चुनावी मुद्दों से गायब है खेती-किसानीछह विस क्षेत्रों से कुल 40 फीसदी प्रत्याशी किसान, फिर भी कृषि मुद्दा नहीं संवाददाता, गोपालगंजजिले में चौथे चरण में होनेवाले चुनाव के लिए रणनीति तैयार हो रही है. रणभूमि में उतरे लड़ाकों की तरकश से ताबड़तोड़ बयानों के बाण छूटने शुरू हो गये हैं. कहीं बीफ और गो मांस की बात हो रही है, तो कहीं आरक्षण की. ऐसे में चुनाव को प्रभावित करनेवाले मसलों की बात करें, तो अहम यह है कि कृषि प्रधान जिले में विभिन्न दलों के एक दर्जन से अधिक राष्ट्रीय नेताओं का आगमन होने के बावजूद कृषि यहां मुद्दा नहीं बन पा रहा. खेत-खलिहान में आयोजित चुनाव सभाओं में किसानी की चर्चा न के बराबर हो रही है. छह विधानसभा सीटों से 86 उम्मीदवारों में से 40 फीसदी यानी 22 उम्मीदवार खुद किसान हैं. इनके नामांकन पत्रों में आजीविका का साधन कृषि दर्ज किया गया है. वहीं 13 उम्मीदवार व्यवसायी हैं एवं 12 खुद को समाजसेवी होने का दावा करते हैं. बाढ़, सुखाड़, सिंचाई, बिजली की किल्लत की चर्चा सभाओं और रैली से कोसों दूर है. कृषि से संबंधित अन्य समस्याओं यथा लीची व गन्ना किसानों के मुद्दे चुनाव प्रचार से गौण हैं. किसान नेता रामायण सिंह की मानें, तो किसान भुखमरी की स्थिति में हैं. पहले गेहूं फिर आम व अब धान की फसल बरबाद हो चुकी है. किसान बेचारा बने हुए हैं. दिग्गजों से लोहा लेने उतरे मजदूरचुनावी बिसात पर कई तरह के मोहरे दिख रहे हैं. कोई अरबपति, करोड़पति तो कोई फटेहाल और किसान भी. हथुआ, बरौली तथा बैकुंठपुर से चुनाव लड़ने वाले पांच मजदूर भी मैदान में दिग्गजों के मुकाबले खड़े हैं. 30 फीसदी उम्मीदवार नन मैट्रिक शिक्षा व स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति चाहे जितनी बेहतर हुई हो पर चुनावी मैदान में उतरे उम्मीदवारों पर इसकी छाप पड़ती नहीं दिख रही. अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिले की 6 विधानसभा क्षेत्र से खड़े उम्मीदवार में 30 फीसदी उम्मीदवार ऐसे हैं, जो नन मैट्रिक या बस साक्षर हैं.
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चुनावी मुद्दों से गायब है खेती-किसानी
चुनावी मुद्दों से गायब है खेती-किसानीछह विस क्षेत्रों से कुल 40 फीसदी प्रत्याशी किसान, फिर भी कृषि मुद्दा नहीं संवाददाता, गोपालगंजजिले में चौथे चरण में होनेवाले चुनाव के लिए रणनीति तैयार हो रही है. रणभूमि में उतरे लड़ाकों की तरकश से ताबड़तोड़ बयानों के बाण छूटने शुरू हो गये हैं. कहीं बीफ और गो मांस […]
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