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मगध विवि के तत्कालीन कुलपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद समेत 29 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल, जानिए क्या है मामला

जांच में मगध विवि और वीर कुंवर सिंह विवि में कुल 18 करोड़ रुपये की राशि के गबन का अनुमान लगाया गया है. मामले के अनुसंधान के दौरान डॉ राजेंद्र प्रसाद के पास कुल 2.66 करोड़ रुपये की अनुपातहीन संपत्ति पायी गयी, जो उनके वैध आय से 500 प्रतिशत से ज्यादा है.

मगध विवि बोधगया और वीर कुंवर सिंह विवि आरा में सरकार द्वारा विभिन्न मदों में स्वीकृत करोड़ों की राशि का आपराधिक षड्यंत्र व भय दोहन कर बंदरबांट करने के मामले में विशेष निगरानी इकाई (एसवीयू) ने न्यायालय में आरोप पत्र दाखिल कर दिया है. दस्तावेजों के साथ करीब एक हजार पन्नों के दाखिल आरोप पत्र में मगध विवि बोधगया के तत्कालीन कुलपति डॉ राजेंद्र प्रसाद सहित 29 अभियुक्तों के नाम हैं. एसवीयू ने राज्यपाल सह कुलाधिपति से इन अभियुक्तों के विरुद्ध मुकदमा चलाने के लिए अभियोजन स्वीकृति देने और न्यायालय द्वारा कानूनी प्रक्रिया प्रारंभ किये जाने का निवेदन किया गया है.

आय से दस गुणा अधिक संपत्ति का खुलासा

विशेष निगरानी इकाई ने इस मामले में नवंबर 2021 में तत्कालीन कुलपति डॉ राजेंद्र प्रसाद और अन्य चार प्रो विनोद कुमार, प्रो जयनंदन प्रसाद सिंह, पुष्पेंद्र प्रसाद वर्मा और सुबोध वर्मा के विरुद्ध उपरोक्त मामला दर्ज किया था. इन पर अपने कार्यकाल के दौरान सरकारी राशि के बंदरबांट करने का आरोप था. करोड़ों की गबन राशि में एक बड़ा हिस्सा डॉ राजेंद्र प्रसाद के आय से अधिक संपत्ति एकत्र करने का माध्यम बना. एसवीयू ने आरोप पत्र में बताया है कि डॉ राजेंद्र प्रसाद ने अपने मगध विवि में कार्यकाल के दौरान इतना धनार्जन किया, जो कि उनके आय से दस गुना अधिक था.

18 करोड़ रुपये से अधिक के गबन का आरोप

एसयूवी के एडीजी नैययर हसनैन खां के मुताबिक जांच में मगध विवि और वीर कुंवर सिंह विवि में कुल 18 करोड़ रुपये की राशि के गबन का अनुमान लगाया गया है. मामले के अनुसंधान के दौरान डॉ राजेंद्र प्रसाद के पास कुल 2.66 करोड़ रुपये की अनुपातहीन संपत्ति पायी गयी, जो उनके वैध आय से 500 प्रतिशत से ज्यादा है. चूंकि मुख्य अभियुक्त डॉ राजेंद्र प्रसाद न्यायिक हिरासत में हैं, इसलिए अभियोजन चलाने के लिए प्रस्ता सक्षम प्राधिकार को भेजा गया है.

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कांड के अनुसंधान के दौरान विवि के अन्य पदाधिकारी कर्मियों के विरुद्ध अनियमितता के तथ्य सामने आये हैं. इसके लिए अलग से विभागीय कार्यवाही को लेकर प्रस्ताव संबंधित प्राधिकार को भेजा जा रहा है. एसयूवी के मुताबिक संभवत: किसी भी राज्य में विश्वविद्यालय में पदस्थापित उच्चाधिकारियों द्वारा किया गया घोटाला का यह पहला मामला उजागर हुआ है.

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