कंचन, गया : वर्ष 1953 से अब तक रचनाशील साहित्यकार डॉ राम निरंजन परिमलेंदु की रचनाएं अब तक डेढ़ साै से अधिक पत्र-पत्रिकाआें में प्रकाशित हाे चुकी हैं.
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साहित्य में अनछुए विषयाें के रचनाकार हैं डॉ राम निरंजन परिमलेंदु
कंचन, गया : वर्ष 1953 से अब तक रचनाशील साहित्यकार डॉ राम निरंजन परिमलेंदु की रचनाएं अब तक डेढ़ साै से अधिक पत्र-पत्रिकाआें में प्रकाशित हाे चुकी हैं. अब तक उनकी 30 से अधिक रचनाएं किताब के रूप में मार्केट में हैं आैर 20 से अधिक किताबें प्रकाशनाधीन हैं. डॉ परिमलेंदु ने हमेशा उन विषयाें […]
अब तक उनकी 30 से अधिक रचनाएं किताब के रूप में मार्केट में हैं आैर 20 से अधिक किताबें प्रकाशनाधीन हैं. डॉ परिमलेंदु ने हमेशा उन विषयाें काे छुआ, जिस पर अब तक किसी ने नहीं लिखा या फिर जाे पूर्व में लिखा भी गया, ताे भ्रांतिपूर्ण लेखन था.
शाेधपूर्ण लेखन डॉ परिमलेंदु की विशेषता है. गया जिले के टिकारी थाने के सिमुआरा गांव में जगन्नाथ प्रसाद के घर 24 अगस्त 1935 काे जन्मे डॉ राम निरंजन परिमलेंदु ने पहले अंग्रेजी आैर फिर हिंदी में स्नातकाेत्तर(एमए) की डिग्री प्राप्त की.
इसके बाद भागलपुर विश्वविद्यालय से उन्हाेंने पीएचडी की डिग्री हासिल की. हिंदी प्राध्यापक के रूप में बीआरए बिहार यूनिवर्सिटी, मुजफ्फरपुर में नाैकरी की. लेखन की शुरुआत उन्हाेंने इंटरमीडिएट में ही वर्ष 1953 में पहली रचना गद्य में ‘हिंदी में प्रयाेगवादी कविता ’ से की.
जब वह 1956 में पटना यूनिवर्सिटी से स्नातक कर रहे थे, तभी पटना में उनका सानिध्य नामचीन साहित्यकाराें में रामधारी सिंह दिनकर, नागार्जुन, रामवृक्ष बेनीपुरी, केदारनाथ मिश्र, राम दयाल पांडेय, आचार्य शिव पूजन सहाय आदि से हुआ. कविताएं लिखकर पाठ करने के दाैरान उक्त साहित्यकाराें से मुलाकात, बात हुई आैर फिर संबंध प्रगाढ़ हाेते चले गये.
कई पुरस्काराें से नवाजे गये
बिहार सरकार का सर्वाेच्च सम्मान ‘डॉ राजेंद्र प्रसाद शिखर सम्मान’, राजभाषा विभाग बिहार सरकार की आेर से ‘माेहनलाल महताे वियाेगी सम्मान’, बिहार सरकार द्वारा वयाेवृद्ध साहित्यकार सम्मान, विनाेबा नागरी सम्मान, भारतीय हिंदी परिषद(जयपुर, राजस्थान )की आेर से डॉ धीरेंद्र वर्मा सम्मान, जाे डॉ परिमलेंदु काे छाेड़ अब तक किसी बिहारी साहित्यकार काे नहीं मिला है. इसके अलावा अन्य कई पुरस्कार भी मिले हैं.
विलक्षण प्रतिभा के धनी
इस प्रकार डॉ परिमलेंदु के जीवन में झांके ताे पायेंगे वह विलक्षण प्रतिभा के धनी, अनुसंधानात्मक आलाेचना के संभवत: शिखर पुरुष, शाेध संसार के अति लब्धप्रतिष्ठ लेखक व विद्वान हैं, जिनसे आज के रचनाशील व नवांकुर लेखकाें काे प्रेरणा लेनी चाहिए.
