काको : सूबे के धार्मिक और सांप्रदायिक सद्भाव केंद्रों में एक है बीबी कमाल का मजार. तुगलक वंश के शासनकाल में एक सूफी संत महिला थी जो तांत्रिक विद्या के लिए विख्यात थीं. बीबी कमाल की पुत्री दौलती बीबी ने काको में आकर सूफी मत की नींव डाली थी. फिरोजशाह तुगलक ने 1351 ई से 1388 ई में बीबी कमाल को महान साध्वी के रूप में उपाधियों से अलंकृत किया था.
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तंत्र विद्या में माहिर थीं सूफी संत बीबी कमाल
काको : सूबे के धार्मिक और सांप्रदायिक सद्भाव केंद्रों में एक है बीबी कमाल का मजार. तुगलक वंश के शासनकाल में एक सूफी संत महिला थी जो तांत्रिक विद्या के लिए विख्यात थीं. बीबी कमाल की पुत्री दौलती बीबी ने काको में आकर सूफी मत की नींव डाली थी. फिरोजशाह तुगलक ने 1351 ई से […]
ये माता-पुत्री काको में गयासुद्दीन के 1320 -1325 ई तक शासनकाल के दौरान यहां थी. यहां के राजा तुर्कों के शासन का विरोध करता था और बीबी कमाल का अनादर करता था, किंतु बीबी कमाल अपनी तांत्रिक विद्या हिपनांटिज्म के कारण मुस्लिम संप्रदाय से अधिक हिंदुओं में चर्चित थीं.
जन्म कथा के अनुसार काको के राजा काक ने एक बार बीबी कमाल को अनादर करने के लिए भोजन पर बुलवा कर कुत्ता, बिल्ली और घोड़े का मांस परोस दिया, किंतु बीबी कमाल तंत्र विद्या से इन जीवों को साक्षात जिंदा कर दिया. बीबी कमाल अपनी तंत्र विद्या से सब कुछ जान लेती थीं.
दीन-दुखियों की समस्याओं की करती थीं निदान : दीन-दुखी और रोगी अपना दुखड़ा सुनकर समस्याओं से मुक्ति के लिए बीबी कमाल के पास आने लगे. बीबी कमाल सबों की समस्याओं का निदान बतातीं और उनका तांत्रिक उपचार करतीं. रोगी चंगा होने लगे, दीन-दुखी प्रसन्न होने लगे. इसकी व्यापक चर्चा लोगों में होने लगी. हिंदू-मुस्लिम सभी संप्रदाय के लोग यहां बीबी कमाल की दुआ और आशीर्वाद पाने के लिए आने लगे.
लोगों की आस्था इतनी बढ़ गयी कि बीबी कमाल के गुजर जाने के बाद आज भी बीबी कमाल का मजार हिंदुओं की पूजा और मुसलमानों की इबादत का केंद्र बना हुआ है. सबसे बड़ी बात यह है कि मुसलमानों से ज्यादा बीबी कमाल के मजार पर चादर चढ़ाने हिंदू आते हैं. यह मजार जहानाबाद रेलवे स्टेशन से पूरब एनएच 110 पर बिहारशरीफ जाने वाली सड़क पर स्थित है.
जहानाबाद जिला मुख्यालय से इसकी दूरी करीब 10 किलोमीटर है. यह मजार काको स्थित बावन बीघे रकवे वाले पनिहास के उत्तरी-पश्चिमी कगार पर है. मजार से ठीक एक किलोमीटर पूरब इसी पनिहास के उसी कगार पर भगवान विष्णु का प्रसिद्ध सूर्य मंदिर है. मंदिर और मजार को जोड़ने वाला या पनिहास हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है.
पनिहास का जल स्नान के बाद दोनों संप्रदायों के लोगों को पावन कर देता है, तब लोग मंदिर और मजार तक पहुंच कर पूजा और इबादत का फल प्राप्त करते हैं. काको स्थित बीबी कमाल के मजार के मुख्य द्वार पार करते ही एक काले पत्थर पर कलमा लिखा हुआ है. इसके नीचे लोग मत्था टेकते हैं.
ऐसी आस्था है कि इसके नीचे सिर टेकने से मानसिक शांति मिलती है तथा असंतुलित मानसिकता गायब हो जाती है. बीबी कमाल के मजार के इस विशाल हाते में मेले-सा दृश्य रहता है. इस दरगाह के मुतवली कहते हैं कि यहां देश के कोने-कोने से लोग आते हैं. हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी धर्मों के लोग आते हैं.
हजरत बीबी कमाल का यह दरगाह सांप्रदायिक सद्भावना और एकता का केंद्र है. दरगाह का दरवाजा सभी धर्म और संप्रदाय के लोगों के लिए हमेशा खुला रहता है.
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