जहानाबाद
. ध्वनि प्रदूषण को लेकर जहां जिले के लोगों में जागरूकता की कमी है, वहीं प्रशासन भी इस दिशा में आवश्यक कदम उठाने में सुस्त दिखायी दे रहा है. ध्वनि प्रदूषण के लिए आम लोग और प्रशासन दोनों समान रूप से जिम्मेदार हैं. शहर की सड़कों पर चलने वाले अधिकतर वाहनों में प्रेशर हॉर्न लगे हुए हैं, जिनका उपयोग प्रतिबंधित होने के बावजूद धड़ल्ले से किया जा रहा है. खासकर घनी आबादी वाले क्षेत्रों, अस्पतालों और शिक्षण संस्थानों के आसपास प्रेशर हॉर्न का उपयोग पूरी तरह प्रतिबंधित है. इसके बावजूद वाहन चालक तेज आवाज वाले हॉर्न बजाकर मानसिक अशांति के साथ लोगों में बहरापन तक पैदा करने का खतरा बढ़ा रहे हैं. विशेषज्ञों के अनुसार प्रेशर हॉर्न की आवाज 100 डेसीबल से अधिक होती है, जो मनुष्य के तंत्रिका तंत्र पर घातक प्रभाव डालती है। 60 डेसीबल से अधिक का शोर अनिद्रा, उच्च रक्तचाप, तनाव और स्थायी बहरापन जैसी समस्याओं को जन्म देता है.
शादी-विवाह, दीपावली, खुशी के मौके, राजनीतिक आयोजनों में पटाखों और तेज ध्वनि प्रणालियों का उपयोग ध्वनि प्रदूषण को कई गुना बढ़ा देता है. रेलवे स्टेशन के आसपास भी शोर स्तर अत्यधिक पाया जाता है. रेलगाड़ियों के इंजन और हॉर्न से लगभग 120 डेसीबल तक शोर उत्पन्न होता है, जो खतरनाक सीमा से अधिक है. एयरक्राफ्ट का शोर भी बड़े स्तर पर ध्वनि प्रदूषण में वृद्धि करता है. वहीं रैलियां, धरना-प्रदर्शन, नारेबाजी और लाउडस्पीकर के उपयोग से भी वातावरण लगातार शोर से भरा रहता है. घरो में चलने वाले उपकरण वैक्यूम क्लीनर, मिक्सी, वाशिंग मशीन और औद्योगिक मशीनें जैसे जनरेटर, लेथ मशीन आदि भी शोर बढ़ाने में अहम भूमिका निभाती हैं. दुकानों पर साउंड बॉक्स और आयोजनों में डीजे का तेज शोर भी ध्वनि प्रदूषण का बड़ा कारण है. विशेषज्ञों का कहना है कि यदि समय रहते उपाय नहीं किये गये तो ध्वनि प्रदूषण आने वाले वर्षों में बड़ा स्वास्थ्य संकट बन सकता है. प्रशासन को कड़े कदम उठाने के साथ लोगों में जागरूकता फैलाने की जरूरत है.
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