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Jehanabad News : शराबबंदी के बावजूद हुलासगंज में शराब माफिया का दबदबा कायम, ग्रामीणों में असुरक्षा का माहौल

बिहार सरकार की सख्त शराबबंदी कानून के बावजूद हुलासगंज प्रखंड के केऊर पंचायत स्थित कसियावां गांव में शराब का धंधा बेखौफ जारी है, जो अब ग्रामीणों के लिए सिरदर्द बन चुका है.

हुलासगंज. बिहार सरकार की सख्त शराबबंदी कानून के बावजूद हुलासगंज प्रखंड के केऊर पंचायत स्थित कसियावां गांव में शराब का धंधा बेखौफ जारी है, जो अब ग्रामीणों के लिए सिरदर्द बन चुका है. प्रशासन द्वारा बार-बार छापेमारी किये जाने के बावजूद शराब माफियाओं के हौसले में कोई कमी नहीं आयी है. खासकर, गांव के स्कूल और आंगनबाड़ी केंद्रों के पास शराब की बिक्री और सेवन एक आम बात बन चुकी है, जिससे ग्रामीणों में आक्रोश और भय का माहौल बना हुआ है. गांव की भौगोलिक स्थिति, जो नालंदा और जहानाबाद की सीमा पर स्थित है, शराब माफियाओं के लिए एक फायदा बन चुकी है. यहां की सीमा रेखा पार कर माफिया आसानी से पुलिस की निगरानी से बच निकलते हैं. ग्रामीणों के मुताबिक, यहां बड़े पैमाने पर कच्ची शराब का निर्माण हो रहा है, और जैसे ही अंधेरा होता है, नालंदा और हुलासगंज क्षेत्र से शराब पीने वालों की भीड़ गांव में पहुंच जाती है. इससे गांव का माहौल तनावपूर्ण और असुरक्षित हो जाता है. अवैध शराब के सेवन के कारण असामाजिक तत्वों द्वारा रातभर शोर-शराबा किया जाता है. कई बार ये तत्व गलियों में उत्पात मचाते हैं और महिलाओं के साथ अभद्रता भी करते हैं. इसके कारण बच्चों और बुजुर्गों का शाम के बाद घर से बाहर निकलना मुश्किल हो गया है. गांव में सामाजिक शांति और संरचना पर गंभीर संकट खड़ा हो गया है. ग्रामीणों का कहना है कि पुलिस ने कई बार छापेमारी की और शराब माफियाओं को गिरफ्तार भी किया, लेकिन हर बार कुछ दिनों बाद अवैध शराब का धंधा फिर से शुरू हो जाता है. पुलिस टीम के लौटते ही माफिया फिर से सक्रिय हो जाते हैं, जिससे यह स्थिति अब महज औपचारिकता बनकर रह गयी है. माफियाओं की पकड़ लगातार मजबूत होती जा रही है. ग्रामीणों ने प्रशासन से मांग की है कि नियमित गश्त लगायी जाये और इस अवैध धंधे को खत्म करने के लिए विशेष अभियान चलाया जाये. उनका कहना है कि जब तक शराब माफियाओं को जड़ों से नहीं उखाड़ा जायेगा, तब तक गांव में शांति और सुरक्षा लौटना मुश्किल है. शराबबंदी कानून को लागू करने की राज्य सरकार की कोशिशों के बावजूद कसियावां के लोग अब भी ठोस कदमों की प्रतीक्षा कर रहे हैं. ग्रामीणों की एकमात्र उम्मीद है कि प्रशासन इस सामाजिक अभिशाप को खत्म करने के लिए सख्त कदम उठाये. उनका सपना है कि उनका गांव फिर से सुरक्षित और शांतिपूर्ण बने, जहां महिलाएं बिना भय के घर से बाहर निकल सकें और बच्चे स्वतंत्र रूप से खेल सकें. अब देखना यह है कि प्रशासन इस चुनौती से निपटने के लिए कितनी गंभीरता और मजबूती से कदम उठाता है.

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