सरकारी अस्पताल में इलाज के नाम पर खानापूर्ति आम बात है. सैकड़ों लोग हर दिन इस उम्मीद से अस्पताल आते हैं कि मर्ज का सही इलाज हो जायेगा. लेकिन, डॉक्टरों की कमी के कारण उनका समुचित इलाज नहीं हो पा रहा है. मरीजों को महज कुछ दवा देकर लौटा दिया जाता है. इससे मरीजों में असंतोष है.
गया: मानपुर की रहनेवाली सरिता देवी पिछले तीन सप्ताह से जयप्रकाश नारायण (जेपीएन) अस्पताल का चक्कर काट रही है. उनके दांतों में तकलीफ है. जब वह चेकअप के लिए आती हैं, डाॅक्टर उन्हें दर्द की दवा दे कर चलता कर देते हैं. दवा से एक-दो दिन राहत मिलती है, फिर दर्द उभर आती है. सरिता गरीब हैं, प्राइवेट में इलाज नहीं करा सकतीं. जेपीएन में आना उनकी मजबूरी है. लिहाजा, हर कुछ दिन बाद वह अस्पताल आ जाती हैं, इस उम्मीद के साथ कि इस बार शायद उनके मर्ज का सही इलाज हो जायेगा. पर, अब तक वह उम्मीद में ही हैं. मानपुर के शादीपुर की रहनेवाली रीता देवी की भी कुछ ऐसी ही परेशानी है. रीता की आठ साल की बेटी बीमार है. जेपीएन में बेहतर इलाज की उम्मीद में आयी हैं. पर डाॅक्टर नहीं रहने से उनकी उम्मीद टूट गयी है. अस्पताल ओपीडी के बाहर पेड़ के नीचे बैठ कर वह इसी चिंता में हैं कि अब कहां जायें.
क्या हैं अस्पताल के हालात : जयप्रकाश नारायण अस्पताल में कई विभागों में डाॅक्टर नहीं हैं. सरिता व रीता जैसे सैकड़ों मरीज हर रोज अस्पताल का चक्कर लगा रहे हैं. गरीब हैं, कहां जायें, उन्हें समझ नहीं आता. इधर, जिले का स्वास्थ्य महकमा भी इस मामले को लेकर कुछ खास गंभीर नहीं दिख रहा है.
अस्पताल में कई विभागों में नहीं हैं डाॅक्टर : जयप्रकाश नारायण अस्पताल इन दिनों डाॅक्टरों की कमी झेल रहा है. अस्पताल में शिशु विभाग, स्कीन विभाग, आॅर्थो व दंत विभाग में डाॅक्टर नहीं हैं. कुछ दिन पहले इस अस्पताल के आठ चिकित्सकों का समायोजन समाप्त हो गया, इसके बाद से उन्हें हटा दिया गया. कुछ अन्य चिकित्सकों को बहाल जरूर किया गया, लेकिन वे दूसरी जगह प्रतिनियुक्त हैं. इस वजह से उनके लिए यहां अस्पताल में सेवा देना मुश्किल हो रहा है. इस हिसाब से यों कहें कि नये डाॅक्टरों की प्रतिनियुक्ति कागजों पर ही है.
गायनोकोलॉजिस्ट तो है, पर चाइल्ड स्पेशलिस्ट नहीं : अस्पताल में चार गॉयनोकोलॉजिस्ट तो हैं, लेकिन परेशानी यह है कि एक भी शिशु रोग विशेषज्ञ नहीं. नवजात बच्चों का इलाज या तो जैसे-तैसे हो रहा है या फिर परिवार अपने बच्चे को बचाने के लिए बाहर कहीं प्राइवेट अस्पताल में लेकर चले जाते हैं. इसका सबसे बुरा प्रभाव गरीब तबके के लोगों पर हो रहा है, जो अपने बच्चे के बेहतर इलाज के लिए प्राइवेट अस्पतालों का महंगा खर्च नहीं वहन कर सकते.
एक डाॅक्टर के भरोसे मेडिसिन डिपार्टमेंट
अस्पताल में सबसे ज्यादा मरीज जेनरल मेडिसिन विभाग में होते हैं. सरदी, खांसी, बुखार व अन्य सामान्य बीमािरयों का इलाज करनेवाले इस विभाग की जिम्मेवारी सिर्फ एक डाॅक्टर पर है. जानकारी के मुताबिक, मेडिसिन विभाग अभी सिर्फ एक डाॅक्टर के भरोसे हैं जाहिर सी बात है मरीजों की संख्या अधिक होने की वजह से डाॅक्टर एक मरीज पर ज्यादा वक्त भी नहीं दे पाते. कई मरीज ओपीडी के बाहर यह शिकायत करते हुए मिल जाते हैं कि बुखार पिछले कई दिनों से है, लेकिन जब भी डाॅक्टर साहेब के पास जाते हैं, पारासिटामोल पकड़ा देते हैं.