Bihar News: बिहार के गया जिले में आमस प्रखंड का बनकट गांव पूरे राज्य और देश के लिए एक मिसाल बना हुआ है. जहां एक ओर बिहार में अपराध और कानून व्यवस्था को लेकर अक्सर सवाल उठते रहते हैं, वहीं यह छोटा सा गांव पिछले 111 वर्षों से ‘जीरो केस’ का रेकॉर्ड बनाए हुए है. यहां के लोगों ने न कभी थाना देखा, न कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटे. और यह कोई संयोग नहीं, बल्कि गांव की मजबूत सामाजिक व्यवस्था, आपसी समझदारी और परंपरागत पंचायती तंत्र का नतीजा है.
एक भी एफआईआर नहीं, कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं
बनकट गांव से आज तक एक भी एफआईआर दर्ज नहीं हुई है. आमस थाना की पुलिस पुष्टि करती है कि उनके कार्यकाल सहित अब तक गांव का एक भी मामला थाने में दर्ज नहीं हुआ है. बनकट गांव में न तो किसी व्यक्ति पर आपराधिक आरोप है और न ही कोई लंबित मुकदमा. यह अपने आप में एक दुर्लभ उदाहरण है.
विवाद होते हैं, समाधान गांव के अंदर ही
यहां भी इंसानों के बीच छोटे-मोटे विवाद होते हैं, लेकिन उसका समाधान गांव की पारंपरिक पंचायती व्यवस्था में खोज लिया जाता है. पंचायत के बुजुर्ग और पंच मिलकर निष्पक्ष फैसला सुनाते हैं, जिसे दोनों पक्ष मानते हैं. गांव के वरिष्ठ लोगों का कहना है कि पंचों का फैसला अंतिम माना जाता है. अगर कोई नियम तोड़ता है या पंचायत के फैसले से भटकता है, तो उस पर दंड लगाया जाता है.
पंचों की व्यवस्था और सामाजिक योगदान
गांव की पंचायती में दोनों पक्षों से दो-दो व्यक्ति और एक तटस्थ बुजुर्ग पंच शामिल होते हैं. फैसले के बाद जो दंड राशि मिलती है, उसे गांव के सामाजिक कार्यों, गरीबों की शादी, इलाज या जरूरतमंदों को कर्ज देने में इस्तेमाल किया जाता है.
परंपरा का सम्मान, तकनीक का समावेश
गांव के लोग बताते हैं कि पहले तो थाना दूर था, लेकिन अब अच्छी सड़कें हैं, गाड़ियां हैं, फिर भी लोग बाहर नहीं जाते. यह गांव की संस्कृति और आपसी विश्वास का प्रमाण है. यहां का हर निवासी जानता है कि कोई मामला सुलझाना है तो पहले अपने गांव में हल निकालना होगा.
1914 में हुई थी गांव की स्थापना
बनकट गांव की स्थापना वर्ष 1914 में हुई थी. तब केवल चार-पांच घर थे, जंगल और पहाड़ियों से घिरा इलाका था. आज गांव में बिजली, पानी और सड़क जैसी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध हैं, लेकिन आज भी यहां की सबसे बड़ी पूंजी है. शांति और सद्भाव.
देश के लिए मिसाल
जब कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर बिहार की आलोचना होती है, तब बनकट गांव यह बताता है कि समस्या का हल सिर्फ कानून से नहीं, समाज से भी निकल सकता है. यह गांव हमें यह सिखाता है कि समझदारी, संवाद और सामाजिक भागीदारी से हर विवाद को बिना कोर्ट-कचहरी के भी सुलझाया जा सकता है.