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सारे मोहरे अभी नेपथ्य में

बैकुंठपुर विधानसभा चुनाव की तैयारी शुरू हो गयी है. राजनीतिक दलों के नायक अपने तैयार मोहरों को लेकर नेपथ्य में हैं. गंठबंधन की राजनीति की वजह से फिलहाल वे अपने मोहरों को परदे से बाहर नहीं कर रहे हैं. बैकुंठपुर विधानसभा की चुनावी लड़ाई अब तकदो परिवारों में सिमटी रही है. विगत दो बार से […]

बैकुंठपुर

विधानसभा चुनाव की तैयारी शुरू हो गयी है. राजनीतिक दलों के नायक अपने तैयार मोहरों को लेकर नेपथ्य में हैं. गंठबंधन की राजनीति की वजह से फिलहाल वे अपने मोहरों को परदे से बाहर नहीं कर रहे हैं. बैकुंठपुर विधानसभा की चुनावी लड़ाई अब तकदो परिवारों में सिमटी रही है.

विगत दो बार से यह सीट जदयू के खाते में रही है. वर्तमान में यहां के विधायक जदयू के मंजीत कुमार सिंह हैं, जिन्होंने राजद के देवदत्त प्रसाद को हराया. पिछले आधे दर्जन विधानसभा चुनावों में बैकुंठपुर की सीट मंजीत सिंह एवं उनके पिता स्व ब्रजकिशोर नारायण सिंह या देवदत्त प्रसाद के पास रही है. इस बार देवदत्त प्रसाद के पुत्र पाला बदल कर भाजपा में जा मिले है. वहीं राजद-जदयू और कांग्रेस के बीच गंठबंधन है. परदे के भीतर से सभी दल अपने मोहरे तैयार कर चुके हैं. अब लड़ाई इस पर टिकी है कि गंठबंधन के किस दल को यह सीटमिलती है.

देखना है कि क्या विधानसभा चुनाव में एक बार फिर लड़ाई दो परिवारों के बीच होगी या इस बार समीकरण बदलेगा. तैयारी के बीच कयासों का दौर जारी है. और यहां सीधा संघर्ष से इनकार नहीं किया जा सकता हैं.

अब तक

दो बार जदयू, तीन बार राजद ,दो बार जनता पार्टी को जीत मिली. जनता पार्टी के ओर से स्व ब्रजकिशोर नारायण सिंह एक बार मंत्री बने थे.

इन दिनों

परचा पर चर्चा व घर- घर दस्तक कार्यक्रम के माध्यम से जदयू लोगों से संपर्क रहा हैं. वहीं भाजपा पंचायत स्तर पर सम्मेलन कर रही हैं.

सीट बंटवारे का इंतजार

बरौली

बरौली विधानसभा सीट पर भाजपा का कब्जा है. पिछले चार वार के चुनाव में उसी के उम्मीदवार यहां से जीतते रहे हैं. यहां से रामप्रवेश राय लगातार विधायक रहे हैं. पिछले चुनाव में उन्होंने राजद के एम नेमतुल्लाह को मतों के बड़े अंतर से हराया था. उन्हें 39.38 फीसदी वोट मिले थे, जबकि राजद प्रत्याशी के पक्ष में 30.31 प्रतिशत मत पड़े. यहां बसपा ने भी उम्मीदवार दिया था, लेकिन उसकी जमानत भी नहीं बची थी. लोकसभा चुनाव में यहां भाजपा के वोट प्रतिशत में भारी वृद्धि हुई, जबकि जदयू तीसरे स्थान पर रहा. उसके प्रत्याशी की जमानत तक नहीं बची थी. उससे बेहतर प्रदर्शन कांग्रेस का रहा था, जिसे राजद का भी समर्थन हासिल था. इस बार महागंठबंधन में यह सीट किसके खाते में जाती है, इस पर हर नेता और घटक दल की नजर है. वैसे यह राजद का प्रभाव वाला क्षेत्र रहा है. फिलवक्त सभी दलों में टिकट पाने की उम्मीद रखने वाले नेताओं की सूची लंबी है. इसमें से कुछ ने अपनी सक्रियता भी बढ़ा दी है.

