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Darbhanga News: प्रेरणा, ज्ञान व अनुभव की नयी सौगात दे गया बेसिकॉन- 2025

Darbhanga News: दरभंगा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में आयोजित तीन दिवसीय सर्जिकल कॉन्फ्रेंस बेसिकान 2025 का रविवार को समापन हो गया.

Darbhanga News: दरभंगा. दरभंगा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में आयोजित तीन दिवसीय सर्जिकल कॉन्फ्रेंस बेसिकान 2025 का रविवार को समापन हो गया. अंतिम दिन सुबह से ही विभिन्न विभागों के जूनियर व सीनियर डॉक्टरों की सक्रिय उपस्थिति ने कार्यक्रम को और भी महत्वपूर्ण बना दिया. समापन पर आयोजित साइंटिफिक सेशन, पेपर प्रेजेंटेशन व पोस्टर प्रेजेंटेशन ने प्रतिभागियों की शोध व दक्षता को प्रदर्शित किया, जिसमें देश के कई राज्यों से आए प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया. कार्यक्रम के अंतिम दिन लेप्रोस्कोपिक सर्जरी पर केंद्रित विशेष कार्यशाला का आयोजन किया गया. इसमें विशेषज्ञ डॉक्टरों ने बताया कि आधुनिक तकनीक का उपयोग कर जटिल बीमारियों का उपचार किस प्रकार आसान हुआ है. पित्त की थैली में पथरी, किडनी स्टोन, हर्निया समेत कई जटिल समस्याओं को दूरबीन की सहायता से सुरक्षित तरीके से ऑपरेट करने की विधि पर विस्तृत जानकारी दी गयी.

लेप्रोस्कोपिक तकनीक में काफी तेजी से होती रिकवरी

विशेषज्ञों ने बताया कि लेप्रोस्कोपिक तकनीक न केवल मरीजों के लिए कम दर्द वाली प्रक्रिया है, बल्कि इससे रिकवरी भी काफी तेज गति से होती है. इस दौरान सर्जिकल प्रक्रियाओं का लाइव डिमांस्ट्रेशन भी दिया गया, जिससे उपस्थित डॉक्टरों को व्यावहारिक ज्ञान मिला. वहीं समापन समारोह के दौरान पेपर व पोस्टर प्रेजेंटेशन में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले प्रतिभागियों को पुरस्कृत किया गया. आधा दर्जन प्रतिभागियों को उनके शोध, प्रस्तुतीकरण शैली व मौलिक कार्यों के आधार पर कैश प्राइज प्रदान किया गया. निर्णायक मंडल ने प्रतिभागियों की मेहनत, आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों पर किए शोध और अभिनव विचारों की सराहना की. उपस्थित डