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bihar election 2025 : चाय की चुस्कियों के बीच हो रहे जीत-हार के दावे

bihar election 2025 ज्यों-ज्यों विधान सभा चुनाव नजदीक आ रहा है त्यों-त्यों चकाई में चुनावी पारा बढ़ता जा रहा है.

-कहीं इस बार भी इतिहास तो नही दोहराया जायेगा

जयकुमार शुक्ला,

चकाई

ज्यों-ज्यों विधान सभा चुनाव नजदीक आ रहा है त्यों-त्यों चकाई में चुनावी पारा बढ़ता जा रहा है. पार्टी के नेता, कार्यकर्ता सहित आम मतदाताओं के बीच केवल चुनावी चर्चा चल रही है. खासक़र सार्वजनिक स्थानों पर जैसे चाय की दुकान, होटल व अन्य स्थानों पर चुनावी हार जीत की चर्चा चाय के चुस्कियों के बीच लोग करते दिख रहे हैं. वैसे तो सभी दलों के कार्यकर्ता अपने-अपने नेता के जीत के दावे बढ़-चढ़कर कर रहे हैं, मगर मतदाताओं की रहस्यमय चुप्पी उन्हें परेशान कर रही है. वैसे तो चकाई विधानसभा से इस बार विधान सभा में 11 प्रत्याशी अपना-अपना भाग्य आजमा रहे हैं, लेकिन लोगों की मानें तो चकाई विधान सभा में मुख्य मुकाबला एनडीए गठबंधन के जदयू प्रत्याशी व वर्तमान विधायक सुमित कुमार सिंह व महागठबंधन के राजद प्रत्याशी सावित्री देवी के बीच माना जा रहा है. वहीं इस आमने-सामने के मुकाबले को दो निर्दलीय प्रत्याशी पूर्व विधान पार्षद संजय प्रसाद व चंदन सिंह फाउंडेशन के फाउंडर चंदन सिंह चारकोणीय मुकाबला बनाने में लगे हैं. वैसे तो चकाई विधान सभा की सीट पर अब तक लगातार दो परिवारों का कब्जा रहा है. मालूम हो कि आजादी के बाद से अब तक कुल 15 बार विधान सभा चुनाव हुए हैं. इसमें पहले दो चुनावों 1967 और 1972 के विधान सभा चुनावों को छोड़कर कुल 13 बार चकाई विधान सभा सीट पर दो परिवारों का ही कब्जा रहा है. जहां वर्ष 1977 में पहली बार निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़े चकाई के बटपार निवासी फाल्गुनी प्रसाद यादव ने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी व जनता पार्टी के युवा उम्मीदवार नरेंद्र सिंह को हराकर यह सीट जीती. वहीं 1980 में हुए मध्यावधि चुनाव में भाजपा के टिकट से चुनाव लड़कर फाल्गुनी प्रसाद पुनः जीत हासिल की. वहीं वर्ष 1985 में कांग्रेस पार्टी के टिकट से चुनाव लड़कर नरेंद्र सिंह ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी भाजपा प्रत्याशी फाल्गुनी प्रसाद यादव को हरा क़र पहली जीत दर्ज की. वहीं 1995 में फाल्गुनी प्रसाद यादव ने नरेंद्र सिंह को हराकर पुनः चकाई विधान सभा सीट पर कब्जा जमाया. वहीं 2000 में पुनः नरेंद्र सिंह ने इस सीट पर कब्जा जमाया .वहीं 2005 में नरेंद्र सिंह ने अपनी जगह अपने मंझले पुत्र अभय सिंह को लोक जनशक्ति पार्टी से चकाई विधान सभा सीट से चुनावी मैदान में उतारा जहां अभय सिंह ने फाल्गुनी प्रसाद यादव को हराकर चकाई सीट पर कब्जा जमाया. इस बीच किसी भी दल का सरकार नही बन पाने के कारण पुनः 6 महीने बाद हुए चुनाव में भाजपा उम्मीदवार फाल्गुनी प्रसाद यादव ने जीत हासिल की. इसके उपरांत वर्ष 2010 में हुए चुनाव में चकाई सीट से नरेंद्र सिंह के दूसरे बेटे सुमित सिंह ने झामुमो के टिकट पर चुनाव लड़कर जीत हासिल की. वहीं फाल्गुनी प्रसाद यादव की मृत्यु के बाद 2015 के विधान सभा चुनाव में स्व फाल्गुनी प्रसाद यादव की पत्नी सावित्री देवी ने अपने पति के विरासत को आगे बढ़ाते हुए राजद के टिकट से चुनाव लड़कर सुमित सिंह को हराते हुए चकाई सीट पर कब्जा जमाते हुए महिला विधायक बनने का गौरव प्राप्त किया. वहीं 2020 के विधान सभा चुनाव में पुनः एक बार सुमित सिंह ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़कर अपने नजदीकी प्रत्याशी सावित्री देवी को हराया, जबकि जदयू प्रत्याशी संजय प्रसाद तीसरे नंबर पर रहे. इस तरह दो परिवारों के बीच चकाई विधान सभा सीट पर शह-मात का खेल अब तक चलता रहा है. इस सीट पर कई बाहुबलियों ने अलग-अलग दल से अपना-अपना भाग्य आजमाया, मगर चकाई की जनता का आशीर्वाद इन्हीं दोनों परिवारों के बीच बटता रहा. क्या इस बार भी इस विधान सभा सीट पर इतिहास दोहराया जायेगा या किसी तीसरे की एंट्री होगी.

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