीनार से जल
दिघलबैंक प्रखंड मुख्यालय के लोगों को शुद्ध पेयजल आपूर्ति करने को लेकर 2011 में जलमीनार का निर्माण कराया गया था, लेकिन इस जलमीनार से आज तक एक बूंद पानी लोगों को नहीं िमल पाया है. दिघलबैंक : काला पानी के नाम से पहचान रखने वाले इस क्षेत्र के आम लोगों को शुद्ध पेयजल मुहैया कराये […]
दिघलबैंक : काला पानी के नाम से पहचान रखने वाले इस क्षेत्र के आम लोगों को शुद्ध पेयजल मुहैया कराये जाने के उद्देश्य से दिघलबैंक प्रखंड मुख्यालय में करोड़ों की लागत से बना जलमीनार लोगों का मुंह चिढ़ा रहा है. यह जलमीनार ग्रामीण जलापूर्ति योजना (पीएचइडी) के तहत एक करोड़ रुपये की लागत से वर्ष 2011 में बनाया गया था. लगभग छह साल बीत जाने के बाद भी प्रखंड के लोगों को अब तक इस जल मीनार से एक बूंद भी शुद्ध पेयजल नसीब नहीं हो पाया है.
शुद्ध पेयजल के लिए लालायित लोग वर्षों पूर्व प्रखंड मुख्यालय में जलमीनार के बनने के बाद उत्साहित थे, लेकिन विभागीय उदासीनता के कारण यह जलमीनार प्रखंडवासियों के लिए महज शोभा की वस्तु बन कर रह गया है. पांच वर्ष पूर्व बना जलमीनार बेकार साबित हो रहा है. गौरतलब हो कि प्रखंड के टप्पू हाट, मंगुरा सहित क्षेत्र के हजारों की आबादी को स्वच्छ जल की आपूर्ति को लेकर सरकार व विभागीय प्रयास से ग्रामीण जल आपूर्ति योजना तहत वर्ष 2011 में करोड़ से अधिक की राशि खर्च कर जलमीनार बनवाया गया. लेकिन परिणाम ढाक के तीन पात ही साबित हो रहा है. ऐसी बात नहीं है कि उक्त जलमीनार से उपलब्ध कराये जाने वाली सेवा के मामले की जानकारी संबंधित विभाग को नहीं हैं. लेकिन विभागीय उदासीनता के कारण लोगों को समुचित योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है.
सही तरीके से नहीं बिछाया पाइप, लगा ठीक से नल: शुद्ध पेयजल के लिए जलमीनार के निर्माण के साथ-साथ क्षेत्र भर में पाइप भी बिछायी गयी. साथ ही दर्जनों स्थानों सहित सार्वजनिक स्थलों पर पक्कीकरण का कार्य कर नलका भी लगाया गया कि स्थानीय लोग सहित आवाजाही करने वालों लोगों को भी स्वच्छ व आयरन मुक्त पानी उपलब्ध हो सके. लेकिन संबंधित विभाग द्वारा उक्त सभी नलका का समुचित रख रखाव नहीं कराये जाने के कारण पाइप सहित नलका जहां जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है. वहीं कई स्थानों पर नलका टूट गये हैं एवं कई नलका जंग के हवाले हो चुका है.
क्या कहते हैं ग्रामीण
स्थानीय ग्रामीण रामेश्वर लाल गणेश ने बताया कि जलमीनार के निर्माण के बाद लोगों को स्वच्छ पानी पीने की उत्सुकता जगी और पंचायत के दर्जनों लोग स्वच्छ पानी के लिए विभागीय चक्कर भी काटने लगे, लेकिन विभागीय शिथिलता के कारण कनेक्शन तो दूर, जगह जगह सड़क के किनारे बनाया गया स्टैंड पोस्ट भी खंडहर हो गया है.
विमलेश कुमार बताते हैं कि इस जलमीनार से न सिर्फ लोगों को स्वच्छ पानी की आस पर पानी फिरा. बल्कि करोड़ों की लागत से बनाया गया जलमीनार शोभा की वस्तु मात्र बन कर रह गया.
रामेश्वर भगत ने कहा प्रखंड में प्रतिदिन काफी संख्या में दूर दराज से लोग आते हैं. पेयजलापूर्ति ठप होने के कारण वह खरीद कर पानी पीने को मजबूर हैं. यहां आने वाले और इसके आस-पास बसे लोग दूषित पानी उपयोग करने को विवश हैं.
तरुण कुमार पूर्वे ने बताया कि जलमीनार रहने के बावजूद लोग आज भी अपने बाहुबल से पाताल से पानी खींचते हैं और वह पानी मानक के अनुरूप पीने लायक हो या नहीं हो वही पीकर अपनी प्यास बुझाते हैं. बाजार लोगों की इस लाचारी को देखते हुए इसे व्यापार का रूप दे दिया है और जल का कारोबार फल-फूल रहा है.
देव शंकर यादव ने बताया कि जलमीनार बनने के बाद टप्पू बाजार एवं गांव में पानी सप्लाई के लिए पाइप बिछाया गया. कई जगहों पर नल लगाये गये परंतु पानी की सप्लाई संभव नहीं हो सकी.
कमल कुमार अग्रवाल पानी की आस में नागरिकों के कंठ सूखने लगे है. जलमीनार के पास ही प्रखंड सह अंचल कार्यालय है परंतु अधिकारियों का ध्यान इस पर नहीं जाता है.
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