अब तक

यह विधानसभा सीट अब तक चार बार भाजपा, दो बार राजद , एक बार निर्दलीय उम्मीदवार और तीन बार कांग्रेस के हाथों में रही है.

इन दिनों

सभी पार्टियां विस स्तर पर कार्यक्रम कर रही हैं. भाजपा का रथ गांव -गांव जा रहा है. वहीं जदयू का हर घर दस्तक कार्यक्रम अंतिम चरण में है.

गंडक का कहर इस बार मुद्दा

गोपालगंज

गोपालगंज सदर विधानसभा क्षेत्र की 40 फीसदी आबादी गंडक की कहर से त्रस्त रही है. विस्थापितों के दर्द पर मरहम लगाने और गंडक के कहर से निजात दिलाने में सरकार और विधायक विफल रहे हैं. शहर के हालात नहीं बदले. शिक्षा की व्यवस्था नहीं हो सकी. चीनी मिल किसानों को दर्द देता रहा . इस बार के विधानसभा चुनाव में ये सवाल उठेंगे. पिछले दो चुनाव से इस सीट से भाजपा के सुभाष सिंहजीतते आये हैं. पिछले चुनाव में उन्होंने राजद के रिजाजुल हक राजू को भारी मतों के अंतर से हराया था. कांग्रेस यहां तीसरे स्थान पर रही थी. उसकी जमानत तक नहीं बची थी. लोकसभा चुनाव में भाजपा का वोट ग्राफ बढ़ा था. सुभाष सिंह के एक बार फिर भाजपा के टिकट से चुनाव लड़ने की संभावना है, जबकि महागंठबंधन में अभी टिकट के बंटवारे पर सब की नजर है. वैसे यह राजद का प्रभाव वाला क्षेत्र है.

इस बार यहां का समीकरण बदला -बदला होगा. गोपालगंज विधानसभा के पूर्व के चुनावों को देखा जाए, तो लगातार दो विधानसभा चुनावों से इस सीट पर भाजपा का कब्जा रहा है. उस समय भाजपा व जदयू साथ रहे. इस बार जदयू, राजद और कांग्रेस एक साथ हैं. तीनों पार्टियों से अंदर ही अंदर आधा दर्जन लोग क्षेत्र में जनता के बीच अपनी पहचान बनाने की कोशिश में हैं. महागंठबंधन और एनडीए की ओर से अपनी दावेदारी जताने वाले उम्मीदवार प्रतीक्षा में कि यह सीट किस दल के पाले में आती है.असली जंग तब होगी जब गंठबंधन दल पार्टी के सीटों का खुलासा कर देगा. मुद्दा क्या होगा समीकरण कैसे होंगे और रणक्षेत्र में कौन होगा सारा कुछ सीटों के बटवारा के बाद तय होगा. लेकिन प्रयास का शतरंजी चाल जारी हैं.

अब तक

इस विधानसभा सीट से अभी तक दो बार भाजपा, एक बार बसपा, दो बार राजद के उम्मीदवार तथा एक बार निर्दलीय ने जीत दर्ज की हैं.

इन दिनों

भाजपा केंद्र की योजनाओं के बारे में लोगों को बता रही है. जदयू परचा पर चर्चा कार्यक्रम लेकर उतरा है. राजद नेता भी जन संपर्क कर रहे हैं.

