Darbhanga News: दरभंगा. जानकी नवमी के उपलक्ष्य में बुधवार को लनामिवि के पीजी मैथिली विभाग में ””””राष्ट्रीय चेतनाक संवाहिका सीता”””” विषय पर व्याख्यान में सीएम कालेज के प्राध्यापक डाॅ अमलेन्दु शेखर पाठक ने कहा कि राष्ट्रीय चेतना को सबलता के साथ प्रवाहित करने में मिथिला पुत्री सीता अप्रतिम हैं. भौगोलिक दृष्टि से जिस धरती के परिक्षेत्र को हम भारत राष्ट्र के रूप में देखते हैं, इस भूखंड की सुउपज सीता हैं. कहा कि सीता अतुलित बलशालिनी थी, तब ही तो उन्होंने उस शिव-धनुष को बाएं हाथ से खिलौने की तरह उठा लिया, जिसको विश्वामित्र एवं राम लक्ष्मण के समक्ष लाने के लिए पांच हजार बलशाली वीरों की शक्ति लगी. यह बात वाल्मीकि रामायण हमें बताती है. निर्भीकता और दृढ़ता की वे साक्षात प्रतिमूर्ति थीं. सीता का वन-गमन वस्तुत: राम के रामत्व की स्थापना और असुरों के संहार का मूल उद्देश्य था.
रावण का संहार करने में सक्षम थी सीता
कहा कि सीता खुद भी रावण का संहार कर पाने में सक्षम थी. रावण को कही थी कि तुम्हें अपने तेज से ही भस्म करने में सक्षम हूं, किंतु राम का आदेश प्राप्त नहीं है. डॉ पाठक ने वाल्मीकि रामायण के अनेक प्रसंगों की चर्चा करते हुए सीताराम झा के ””””अंबचरित”””” महाकाव्य के साथ ही अन्य मैथिली रचनाकारों की चर्चा की. कहा कि आज के संदर्भ में राष्ट्रीय चेतना की संवाहिका के रूप में सीता की प्रासंगिकता बनी हुई है.
संपूर्ण राष्ट्र को एकता के सूत्र में बांधने में सक्षम
डॉ पाठक ने कहा कि सीता का प्राकट्य अकाल के समय हुआ था. प्राकट्य के बाद वृष्टि हुई और जल की कमी दूर हो गई. उन्हें आदर्श प्रतीक बनाकर जल संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण से मुक्ति एवं आतंकवाद के उच्छेद को साकार किया जा सकता है. वह संपूर्ण राष्ट्र को एकता के सूत्र में बांधने में सक्षम हैं. धरती से प्रकट होने के कारण वह जाति, धर्म और पंथ से ऊपर हैं. जिस तरह किसी पैदावार की कोई जाति-धर्म नहीं उसी तरह सीता भी हैं. आवश्यकता इस तथ्य को समझकर अंगीकार करने की है. अध्यक्षता डॉ सुनीता कुमारी ने की. प्रियंका एवं नेहा ने गोसाउनिक गीत की प्रस्तुति दी. संचालन डॉ सुरेश पासवान ने किया.
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