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लोगों को बीमार कर रही जहरीली हवा

जहानाबाद : राजधानी पटना समेत देश के कई शहरों में वायु प्रदूषण का खतरनाक स्तर आम जनजीवन के लिए काफी समस्याएं खड़ा कर रहा है. इससे निबटने के लिए सरकारी स्तर पर फौरी उपाय किये जा रहे हैं. कई बड़े शहरों में लोगों को मास्क लगाकर बाहर निकलना पड़ रहा है. बड़े शहरों के प्रदूषण […]

जहानाबाद : राजधानी पटना समेत देश के कई शहरों में वायु प्रदूषण का खतरनाक स्तर आम जनजीवन के लिए काफी समस्याएं खड़ा कर रहा है. इससे निबटने के लिए सरकारी स्तर पर फौरी उपाय किये जा रहे हैं. कई बड़े शहरों में लोगों को मास्क लगाकर बाहर निकलना पड़ रहा है. बड़े शहरों के प्रदूषण पर सरकार की नजर रहती है पर छोटे शहरों में बढ़ रहे प्रदूषण को नियंत्रित करने के कोई उपाय नहीं किये जा रहे हैं. जहानाबाद में भी वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ता जा रहा है.

हवा में धूल और धुएं की मात्रा बढ़ने से लोगों को स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. सुबह कोहरे के साथ धूल और धुआं मिलकर खतरनाक मिश्रण स्मॉग बना ले रहे हैं जो स्कूल जाने वाले बच्चे, सबेरे घूमने वाले आम नागरिकों और कामकाजी लोगों की सांस में जाकर फेफड़े संबंधी रोगों का कारक बन रहे हैं. शाम को भी सड़क पर उड़ती हुई धूल वाहन चालकों के लिए परेशानी सबब बनी हुई है.
शहर में दिनोदिन बढ़ रहे इस वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने का कोई उपाय नगर पर्षद या जिला प्रशासन द्वारा नहीं किया जा रहा है. हालांकि सोमवार को बिहार सरकार के एक फैसले द्वारा हर जिले में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए जिलाधिकारी की अध्यक्षता में मॉनीटरिंग कमेटी बनायी गयी है. उम्मीद है कि आने वाले समय में यह कमेटी जिला स्तर पर भी वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए प्रभावी कदम उठायेगी.
पुरानी गाड़ियों, जलते कूड़े और भवन निर्माण कार्य बढ़ा रहे प्रदूषण :शहर में हालांकि स्वच्छता अभियान के तहत कूड़े को घरों से उठाकर डंपिंग जोन में पहुंचाया जा रहा है फिर भी अवैध तरीके से वभना के पास फेंके गये कूड़े में लगी आग से शहर की आबोहवा प्रदूषित हो रही है.
वहीं डंपिंग जोन में भी रह-रहकर कूड़े में आग लग रही है जो हवा में खतरनाक और जहरीले धुएं को मिला रही है. शहर के आसपास के गांवों में भी किसान कटी हुई फसल के बचे हुए हिस्से को खेतों में आग लगा दे रहे हैं जिसके कारण धुएं की मात्रा हवा में बढ़ जाती है.
वहीं शहर में चलने वाले कई पुराने वाहनों से निकलने वाला धुआं भी हवा को दूषित करता है. हालांकि बिहार सरकार द्वारा एक फैसले में 15 साल से पुराने वाहनों के परिचालन पर रोक लगा दी गयी है, लेकिन अभी यह रोक शहर में प्रभावी तरीके से लागू नहीं हो सकी है. वहीं शहर में नगरीकरण के कारण मकानों में हमेशा निर्माण कार्य होते रहता है जिससे धूल, बालू के कण आदि सड़कों और गलियों में बिखर कर धीरे-धीरे हवा में मिल जाते हैं.