विकास का देना होगा हिसाब मोहरों की तैयारी

कुचायकोट

परिसीमन के बाद पहली बार अस्तित्व में आये कुचायकोट विधानसभा सीट जदयू के कब्जे में है. पिछले चुनाव में इसके अमरेंद्र कुमार पांडेय ने राजद के आदित्य नारायण पांडेय को वोटों के बड़े अंतर से हराया था.अमरेंद्र को 40.92 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि आदित्य के पक्ष में 25.50 प्रतिशत वोट पड़े. लोकसभा चुनाव में जदयू से अलग होने के बाद भी भाजपा के वोट में लगभग 19-20 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि जदयू की जमानत तक नहीं बची थी. राजद के समर्थन से चुनाव लड़े कांग्रेस प्रत्याशी को लोकसभा चुनाव में 18.80 फीसदी वोट मिले थे. यानी भाजपा हर पार्टी पर भारी पड़ी थी. इस बार भी भाजपा की ओर से वर्तमान विधायक के ही चुनाव लड़ने की संभावना है, जबकि महागंठबंधन में कांग्रेस, राजद और जदयू के बीच सीट का बंटवारा तय होना है. लगभग सभी दलों में संभावित उम्मीदवरों की लंबी सूची है, लेकिन देखना यह होगा कि कौन पार्टी किसे अपना उम्मीदवार बनाती है.

तब उमेश प्रधान 17 हजार से अधिक वोट काटे थे. अब उमेश प्रधान भाजपा में हैं और आदित्य पांडेय भाजपा के टिकट पर एमएलसी बन गये हैं. ऐसे में यदि सीट राजद के पाले में गया, तो चेहरा नया होगा. वहीं, इस सीट पर लोजपा और भाजपा दोनों का दावा है. सीटिंग विधायक के अलावा अलग-अलग दलों से दावेदारी को ले आधा दर्जन से अधिक लोग चर्चा में हैं. लेकिन शतरंज की चाल पार्टी के टिकट बंटवारे पर जा टिकी है. फिलहाल नेपथ्य के चौराहे पर चुनावी खड़े तो हुंकार भर रहे हैं.

अब तक

पहली बार अस्तित्व में आये इस सीट पर जदयू की जीत हुई. इसके पूर्व कटेया विस क्षेत्र से एक बार बसपा व दो बार राजद के प्रत्याशी जीते.

इन दिनों

अपने कार्यक्रमों के माध्यम से जदयू का जनसंपर्क जोरों पर है.भाजपा समझाने में लगी है कि विकास के लिए केंद्र के साथ यहां भी उसकी सरकार हो.

कैसे हो क्राइम पर कंट्रोल

हथुआ

हथुआ विधानसभा क्षेत्र में इस बार विधानसभा चुनाव में अपराधमुक्त माहौल बनाना बड़ा मुद्दा होगा. आपराधिक गतिविधियों के कारण लोगों में भय की स्थिति रही है. वहीं, जदयू के सचेतक रहे रामसेवक के लिए यह सीट प्रतिष्ठा का विषय होगा. हथुआ विधानसभा क्षेत्र कोइरी -कुर्मी बहुल माना जाता है. विगत चुनाव में बिजली को बड़ा मुद्दा बनाया गया था . पिछला चुनाव भाजपा और जदयू मिल कर लड़े थे. वहीं राजद के उम्मीदवार रहे राजेश सिंह को मुसलिम मतदाताओं ने का साथ नहीं मिला था, क्योंकि बाबुद्दीन खां भी चुनाव लड़ रहे थे. इस बार, सब कुछ बदला -बदला है. राजद -जदयू और कांग्रेस एक साथ हैं. वहीं, इस बार रालोसपा और लोजपा भाजपा के साथ हैं. सीट के लिए सभी दावेदारी कर रहे हैं. लेकिन, एनडीए की ओर से सबसे बड़ा दावा रालोसपा का हैं. जनता चुप्पी साधे है. लेकिन, सीट का बंटवारा चाहे जैसे हो. दो दलों के बीच ही टक्कर की उम्मीद है.वही, कई पार्टियों के नेता टिकट पाने के लिए अपना पाला भी बदल सकते हैं

अब तक

इस विधानसभा क्षेत्र से अब तक दो बार जदयू के उम्मीदवार जीते हैं, वहीं दो बार जनता ने राजद के उम्मीदवार को जीत का ताज पहनाया है.

इन दिनों

सभी दल अपने-अपने कार्यक्रमों के माध्यम से लोगों को रिझाने का प्रयास कर रहा है. क्षेत्र में सभी दलों के नेताओं का दौरा तेज हो गया है.

