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पॉलिटिकल किस्सा: जब राजमंगल मिश्र ने ठुकराया शिक्षा मंत्री का पद, तो चंद्रशेखर ने राजमंगल पांडेय को सौंप दिया मंत्रालय

देश में अभी हर तरफ चुनावी माहौल है. नेता प्रचार प्रसार में जुटे हैं. लेकिन आज हम आपको बिहार के एक ऐसे राजनेता का किस्सा बता रहे हैं. जिनके त्याग और आदर्शों के आगे पार्टी के लोग नतमस्तक थे.

संजय कुमार अभय, गोपालगंज. आज के राजनीति में कोई अपना नहीं होता. जब जहां जिसे मौका मिला वह कुर्सी हथिया लेता. अपने व्यक्तित्व व महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए किसी भी स्तर पर जाने से लोग गुरेज नहीं करते. आज से चार दशक पूर्व तक नेताओं के निष्ठा, पार्टी, एकजुटता सर्वोपरि होता था. एक वाक्या आपको बता रहे. जो आज के राजनीतिज्ञों के लिए एक प्रेरणा हो सकता है.

राजमंगल मिश्र ने राम जेठमलानी से किया था झगड़ा

गोपालगंज लोकसभा चुनाव में 1989 में राजमंगल मिश्र कांग्रेस के उम्मीदवार काली प्रसाद पांडेय को हरा कर सांसद बने. लोकसभा में बीपी सिंह की सरकार बनी. तब भी पंडित राजमंगल मिश्र की अहम भूमिका रही. 1991 में परिस्थिति बदली और चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने इसके लिए राजमंगल मिश्र ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट के वकील रहे राम जेठमलानी से झगड़ा तक कर लिया.

राजमंगल मिश्र को मानव संसाधन मंत्री बनाना चाहते थे चंद्रशेखर

चंद्रशेखर जी प्रधानमंत्री बने. तब चंद्रशेखर पंडित मिश्र को मानव संसाधन मंत्री बनाने की तैयारी में थे. उसी दौरान राजमंगल मिश्र के पास कुछ उनके करीबी सांसद पहुंचे और पड़रौना (यूपी) से सांसद बने राजमंगल पांडेय को मानव संसाधन मंत्री बनवाने के लिए सहमत कर लिया. उसी समय राजमंगल मिश्र उन सभी सांसदों व राजमंगल पांडेय को लेकर चंद्रशेखर जी के आवास पर पहुंचे और राजमंगल पांडेय को शिक्षा मंत्री बनाने पर अड़ गये.

राजमंगल मिश्र और चंद्रशेखर में क्या हुई बात

सबकी बातों को सुनने के बाद प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने भाेजपुरी में कहा कि बाबा हम त रडरा के मानव संसाधन मंत्री बनावे के तैयारी में रहनी है. तब भोजपुरी में ही राजमंगल मिश्र ने कहा कि हमरा के का बनइब, इ लोग नया बा. सरकार के बढ़िया काम करीहे. हमरा के पार्टी के काम करे द. पंडित राजमंगल मिश्र के तेवर को देख चंद्रशेखर पांडेय को मंत्री बना दिये. इस वाक्या को बताते हुए स्व राजमंगल मिश्र के पुत्र व सिविल कोर्ट गोपालगंज के वरिष्ठ अधिवक्ता मृत्युंजय मिश्र उर्फ पप्पू मिश्र ने बताया कि जब वे घर लौट कर कहानी सुनाये तो परिवार के लोगों को काफी गर्व हुआ था. उनके इमानदारी, त्याग, आदर्शों के आगे पार्टी में लोग काफी अदब करते थे.

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