भभुआ़
दुर्गावती जलाशय परियोजना की बदहाल बायां तट नहर केनाल आज भी खेतों की प्यास बुझाने में असफल साबित हो रहा है. पटवन के अहम मौके पर जर्जर बायां तट के टूटते रहने से किसानों के खेतों का पटवन बाधित हो जाता है. हालांकि, परियोजना से पानी देने का काम तो लगभग 10 वर्ष पूर्व शुरू किया गया. लेकिन, परियोजना का नहर तीन दशक पहले ही खोद दिया गया था. जो मरम्मति के अभाव में बुरी तरह जर्जर और बदहाल हो गया है. गौरतलब है 38 साल से दुर्गावती जलाशय परियोजना का इंतजार कर रहे कैमूर और रोहतास के पहाड़ी इलाकों के किसानों को जब 10 वर्ष पहले दुर्गावती जलाशय से नहर में पानी छोड़ने का सिलसिला शुरू हुआ, तो किसानों को लगा था कि अब उनके कुनबे का दिन भी फिरेगा और खेतों में उनके खून पसीने की कमाई लहलहायेंगी. लेकिन, लंबे इंतजार के बाद भी किसानों के अरमान अब तक पूरा नहीं हुए हैं. क्योंकि, परियोजना के बदहाल बायें तट नहर केनाल से किसानों के खेतों का भरपूर पानी नहीं मिल पाता है. हर वर्ष बरसात में टूट जाता है तटबंधखडीहां गांव के किसान श्याम यादव, रमावतपुर गांव के किसान विश्वनाथ साह, राधाखांड के किसान अंशु सिंह, बखारबांध के किसान मनी सिंह, बेल्डी के किसान झकरी पासवान, दवनपुर के किसान लाल बिहारी चौधरी सहित तमाम किसानों का कहना है कि जलाशय की नहर पूरी तरह बर्बाद हो गयी है. हर वर्ष नहर के तटबंध कभी पुनांव में तो कभी नवगढ़ में तो कभी हुडरी में टूट जाता है. गौरक्षणी से लेकर राधाखांड तक तो नहर, नहर की तरह दिखाई ही नहीं देता है. तटबंधों की मिट्टी बरसात में गिरकर नहर को ही भरने का काम करती है. मरम्मत के नाम पर विभाग की ओर से फिर मिटटी निकलवायी जाती है और फिर यह मिट्टी नहर में गिर जाती है. कमजोर होने के कारण तटबंध ढह जाते हैं. इससे किसानों को कोई फायदा नहीं मिलता. जब तक नहर का पक्कीकरण नहीं होता, तब तक पटवन की उम्मीद नहीं की जा सकती. किसानों के अनुसार, इस नहर के भरोसे पानी न बरसे तो धान की खेती भी पार नहीं लगेगी. गेहूं के खेती के पानी के लिये तो बात करना ही बेकार है.= लगभग 12 किमी में नाला या गहरे खेत के स्वरूप में बदल गया है बायां तटबंधदुर्गावती जलाशय का बायां तट नहर केनाल के बदहाल हालत को परियोजना से पिछले आठ वर्षों से नहर में पानी छोडने के बावजूद अब तक दुरूस्त नहीं किया जा सका है. नतीजा है तीन दशक पहले भितरीबांध-करमचट पहाडी से सटे रामपुर प्रखंड से लेकर भगवानपुर प्रखंड के सुवरन नदी तक जाने के लिए इस नहर की खुदाई करायी गयी थी. लेकिन, 22 किलोमीटर लंबा बायां तट नहर हर वर्ष जब जलाशय से खरीफ और रबी सीजन के पटवन के लिये पानी छोड़ा जाता है, तो जगह-जगह से टूट जाती है. यही नहीं इस नहर के टेल क्षेत्र के लगभग 12 किलोमीटर बायें तट नहर का स्वरूप ही बदल कर नहर से नाला या छोटे गहरे खेत जैसा हो गया है. मरम्मत के आभाव में नहर के तटबंध तमाम जगहों पर टूट कर नहर के पेटी में मिल गये हैं. तटबंधों की यह मिट्टी बरसात में गिरकर नहर के पेटी को भरने का काम ही कर रही है. याने पूरे 22 किलोमीटर पटवन के रेंज में मात्र 12-13 किलोमीटर तक यानी सोनांव-पुनांव गांव के किसानों को ही ठीक से नहर का पानी मिल पाता है. शेष 9-10 किलोमीटर के रेंज के किसानों के पटवन की जरूरत आज भी जर्जर नहर के कारण पूरा नहीं हो पा रही है.
