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शेरघाटी में बढ़ी चुनावी तपिश, वोटरों की चुप्पी ने बढ़ायी प्रत्याशियों की बेचैनी

मतदान की तिथि नजदीक आते ही शेरघाटी विधानसभा क्षेत्र में चुनावी माहौल गर्म होने लगा

शेरघाटी. मतदान की तिथि नजदीक आते ही शेरघाटी विधानसभा क्षेत्र में चुनावी माहौल गर्म होने लगा है. गांव से लेकर बाजार तक चर्चा सिर्फ चुनाव की है. कार्यकर्ता प्रचार प्रसार में जुटे हैं, लेकिन मतदाताओं की चुप्पी ने प्रत्याशियों की नींद उड़ा दी है. जनता बोल कम रही है, पर सबकी नजरें चुनावी समीकरणों पर टिकी हैं. शेरघाटी के जेपी चौक स्थित एक होटल में 10 से 12 लोग चाय की चुस्की लेते हुए चुनावी चर्चा में मशगूल दिखे. जब उनसे माहौल पर सवाल किया गया तो किसान जितेंद्र प्रसाद ने कहा कि चुनाव की बात बाद में करेंगे, पहले खेती-बाड़ी संभालनी है. उन्होंने बताया कि खेती के मौसम में खाद की किल्लत हमेशा रहती है. बाजार में खाद गायब हो जाती है और जो मिलती भी है, वह ऊंचे दामों पर. किसान रौशन कुमार ने बताया कि इलाके के किसान आज भी बरसात के पानी पर निर्भर हैं. नहर और आहर की सही व्यवस्था नहीं होने से सिंचाई में कठिनाई होती है. रबी फसल की बुआई भी बारिश में बाधित हो गयी, जिससे किसान परेशान हैं. वहीं युवा मतदाता संतोष कुमार ने कहा कि अबकी बार चुनाव में सिर्फ नाली-गली की नहीं, बल्कि स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार और पलायन जैसे मुद्दों पर बात होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि मुख्य रूप से एनडीए और महागठबंधन आमने-सामने हैं, लेकिन दोनों ही दलों ने इन बुनियादी विषयों पर अब तक खुलकर बात नहीं की है. वहीं इन मुद्दों पर जन सुराज बात कर रही है. संतोष ने कहा कि बिहार के युवा रोजगार की तलाश में लगातार पलायन कर रहे हैं. सरकार को इस दिशा में ठोस कदम उठाने की जरूरत है, ताकि स्थानीय स्तर पर रोजगार, बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं और उच्च शिक्षा की व्यवस्था हो सके. जनता अब बदलाव चाहती है, लेकिन मौन रहकर अपनी राय बनाने में जुटी है. इस बार शेरघाटी विधानसभा क्षेत्र का चुनावी माहौल काफी अलग महसूस हो रहा है.

स्थानीय मुद्दों की प्रधानता

नाली-गली से आगे बढ़कर लोग अब रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य और पलायन जैसे मुद्दों पर चर्चा कर रहे हैं. खासकर युवा मतदाता चाहते हैं कि चुनाव में सिर्फ जाति या धर्म नहीं, बल्कि विकास की बात हो.

किसानों की नाराजगी

खाद की किल्लत, सिंचाई की समस्या और बारिश पर निर्भर खेती जैसे मुद्दे किसानों के बीच असंतोष फैला रहे हैं. किसान अब नेता से सीधी जवाबदेही की उम्मीद कर रहे हैं.

सोशल मीडिया की भूमिका

युवा वर्ग अब सोशल मीडिया पर चुनावी बहस कर रहा है. पोस्ट, वीडियो और लोकल खबरें चुनाव लहर को प्रभावित कर रही हैं.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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