शंभुगंज : अंग क्षेत्र में धार्मिक पर्यटन स्थल व तांत्रिक शक्तिपीठ के नाम से सुप्रसिद्ध हरिवंशपुर तिलडीहा दुर्गा मंदिर की ख्याति वर्तमान में पूरे देश स्तर पर फैली हुई है. इस मंदिर की स्थापना चार सौ वर्ष पूर्व बंगाल राज्य के नदिया शांतिपुर जिले के दालपोसा गांव के हरवल्लव दास ने तांत्रिक विधि से बदुआ नदी के किनारे श्मशान घाट में किया था. वर्तमान में उन्हीं के वंशज मंदिर के मेढ़पति योगेश चंद दास है. यहां मां दुर्गा की खड़ग, शंख चक्र गदा आदि प्राचीन काल का ही है.
जहां पहली बलि मां भगवती को बंद कमरे में इसी खड़ग से दिया जाता है. यहां एक ही मेढ़ पर कृष्ण, काली, भगवती, लक्ष्मी, सरस्वती, गणेश, कार्तिक के साथ-साथ भगवान शंकर की प्रतिमा भी स्थापित किया जाता है, जो देश के गिने चुने स्थानों पर है. तिलडीहा दुर्गा मंदिर में गंगा जल से जलाभिषेक करने की बहुत पुरानी परंपरा है. हालांकि मेढ़पति परिवार के सदस्यों द्वारा प्रतिवर्ष शांति समिति की बैठक में जलाभिषेक पर रोक लगाने का प्रस्ताव किया जाता है.
लेकिन मेढ़पति के द्वारा इस पर पहल नहीं की जाती है. रोक के बावजूद श्रद्धालु मानने को तैयार नहीं है. श्रद्धालुओं का मानना है कि जो भक्त सच्ची निष्ठा के साथ तिलडीहा दुर्गा मंदिर में मां भगवती को जल सहित जलपात्र चढ़ाते हैं उनकी मांगी गयी मन्नतें शीघ्र पूरी होती है. इसी भक्ति में शक्ति को सुनकर नवरात्रा के प्रथम पूजा व अष्टमी को बिहार, झारखंड, बंगाल, यूपी, नेपाल आदि राज्यों से लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं. गुरुवार को सुल्तानगंज से तिलडीहा तक भक्तों को रैला एक समान था. श्रद्धालुओं के द्वारा मां दुर्गा के प्रति आस्था देखते ही बनती थी. जय दुर्गे के जय घोष से नया कांवरिया पैदल पथ गुंजाईमान हो रहा था.