घोसी.
कहा जाता है कि विरासत अतीत का आईना होती है और उसका संरक्षण अपने अस्तित्व की रक्षा के समान है. प्रखंड के भारथु पंचायत स्थित नंदना गांव का झारखंडी नाथ मंदिर भी ऐसी ही प्राचीन विरासतों में से एक है, जो आज भी उपेक्षा का दंश झेल रहा है. स्थानीय लोगों के अनुसार, राजगीर में जरासंध वध के लिए जाते समय भगवान कृष्ण, अर्जुन और भीम इसी मार्ग से गुजरे थे. रात्रि विश्राम के दौरान तीनों ने शिवलिंग की पूजा के लिए स्थान तलाशा. इसी दौरान कहा जाता है कि घने जंगल-झाड़ में स्वतः शिवलिंग प्रकट हुआ, जिसे लोग बाद में ‘झारखंडी नाथ’ के नाम से जानने लगे. श्रद्धालुओं का मानना है कि यह शिवलिंग अनादि काल से मौजूद है और सच्चे मन से की गयी पूजा-अर्चना का फल अवश्य मिलता है. सावन और सोमवार के दिनों में यहां सैकड़ों भक्त जलाभिषेक के लिए पहुंचते हैं. ग्रामीण बताते हैं कि झारखंडी नाथ मंदिर को लेकर दो गांवों के बीच विवाद अंग्रेजी शासन काल से चला आ रहा है. तनाव बढ़ने पर तत्कालीन गया जिला प्रशासन और कमिश्नर ने दोनों गांवों की बैठक कर मंदिर के पट बंद करवा दिए थे. अगले दिन मंदिर खुला तो शिवलिंग उत्तर दिशा की ओर झुका हुआ मिला, जिसे दोनों गांवों ने ईश्वरीय निर्णय मानकर विवाद समाप्त किया. तभी से यह मंदिर और अधिक प्रसिद्ध हुआ. हालांकि प्रसिद्धि और राजनीतिक हस्तियों के समय-समय पर आगमन के बावजूद मंदिर आज भी उपेक्षित है. मंदिर जाने के दो मार्ग हैं, लेकिन दोनों सड़कों की स्थिति अत्यंत जर्जर है, जिससे श्रद्धालुओं को आने-जाने में भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. ग्रामीणों का कहना है कि प्रशासन व जनप्रतिनिधियों का ध्यान इस दिशा में अब भी नहीं जा पाया है.
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