हाल खेल का. पूर्णिया में चार बैडमिंटन कोर्ट, पर कटिहार में एक भी नहीं
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संसाधनों की कमी से जूझ रहे खिलाड़ी
हाल खेल का. पूर्णिया में चार बैडमिंटन कोर्ट, पर कटिहार में एक भी नहीं ओलिंपिक में बिहार के एक भी खिलाड़ी के शामिल नहीं होने पर आलोचना जरूर हुई, पर इसके बाद भी सरकार या प्रशासन के खेलों के प्रति रुचि नहीं दिखा रहा है. जिले में एक भी बैडमिंटन कोर्ट नहीं है. एकलव्य प्रशिक्षण […]
ओलिंपिक में बिहार के एक भी खिलाड़ी के शामिल नहीं होने पर आलोचना जरूर हुई, पर इसके बाद भी सरकार या प्रशासन के खेलों के प्रति रुचि नहीं दिखा रहा है. जिले में एक भी बैडमिंटन कोर्ट नहीं है. एकलव्य प्रशिक्षण केंद्र के लिए एक स्कूल नामित है, पर वह भी सिर्फ कागजों पर ही.
कटिहार : जिले में संसाधनों की कमी से खिलाड़ियों की प्रतिभाएं दम तोड़ रही हैं. इसका मुख्य कारण जनप्रतिनिधियों व जिला प्रशासन का खेल के प्रति उदासीन रवैया है. एक ओर साक्षी मल्लिक व पीवी सिंधु, दीपा कर्माकर जैसी खिलाड़ी ओलिंपिक में अपना परचम लहरा रहे हैं, वहीं जिले के खिलाड़ी प्रतिभा रहते हुए संसाधन के अभाव में गुमनाम होकर रह गये हैं. कारण, जिले में खेल के लिए आधारभूत संरचना तैयार नहीं है. राज्य सरकार की ओर से भी खिलाड़ियों को तैयार करने में दिलचस्पी नहीं दिखायी जा रही है. जिले में बैडमिंटन, एथलेटिक्स, फुटबॉल आदि खेलों की स्थिति डंवाडोल है. खिलाड़ी जब अपना दम दिखाने की कोशिश करते हैं, तो संसाधन के अभाव में उनकी प्रतिभा दम तोड़ देती है.
खेल चुके हैं राष्ट्रीय स्तर पर
जिले में बैडमिंटन के कई ऐसे खिलाड़ी हैं, जो राष्ट्रीय स्तर पर अपना परचम लहराये हैं. इनमें वर्षा कुमारी जूनियर नेशनल चैंपियनशिप, के झा दो बार जूनियर नेशनल, बासु कुमार जूनियर स्टेट खेल चुके हैं. ताज्जुब की बात है कि इनके खेलने के लिए जिले में एक भी बैडमिंटन कोर्ट नहीं है. कोर्ट नहीं रहने के बावजूद इन खिलाड़ियों ने अपने बल जिले का मान बढ़ाया. वहीं बगल के जिले पूर्णिया में चार-चार बैडमिंटन कोर्ट हैं. 22 खेल प्रशिक्षक भी हैं. पर, कटिहार में बैडमिंटन के खिलाड़ी तो हैं, लेकिन बैडमिंटन कोर्ट व प्रशिक्षकों की कमी से ये खिलाड़ी जूझ रहे हैं.
एथलेटिक्स का भी बुरा हाल : जिले में एथलेटिक्स खेल सिर्फ सुनने को मिल रहा है. इस खेल के खिलाड़ी बहुत ही कम देखने-सुनने को मिलते हैं. एथलेटिक्स में कभी कटिहार जिले का परचम राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर लहराता था. आज की तारीख में यह इतिहास बन चुका है. हालांकि कुछ स्कूलों में एथलेटिक्स को जिंदा रखा गया है. उसका मुख्य कारण है कि उस स्कूल के शिक्षक एथलेटिक्स से जुड़े हुए हैं या फिर प्रशिक्षण से जुड़े हैं. स्कूल में भी दौड़, लंबी कूद, ऊंची कूद इत्यादि प्रतियोगिता का भी आयोजन होता है. वहीं इसके अन्य इवेंट में भाला फेंक, गोला फेंक, चक्का फेंक इत्यादि का नहीं के बराबर होता है.
इन्होंने लहराया था जिले का परचम : 90 के दशक में एथलेटिक्स में जिले का परचम लहराता था. सरफरोज खान लंबी कूद में नेशनल चैंपियन रहे. चंद्रभूषण ठाकुर राज्य स्तर पर भाला फेंक में जिले का नाम रौशन किये. कई ऐसे खिलाड़ी हैं, जो एथलेटिक्स खेल कर रेल समेत कई अन्य सरकारी महकमों में अपनी सेवा दे रहे हैं. अगर इस खेल पर थोड़ा सा ध्यान राज्य सरकार दे, तो अब भी खिलाड़ी राज्य, राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपना परचम लहरा सकते हैं.
कहते हैं सहायक निदेशक
खेल विभाग के सहायक निदेशक सह एकलव्य प्रशिक्षण केंद्र के प्रभारी मिथिलेश कुमार ने बताया कि जिले से कोई भी रिपोर्ट विभाग को प्राप्त नहीं हुई है. रिपोर्ट डीएम द्वारा तैयार करके दी जाती है. इसके आधार पर खेल विभाग की ओर से राशि आवंटित की जाती है. जितना जल्दी रिपोर्ट भेजेंगे, उतना जल्दी आगे की कार्रवाई की जायेगी.
एकलव्य प्रशिक्षण केंद्र भी नहीं है
नामित स्कूल का नाम भी सिर्फ कागजों पर
राज्य सरकार द्वारा प्रतिभावान खिलाड़ियों को प्रशिक्षण देने के लिए एकलव्य प्रशिक्षण केंद्र की शुरुआत की गयी है. इस प्रशिक्षण केंद्र में चयनित खिलाड़ियों के लिए रहने, खाने व प्रशिक्षण की विशेष व्यवस्था रहती है. प्रशिक्षक भी अपनी कला में दक्ष होते हैं. पर, जिले में प्रशिक्षण केंद्र के लिए एमबीटीए इस्लामिया स्कूल को नामित किया गया है, लेकिन सिर्फ कागजों पर. अब तक इस प्रशिक्षण केंद्र की शुरुआत नहीं हो पायी है. इसके कारण खिलाड़ियों को भटकना पड़ता है.
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