परैया.
27 अक्तूबर 2013 का वो दिन, जब पटना के गांधी मैदान में तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हुंकार रैली थी. गया जिले के कोंच प्रखंड के कुरमावा गांव के 55 वर्षीय बिलाश मांझी के लिए एक ऐसा खौफनाक मंजर बन गया, जिसकी टीस आज भी उनके जिस्म और ज़हन में ताज़ा है. बिलाश मांझी, जो 12 वर्ष पहले इस ऐतिहासिक रैली में शामिल होने ट्रेन से पटना गये थे, वह सभा में हुए सिलसिलेवार बम विस्फोटों में गंभीर रूप से घायल हो गये थे. आज भी, उस हादसे की याद भर से उनके रोंगटे खड़े हो जाते हैं. विलास मांझी ने बताया कि रैली में मोदी जी के आगमन के कारण गांधी मैदान में लाखों लोगों की भीड़ उमड़ी थी. ट्रेनों से आने वालों की भारी संख्या के कारण स्टेशन पर भी जबरदस्त भीड़ थी. इसी दौरान पहला धमाका सुबह 10 बजे रेलवे स्टेशन के शौचालय में हुआ. इसके बाद गांधी मैदान के आसपास पांच और धमाके हुए. मैं सभा स्थल से काफी दूर एक एलसीडी स्क्रीन के पास था, जहां मोदी जी का भाषण शुरू होने वाला था. तभी, मेरे से महज 10 मीटर की दूरी पर एक जबरदस्त धमाका हुआ, उन्होंने याद करते हुए बताया. बम का एक टुकड़ा उनके दाहिने हाथ में लगा और आरपार हो गया. बिलाश मांझी बताते हैं कि उनकी किस्मत अच्छी थी कि बम का टुकड़ा अन्य जगह पर नहीं, बल्कि बांह पर लगा. धमाके के बाद, चारों तरफ अफरा-तफरी का माहौल था, और चीख-पुकार मची थी. उस दिन, बिलाश मांझी समेत 83 घायल लोग अस्पताल में भर्ती हुए थे, और इस आतंकी घटना में छह लोगों की जान चली गयी थी. उन्होंने यह भी बताया कि रेलवे स्टेशन पर एक धमाका बम को डिफ्यूज किये जाने के दौरान भी हुआ था. बिलाश मांझी ने आज भी अपने हाथ पर मौजूद बम के निशान दिखाकर उस दर्दनाक हादसे को साझा किया. हालांकि, इस हादसे के बाद भी बिलाश मांझी ने जनसेवा और सामाजिक कार्यों में अपना योगदान जारी रखा. उनकी पत्नी, मीना देवी, वर्ष 2006 से 2016 तक लगातार दो कार्यकाल के लिए कुरमावा पंचायत की मुखिया रही हैं. इस दौरान, बिलाश मांझी को भी क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने और जनता के बीच काम करने का मौका मिला. बिलाश मांझी अपनी एक और प्रमुख मुहिम के लिए जाने जाते हैं: ””””माउंटेन मैन”””” दशरथ मांझी को भारत रत्न दिलाने की मांग. इस मुहिम के तहत, वह पैदल गया से दिल्ली तक की लंबी यात्रा भी कर चुके हैं.27 अक्तूबर 2013 का वो दिन, जब पटना के गांधी मैदान में तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हुंकार रैली थी. गया जिले के कोंच प्रखंड के कुरमावा गांव के 55 वर्षीय बिलाश मांझी के लिए एक ऐसा खौफनाक मंजर बन गया, जिसकी टीस आज भी उनके जिस्म और ज़हन में ताज़ा है. बिलाश मांझी, जो 12 वर्ष पहले इस ऐतिहासिक रैली में शामिल होने ट्रेन से पटना गये थे, वह सभा में हुए सिलसिलेवार बम विस्फोटों में गंभीर रूप से घायल हो गये थे. आज भी, उस हादसे की याद भर से उनके रोंगटे खड़े हो जाते हैं. विलास मांझी ने बताया कि रैली में मोदी जी के आगमन के कारण गांधी मैदान में लाखों लोगों की भीड़ उमड़ी थी. ट्रेनों से आने वालों की भारी संख्या के कारण स्टेशन पर भी जबरदस्त भीड़ थी. इसी दौरान पहला धमाका सुबह 10 बजे रेलवे स्टेशन के शौचालय में हुआ. इसके बाद गांधी मैदान के आसपास पांच और धमाके हुए. मैं सभा स्थल से काफी दूर एक एलसीडी स्क्रीन के पास था, जहां मोदी जी का भाषण शुरू होने वाला था. तभी, मेरे से महज 10 मीटर की दूरी पर एक जबरदस्त धमाका हुआ, उन्होंने याद करते हुए बताया. बम का एक टुकड़ा उनके दाहिने हाथ में लगा और आरपार हो गया. बिलाश मांझी बताते हैं कि उनकी किस्मत अच्छी थी कि बम का टुकड़ा अन्य जगह पर नहीं, बल्कि बांह पर लगा. धमाके के बाद, चारों तरफ अफरा-तफरी का माहौल था, और चीख-पुकार मची थी. उस दिन, बिलाश मांझी समेत 83 घायल लोग अस्पताल में भर्ती हुए थे, और इस आतंकी घटना में छह लोगों की जान चली गयी थी. उन्होंने यह भी बताया कि रेलवे स्टेशन पर एक धमाका बम को डिफ्यूज किये जाने के दौरान भी हुआ था. बिलाश मांझी ने आज भी अपने हाथ पर मौजूद बम के निशान दिखाकर उस दर्दनाक हादसे को साझा किया. हालांकि, इस हादसे के बाद भी बिलाश मांझी ने जनसेवा और सामाजिक कार्यों में अपना योगदान जारी रखा. उनकी पत्नी, मीना देवी, वर्ष 2006 से 2016 तक लगातार दो कार्यकाल के लिए कुरमावा पंचायत की मुखिया रही हैं. इस दौरान, बिलाश मांझी को भी क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने और जनता के बीच काम करने का मौका मिला. बिलाश मांझी अपनी एक और प्रमुख मुहिम के लिए जाने जाते हैं: ””””माउंटेन मैन”””” दशरथ मांझी को भारत रत्न दिलाने की मांग. इस मुहिम के तहत, वह पैदल गया से दिल्ली तक की लंबी यात्रा भी कर चुके हैं.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

