Bihar News: बिहार के गया जिले का चिरियावां गांव अपनी अनोखी पहचान के लिए पूरे देश में चर्चा का विषय बन चुका है. अतरी प्रखंड के इस छोटे से गांव में लगभग 80 घर हैं, लेकिन गौरव की बात यह है कि हर घर से कोई न कोई बेटा देश की सेवा में जुटा है. सेना, नेवी, एयरफोर्स, सीआरपीएफ, सीआईएसएफ और बिहार पुलिस हर सेक्टर में यहां के लोग डटे हुए हैं. यही वजह है कि इस गांव को अब ‘विलेज ऑफ आर्मी’ के नाम से जाना जाता है.
1960 में शुरू हुई परंपरा, जो आज भी कायम है
इस गौरवशाली परंपरा की शुरुआत हुई थी 1960 में, जब गांव के रंजीत सिंह भारतीय सेना में भर्ती हुए. तब से लेकर अब तक गांव के 100 से अधिक युवा देश के विभिन्न रक्षा और सुरक्षा बलों में अपनी सेवाएं दे चुके हैं या वर्तमान में दे रहे हैं. यह परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ती रही और आज भी गांव के युवा फौज में जाने का सपना लेकर तैयारी करते हैं.
कभी नक्शे पर नहीं था ये गांव, आज बना मिसाल
चिरियावां एक समय ऐसा गांव था, जिसे भारत के नक्शे पर भी नहीं देखा जाता था. पहाड़ियों से घिरे इस गांव में सड़क जैसी मूलभूत सुविधा भी नहीं थी. बीमार होने पर इलाज का कोई साधन नहीं होता था, जिससे कई लोगों की जान चली जाती थी. लेकिन गांव के युवाओं ने जब रक्षा सेवाओं में अपनी जगह बनानी शुरू की, तब न सिर्फ गांव की पहचान बनी, बल्कि हाल के वर्षों में पहाड़ काटकर सड़क भी बनाई गई.
वर्दी की गरिमा का विशेष ध्यान, न दिखावा न घमंड
इस गांव की एक अनोखी परंपरा भी है. यहां डिफेंस सेक्टर में कार्यरत कोई भी जवान छुट्टी में गांव आता है तो वर्दी पहनकर नहीं आता. बुजुर्गों का मानना है कि वर्दी देश की शान होती है, और इसे केवल ड्यूटी के समय ही पहनना चाहिए. गांव के पूर्व सैनिक राम सिहासन सिंह और सुरेंद्र सिंह बताते हैं कि यह परंपरा न केवल दिखावे से बचने के लिए है, बल्कि एक दौर में गांव पर नक्सलियों का प्रभाव भी इसका कारण था.
देशभक्ति से सराबोर चिरियावां की पहचान
चिरियावां गांव अब महज एक गांव नहीं, बल्कि देशभक्ति और अनुशासन का प्रतीक बन चुका है. यहां की मिट्टी में ही शायद कुछ खास है, जो हर घर से एक सपूत देश की सेवा के लिए निकलता है. यह गांव बताता है कि राष्ट्र सेवा सिर्फ शब्दों में नहीं, परंपराओं, संस्कारों और समर्पण में भी झलकती है.
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