हथुआ विधानसभा क्षेत्र में इस बार विधानसभा चुनाव में अपराधमुक्त माहौल बनाना बड़ा मुद्दा होगा. आपराधिक गतिविधियों के कारण लोगों में भय की स्थिति रही है. वहीं, जदयू के सचेतक रहे रामसेवक के लिए यह सीट प्रतिष्ठा का विषय होगा. हथुआ विधानसभा क्षेत्र कोइरी -कुर्मी बहुल माना जाता है. विगत चुनाव में बिजली को बड़ा मुद्दा बनाया गया था . पिछला चुनाव भाजपा और जदयू मिल कर लड़े थे. वहीं राजद के उम्मीदवार रहे राजेश सिंह को मुसलिम मतदाताओं ने का साथ नहीं मिला था, क्योंकि बाबुद्दीन खां भी चुनाव लड़ रहे थे. इस बार, सब कुछ बदला -बदला है. राजद -जदयू और कांग्रेस एक साथ हैं. वहीं, इस बार रालोसपा और लोजपा भाजपा के साथ हैं. सीट के लिए सभी दावेदारी कर रहे हैं. लेकिन, एनडीए की ओर से सबसे बड़ा दावा रालोसपा का हैं. जनता चुप्पी साधे है. लेकिन, सीट का बंटवारा चाहे जैसे हो. दो दलों के बीच ही टक्कर की उम्मीद है.वही, कई पार्टियों के नेता टिकट पाने के लिए अपना पाला भी बदल सकते हैं

अब तक

इस विधानसभा क्षेत्र से अब तक दो बार जदयू के उम्मीदवार जीते हैं, वहीं दो बार जनता ने राजद के उम्मीदवार को जीत का ताज पहनाया है.

इन दिनों

सभी दल अपने-अपने कार्यक्रमों के माध्यम से लोगों को रिझाने का प्रयास कर रहा है. क्षेत्र में सभी दलों के नेताओं का दौरा तेज हो गया है.

विकास के इंतजार में लोग

भोरे (अजा)

भोरे सुरक्षित विधानसभा क्षेत्र का अब तक सर्वागीण विकास नहीं हुआ. क्षेत्र के लोग विकास के इंतजार में हैं. आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर इस क्षेत्र में गतिविधियां तेज हो गयी हैं. राजनीति के सुरमा अपनी बिसात बिछाने में लगे हैं. विगत चुनाव में यह सीट भाजपा के इंद्रदेव मांझी के हाथ लगी और राजद को शिकस्त खानी पड़ी थी. उस समय दोंनों ही पार्टियों के नये चेहरे थे. तब जदयू -भाजपा का गंठजोड़ था. इस बार यहां का राजनीतिक समीकरण बदला-बदला है. महागंठबंधन के बाद राजद-कांग्रेस और जदयू में से यह सीट किसे मिलती है, यह देखना होगा. वहीं, भाजपा के साथ इस बार रालोसपा तथा लोजपा है. एनडीए के घटक दलों से भी इस सीट के लिए दावेदारी है. चल रही अटकलों पर गौर करें तो यहां के पुराने धुरंधर भी अपना पाला बदल सकते हैं. भाजपा के मांझी को जहां अपने कार्यो का हिसाब देने में पसीना छुटेगा. वहीं केंद्र में भाजपा की सरकार होने का लाभ उन्हें मिल सकता है.

जनता सरकार और विधायक दोनों से हिसाब पूछने के मुंड में है. ऐसे में यहां का खेल पार्टी और प्रत्याशी पर जा कर टिकेगी. फिलहाल दो पृष्ट भूमि यहां बन कर तैयार हैं और यहां सवर्ण निर्णायक भूमिका निभायेंगे.

अब तक

भोर सुरक्षित विधानसभा सीट से अब तक भाजपा को दो बार जीत मिली है. वहीं, राजद के उम्मीदवार भी दो बार जीतने में सफल रहे हैं.

इन दिनों

भाजपा ,राजद, और जदयू के संभावित उम्मीदवार अपने -अपने दावे मजबूत करने के लिए क्षेत्र की जनता से लगातार संपर्क करने में जुटे हैं.

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