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यह कैसा न्याय! 29 साल के इंतजार के बाद पीड़ित ने तोड़ा दम, मौत के 7 साल बाद आरोपियों को मिली डांट-फटकार की सजा

मामले में अभियोजन पदाधिकारी अनूप कुमार त्रिपाठी और बचाव पक्ष के अधिवक्ता प्रबोध सिंह की दलीलों को सुनने के बाद कांड के अभियुक्त हजियापुर के लालबाबू प्रसाद व उतिम प्रसाद को बुजुर्ग व लाचार देख डांट-फटकार का फैसला सुनाया गया.

गोपालगंज. जस्टिस डिलेड इज जस्टिस डिनायड यानी न्याय में देरी, न्याय से वंचित करने के समान है. गोपालगंज के एक हिंसक झड़प के मामले में ऐसा ही हुआ. इस मामले का पीड़ित 29 वर्षों तक इंसाफ पाने के लिए कोर्ट का चक्कर लगाता रहा. उसकी मौत के सात साल बाद यानी 36 वर्षों तक 283 तारीखें मिलने के बाद कोर्ट का फैसला आया. कोर्ट ने आरोपितों को दोषी तो माना, लेकिन उन्हें बुजुर्ग और लाचार देख कर डांट-फटकार की सजा सुनायी. न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी महेंद्र मिश्र के कोर्ट के सामने जब मामला आया, तो इतना पुराना ट्रायल होते देख कोर्ट ने गंभीरता से लिया. इस मामले में प्रतिदिन सुनवाई करने का निर्णय लिया गया. आरोपितों के खिलाफ नोटिस भेजकर उनकी हाजिरी करायी गयी. अभियोजन पदाधिकारी अनूप कुमार त्रिपाठी और बचाव पक्ष के अधिवक्ता प्रबोध सिंह की दलीलों को सुनने के बाद कांड के अभियुक्त हजियापुर के लालबाबू प्रसाद व उतिम प्रसाद को बुजुर्ग व लाचार देख डांट-फटकार का फैसला सुनाया गया.

1987 में जमीन के विवाद को लेकर हुई थी झड़प

13 अगस्त, 1987 की सुबह छह बजे बड़ी बाजार के कन्हैया प्रसाद अपनी जमीन की बाउंड्री कराने के लिए मिस्त्री और मजदूर लगाया था. उनका बेटा प्रदीप प्रसाद सामान लेने बाइक से जैसे ही निकला, उसी समय हजियापुर-कैथवलिया के रहने वाले लाल बाबू प्रसाद और उतिम प्रसाद 8-10 अज्ञात लोगों के साथ पहुंचे और प्रदीप प्रसाद पर हमला कर दिया. बेटे को पिटता देख कन्हैया प्रसाद दौड़कर बचाने गये, तो उनकी भी पिटाई की गयी. उनके हाथ-पैर तोड़ दिये गये. सदर अस्पताल में महीनों इलाज हुआ. इस मामले में नगर थाने में कांड संख्या-138/1987 दर्ज कराया गया था. इसमें लालबाबू प्रसाद और उतिम प्रसाद को नामजद व 8-10 अज्ञात को अभियुक्त बनाया गया था. 1988 में पुलिस ने कोर्ट में चार्जशीट सौंप दी थी.

1999 में अभियोजन की तरफ से पूरी की गयी थी गवाही

कोर्ट में पुलिस ने एक साल के भीतर जांच पूरी करते हुए चार्जशीट व डायरी 1988 में सौंप दी. उसके बाद कांड की सुनवाई शुरू हुई. 1999 में अभियोजन की ओर से अपनी गवाही भी पूरी कर ली गयी. उसके बाद से आरोपित फरार रहे. कोर्ट से सिर्फ तारीख पर तारीख मिलती रही. 283 तारीख के बाद अंतत: फैसला भी आ गया.

कांड के सूचक की 2016 में हो गयी थी मौत

बड़ी बाजार के रहने वाले कन्हैया प्रसाद कांड के सूचक थे. कोर्ट में इंसाफ के लिए इस उम्मीद में ठोकरे खाते रहे कि अगली तारीख को इंसाफ मिल जायेगा. वर्ष 2016 में उनकी मौत हो गयी. उसके बाद उनके परिजनों ने मुकदमे में पैरवी भी छोड़ दी थी.

जवानी में हुई थी मारपीट, बुढ़ापे में मिली सजा

हजियापुर-कैथवलिया के लालबाबू प्रसाद व उतिम प्रसाद ने जवानी में कन्हैया प्रसाद और उनके बेटे के साथ मारपीट की थी. उनकी उम्र जब 70 वर्ष से ज्यादा हो गयी, तो कोर्ट की ओर से उन्हें सजा मिली.

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लेट से मिला इंसाफ, नहीं मिलने के बराबर : विधिज्ञ संघ

जिला विधिज्ञ संघ के अध्यक्ष प्रेमनाथ मिश्र ने कहा कि लेट से मिला इंसाफ, इंसाफ नहीं मिलने के बराबर होता है. पीड़ित व आरोपित दोनों पक्ष कोर्ट का चक्कर लगाते रहे. कोर्ट को ऐसे मामलों को लोक अदालत में भिजवा कर फैसला कराना चाहिए था. अब भी अगर ऐसे केस हों, तो उसका रिव्यू जरूर होना चाहिए.

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