जहानाबाद
. बिहार के जहानाबाद के एक गांव में छठ पूजा के अवसर पर छठ व्रतियों के स्वागत की एक अनोखी परंपरा सामने आयी. जिले के नदियावां गांव के श्रद्धालुओं ने छठ व्रतियों का स्वागत छठ घाट जाने वाले रास्ते पर 6100 दीप जलाकर किया. इस मौके पर श्रद्धालुओं ने सड़क के दोनों ओर गांव से छठ घाट जाने वाले मार्ग तक मिट्टी के दीप जलाए. हर और जहां छठ घाट जाने वाले रास्ते पर एलईडी लाइट मरकरी और आधुनिक लाइट से रास्तों को रोशन किया जा रहा है. वहीं नदियावां गांव के लोगों ने इस परंपरागत तरीके से प्राचीन काल की तरह मिट्टी के दिए से रास्ते को रोशन करने की अनोखी पहल की.
चार दिवसीय इस महान पर्व पर तमाम तरह की तैयारियां की जाती हैं. इसमें घाट की साफ सफाई से लेकर सड़क गली और रास्ते की भी सफाई से लेकर व्रतियों के आने जाने वाले मार्ग को सजाया जाता है. इस आधुनिक दौर में छठ घाट के अलावा आने जाने वाले रास्तों पर रंग बिरंगी लाइट्स लगायी जाती है. जगह-जगह सड़क पर रंगोली भी सजाई जाती है किंतु पुराने जमाने में जिस समय बल्ब का आविष्कार नहीं हुआ था रास्तों को रोशन करने के लिए लोग मिट्टी के दीये का प्रयोग करते थे. जहानाबाद के नदिया में गांव के लोगों ने इस पुरानी परंपरा को फिर से जीवित करने का प्रयास किया है. जहानाबाद जिला मुख्यालय से बिहार शरीफ जाने वाली सड़क पर नदियावा गांव में आधुनिक दौर में भी पुरानी परंपरा को जीवित कर सजावट करने की इस पर पहल की लोग प्रशंसा कर रहे हैं. गांव के लोगों ने व्रतियों के स्वागत में 2 किलोमीटर तक मिट्टी के दिए सड़क के दोनों छोर पर सजाए. इस दौरान 6100 दिए से 2 किमी का इलाका मिट्टी के दिए से परंपरागत तरीके से रोशन किया गया. हजारों दिए एक साथ गांव से छठ घाट तक प्रकाश की रोशनी अनोखी बिखेर रहा था. गांव के लोगों ने बताया तूने ऐसा लग रहा था मानो हम अयोध्या में आये हुए हैं और वहां दीपोत्सव की तैयारी चल रही है .
2018 में हुई थी इसकी शुरुआत : जिले के नदियावां में गांव में पिछले 7 वर्षों से मिट्टी के दीये से छठ घाट के रास्ते को रोशन करने का यह आयोजन किया जा रहा है. गांव के लोगों ने बताया कि 2018 में इसकी शुरुआत की गई थी तब से यह आयोजन छठ घाट के अवसर पर लगातार किया जा रहा है. मिट्टी के बने दिए न सिर्फ सड़कों की रोशनी और इलाके का शोभा बढ़ाते हैं, बल्कि उन घरों में खुशियां लाते हैं जिनका घर इन्हीं दीपक को बनाने से चलता है. यह आयोजन किसी संगठन की ओर से नहीं होता है , बल्कि ग्रामीण इसे आपसी सहयोग से करते हैं.
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