बड़े प्रकाशकाें ने ही किताबाें का किया प्रकाशन
गया शहर के दक्खिन दरवाजा मुहल्ले में निवास करनेवाले डॉ परिमलेंदु की अब तक प्रकाशित सभी किताबाें के प्रकाशकाें में साहित्य अकादमी, राजहंस, राजकमल, वाणी प्रकाशन, नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी जैसे बड़े प्रकाशक हैं. अधिकतर किताबें साहित्य अकादमी से प्रकाशित हैं. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि उनकी सुदीर्घ, गहन आैर व्यापक साहित्य साधना है. उनके निर्देशन में अखिल भारतीय स्तर पर बहुत बड़ी संख्या में अनुसंधाताआें ने पीएचडी व डी लिट की शाेधाेपाधियां प्राप्त कीं.
शाेध निदेशक के रूप में अखिल भारतीय स्तर पर लब्ध प्रतिष्ठित हैं. उनकी एक रचना ‘भारतेंदु काल के भूले-बिसरे कवि आैर उनका काव्य’ काे जर्मनी में दाे साै साल के लिए सुरक्षित कर दिया गया है. जर्मनी में हुए इंटरनेशनल बुक फेयर में इस किताब की गहनता परखी गयी आैर फिर सुरक्षित किया गया.
इसकी खासियत यह है कि 750 कवियाें का अध्ययन किया गया है, जाे अब तक सर्वथा अज्ञात, अल्प ज्ञात, अगवेषित कवियाें का अध्ययन है. दूसरी ‘भारतेंदु काल के अल्प ज्ञात हिंदी गद्य साहित्य’ इलाहाबाद से प्रकाशित है. इस पुस्तक में गद्य की सारी विधाएं हैं किंतु पुस्तक में वे ही लाेग हैं,
जिनका याेगदान अत्यधिक था. लेकिन, इतिहास में उनके नाम का उल्लेख नहीं था. इन दाेनाें पुस्तकाें ने साहित्यिक इतिहास की धारा बदल दी. 68 नाटकाें का अध्ययन ‘भारत में अंग्रेजी रंगमंच का इतिहास’ लिखा.
‘देवनागरी लिपि आंदाेलन का इतिहास’ देवनागरी में किसी भाषा का पहला इतिहास
754 पृष्ठाें की ‘देवनागरी लिपि आंदाेलन का इतिहास’ जिसे साहित्य अकादमी ने प्रकाशित किया. बकाैल परिमलेंदु यह, वह पहली किताब है, जाे संसार की किसी भी भाषा में देवनागरी का पहला इतिहास है. डॉ परिमलेंदु काे हरिवंश राय बच्चन ने 250 पत्र लिखे थे, जिन्हें उन्हाेंने ‘बच्चन पत्राें के दर्पण में’ किताब का रूप दिया.
वर्ष 2019 की बात करें, ताे तीन पुस्तकें प्रकाशित हुईं हैं जिनमें ‘राधाचरण गाेस्वामी रचना संचयन’, ‘बलवंत भूमिहार’ व ‘धराऊ घटना’ है. राधाचरण गाेस्वामी रचना संचयन काे साहित्य अकादमी ने प्रकाशित किया है.
उनकी रचनाआें में ‘बिहार की हिंदी पत्रकारिता का उद्भव’, ‘राजा शिव प्रसाद सितारहिंद हिंदी व्याकरण’, ‘रामचंद्र शुक्ल का पहला हिंदी साहित्य का इतिहास’, ‘अयाेध्या प्रसाद खत्री प्रेमघन’, ‘माेहन लाल महताे वियाेगी’ आदि प्रमुख हैं. उन्हाेंने हिंदी का पहला माैलिक नाटक जिसे ज्ञानपीठ प्रकाशन ने प्रकाशित किया ‘अानंद रघुनंदन’ का भी संपादन किया. राधाकृष्ण प्रकाशन द्वारा प्रकाशित ‘देवनागरी लिपि आैर हिंदी संघर्षाें की ऐतिहासिक यात्रा’ का भी संपादन किया.
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