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धूमधाम से मनाया गया आदिवासियों का दूसरा सबसे बड़ा बाहा पर्व

धूमधाम से मनाया गया आदिवासियों का दूसरा सबसे बड़ा बाहा पर्व

बलरामपुर गुरुवार को प्रखंड क्षेत्र में आदिवासी समाज के लोगों ने धूमधाम से बाहा पर्व मनाया. कहा जाता है कि सभी समाज अपने-अपने तरीकों से होली का पर्व मनाते हैं, लेकिन आदिवासियों की परंपरा इससे भिन्न और अनोखी है. दरअसल होली से एक दिन पूर्व आदिवासी समाज बाहा पर्व मनाता है. संताली आदिवासियों में बाहा पर्व का विशेष महत्व है. शरीफनगर वार्ड 14 के वार्ड सचिव चुन्नू मुर्मू बताते हैं कि बाहा का अर्थ होता है फूल.आदिवासी प्रकृति पूजक होते हैं. इस मौसम में प्रत्येक वृक्ष पर कपोल, फूल, मंजर और फल लगते हैं. बाहा पर्व तक पूरे फाल्गुन संताली न तो नए फूल खाते हैं न फल. होली के एक दिन पूर्व पारंपरिक तौर से बाहा पर्व मनाया जाता है. बाहा दरअसल चैत्र मास में मनाया जाने वाले पर्व दिशोम बाहा की शुरुआत है. होली से एक दिन पूर्व ग्राम देवता की पूजा होती है.सुबह में जाहेर थान में पांरपरिक पूजा होती है तो वहीं रात्रि में लोग जाहेर थान पहुंच कर मरांग बुरु से पूरे वर्ष अच्छी खेती और बीमारियों से रक्षा का आशीर्वाद मांगते हैं.इस दिन नायकी घर में जमीन पर सोते हैं. इससे पूर्व चूरुय चाली (गांव में भिक्षाटन) की जाती है. यहां से प्राप्त खाद्य सामग्री से खिचड़ी बनती है और यही प्रसाद स्वरूप पूरा गांव खाता है.परंपरा के अनुसार इस प्रसाद को महिलाएं नहीं खाती हैं. बाहा पर्व संताल आदिवासी का दूसरा सबसे बड़ा पर्व है. आदिकाल से ही संताल समाज का जुड़ाव प्रकृति के साथ रहा है. वह उन्हें ही भगवान मान कर पूजा करते आए हैं.बाहा पर्व फागुन महीने में मनाया जाता है. फागुन आते ही पेड़ों पर नए फूल और पत्तियां खिल उठते हैं. चारों ओर पक्षियां चहचहाने लगती है. ऐसे लगता है कि मानो प्रकृति मनुष्य के स्वागत के लिए तैयार है. पेड़ों से नए फल-फूल, जंगलों और पहाड़ों से लकड़ी लेने के पूर्व मरांग बुरू, जाहेर एरा, मोड़ें-तुरुय को, गोसांय एरा आदि का पूजा कर बाहा पर्व के रूप में मनाते हैं. तत्पश्चात जरूरत के हिसाब से प्रकृति का उपभोग करते हैं.कमल मुर्मू बताते हैं कि बाहा पर्व आदिवासियों के लिए प्राचीन परंपरा का प्रतीक है, जो प्रकृति की प्रेम और अभिवादन का प्रदर्शन करता है. यह आदिवासियों की संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो प्रकृति को देवता के रूप में मानता है. बाहा पर्व में आदिवासी समाज प्रकृति की उपासना करते हैं और उसका आभार व्यक्त करते हैं. बाहा पर्व संबलता, सामाजिक एकता और संगठन की भावना को प्रकट करता है. बाहा पर्व में समृद्धि, समरसता और समृद्ध जीवन की कामना की जाती है. वही शिबू मरांडी कहते हैं बाहा पर्व हमें प्रकृति से प्रेम करना सिखाता है. हमें अपने पर्यावरण के साथ संगठित रूप से रहने की आवश्यकता है. यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम प्राकृतिक संसाधनों का सही उपयोग करें और पर्यावरण की रक्षा करें.

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