एक्यूआइ मानक पर खराब है शहर की हवा :आंकड़ों की मानें तो शहर की एयर क्वालिटी इंडेक्स पिछले 15 दिनों में 200 से अधिक रह रही है जो खराब मानी जाती है.
वहीं निकटवर्ती पटना का एक्यूआद औसतन 220 और गया का 206 है. एक्यूआद के मानकों के अनुसार 0-50 तक अच्छा, 51-100 संतोषजनक, 101-200 मध्यम, 201-300 खराब, 301-400 बेहद खराब, 401-500 खतरनाक मानी जाती है. अगर प्रभावी कदम नहीं उठाये गये तो शहर की आबोहवा बद-से-बदतर होकर शहरवासियों के लिए साइलेंट किलर बन जायेगी.
ऐसे खतरनाक बन रही आबोहवा :वातावरण में सल्फर डाइ आॅक्साइड और नाइट्रोजन आॅक्साइड के साथ धूल के कणों की आवश्यकता से अधिक मौजूदगी स्मॉग की वजह बनती है. धुआं इसमें सर्वाधिक जिम्मेदार होता है. धुएं से सल्फर डाइ आॅक्साइड और नाइट्रोजन आॅक्साइड तो निकलता ही है, धूल भी उड़ती है, नमी के साथ मिलकर वह वायुमंडल के निचले स्तर पर विलंबित हो जाती है.
शहर में नहीं है ग्रीन बेल्ट:आबोहवा शुद्ध रखने के लिए हर शहर में बड़ी संख्या में पेड़-पौधे, बगीचे, पार्क होते हैं. ग्रीन बेल्ट के कारण शहर की हवा शुद्ध होती रहती है, पर जहानाबाद जिले में न कोई छोटा-बड़ा बगीचा है और न ही कोई ग्रीन बेल्ट.
सड़कों के किनारे भी पेड़-पौधे न के बराबर हैं. सड़कों के बीचोबीच बनाये गये ग्रेवियन भी खाली पड़े हुए धूल उड़ाने का कारण बने हुए हैं जिनको शहर को सुंदर बनाने और हवा को शुद्ध रखने के लिए बनाया गया था वो ग्रेवियन आज सड़कों पर धूल उड़ाने के बड़े कारण हैं.
कितना होना चाहिए एअर क्वालिटी इंडेक्स :स्टैंडर्ड नियमों के मुताबिक एअर क्वालिटी इंडेक्स में 0-50 तक की वायु गुणवत्ता को अच्छा माना जाता है, वहीं 51-100 तक संतोषजनक. 100-150 तक औसत तथा 151-300 तक खराब मानी जाती है. 301-400 तक बेहद खराब और 401 से ऊपर यह बेहद गंभीर मानी जाती है.
क्या है पीएम 2.5 और पीएम 10
मौसम विज्ञानी डॉ एसएन पांडेय ने बताया कि पीएम 2.5 से मतलब ऐसे पार्टिकुलेट मैटर से है जिनका आकार 2.5 माइक्रॉन से कम होता है. इसी तरह पीएम 10 में पार्टिकुलेट मैटर का आकार 10 माइक्रॉन से कम रहता है. दोनों ही नंगी आंखों से नजर नहीं आते.
पार्टिकुलेट मैटर का असर
दो माइक्रोन से कम आकार- फेफड़े के अंदर जाते हैं तथा नली में जाकर संक्रमण पैदा कर सकते हैं.
दो से पांच माइक्रोन आकार- फेफड़ों में बुरी तरह जम जाते हैं जो तेज दर्द, संक्रमण और खून की नलियों को प्रभावित कर सकते हैं.
10 माइक्रोन आकार- नाक, गले में दिक्कत हो सकती है. बलगम आना और खांसी की समस्या होती है.
क्या कहते हैं चिकित्सक
पिछले एक महीने में सांस और फेफड़े से जुड़ी बीमारियों में 20-25 प्रतिशत तक की वृद्धि देखी गयी है. हवा में बढ़ता प्रदूषण हृदय से जुड़ी बीमारियों, अस्थमा, सांस लेने में तकलीफ, फेफड़ों में इन्फेक्शन, एलर्जी तथा नाक और गले के रोगों में वृद्धि कर रहा है. इससे बचने के लिए बाहर निकलते समय मास्क लगाकर निकलें और भोजन में गुड़ और रेशे की मात्रा बढ़ानी चाहिए.
डॉ गिरिजेश कुमार

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