क्या कहते हैं कार्यपालक अभियंताइस संबंध में जब दुर्गावती जलाशय परियोजना के कार्यपालक अभियंता अखिलेश कुमार ने बताया कि बलुई मिट्टी होने के कारण यह समस्या आ रही है. इसको लेकर विभाग अब तटबंधों को मजबूत बनाने के लिए पक्कीकरण का प्राक्कलन बना रहा है, जो सरकार को भेजा जायेगा. सरकार से स्वीकृति मिलने के बाद तटबंधों पर काम लगाया जायेगा. उन्होंने यह भी बताया कि वर्तमान में जो तटबंध जर्जर हैं, उनको ठीक कराया जायेगा.इनसेट 1नहर में पुलिया के अभाव से खेतों तक नहीं पहुंचता खेती का सामानभभुआ. दुर्गावती जलाशय परियोजना के नहर केनाल के पार करने के लिए कई जगह पुलिया नहीं दिये जाने से किसानों को कृषि सामग्री खेतों तक ले जाने में भी दिक्कत होती है. हालांकि, आने जाने के लिए किसान नहर के तटबंधों पर बिजली के खंभे आदि लगाकर काम चला ले जाते हैं. लेकिन, अगर खेत में बीहन डालना हो या जुताई के लिए ट्रैक्टर ले जाना हो, तो किसानों को दूर स्थित किसी पुलिया के सहारे नहर पार करने के लिए चक्कर लगाना पड़ता है. रमावतपुर के गवलछनी टोले के किसान लाल जी यादव साह, श्रीभगवान सिंह आदि का कहना है कि गांव के कई किसानों की खेती नहर के उस पार है. लेकिन, गांव के सामने नहर पर कोई पुलिया नहीं दी गयी है. अगर कृषि सामग्री उधर ले जाना है तो किसानों को खडिहां गांव या फिर बडवान घाट के सामने दी गयी पुलिया की सहायता लेनी पड़ती है, जिसके चक्कर में खर्च और समय दोनों बढ़ जाता है.
इन्सेट 2मरम्मत के अभाव में नहर के माइनरों से भी नहीं मिलता किसानों को पानीभभुआ. दुर्गावती जलाशय परियोजना के बदहाल मुख्य नहर की बात को अगर छोड़ भी दिया जाये, तो परियोजना के माइनरों से भी किसानों को पानी नहीं मिल पाता है. उदाहरण के लिए दुर्गावती जलाशय परियोजना के सवार और समदा वितरणी का नाम लिया जा सकता है. वर्षों पूर्व जैसे तैसे खोदे गये यह माइनर आज किसानों के खेत का पटवन करने में नाकाम रहे हैं. जबकि सवार माइनर लगभग सवा दो किलोमीटर लंबा है. लेकिन, इस वितरणी से मात्र 800 मीटर तक ही पानी पहुंच पाता है. इसी तरह समदा माइनर लगभग सवा किलो मीटर लंबा है. लेकिन, इस माइनर से भी ढाई से तीन किलोमीटर तक ही खेतों का पटवन हो पाता है. इधर, इस संबंध में बाएं तट नहर के कार्यपालक अभियंता अखिलेश कुमार का कहना है कि समदा माइनर में लगभग आधा दर्जन कनवर्ट बनाने का प्राक्कलन विभाग को भेजा गया है और समदा माइनर का मामला दो किसानों के भू-विवाद के बीच फंसा हुआ है. जिसे लेकर डीसीएलआर द्वारा निरीक्षण किया गया है.इनसेटदुर्गावती जलाशय परियोजना में अभी भी नहीं है एक बूंद भी पानीभभुआ. जिले में धान का बिहन डालने का उत्तम समय लगभग समाप्त हो चुका है. हालांकि, पानी के आभाव में अभी कई इलाकों में किसानों के धान के बीहन नहीं पडे हैं. बावजूद इसके दुर्गावती जलाशय परियोजना में अभी एक बूंद भी पानी नहीं है. भगवानपुर प्रखंड के किसान परियोजना के पानी पर टकटकी लगाये हुए हैं. लेकिन, अभी तक उन्हें निराशा का ही सामना करना पड रहा है. इधर, इस संबंध में जब कार्यपालक अभियंता अखिलेश कुमार से पूछा गया, तो उनका कहना था कि दुर्गावती जलाशय का पानी बायें तट नहर केनाल में छोड दिया गया है. लेकिन, अभी यह पानी 12-13 किलोमीटर के रेंज में रामपुर प्रखंड तक पहुंच पाया है. भगवानपुर प्रखंड के अमरपुर, बुच्चा, नौगढ, रमावतपुर, राधाखांड, बेल्डी, दवनपुर आदि गांवों तक परियोजना का पानी शुक्रवार तक पहुंच जायेगा.
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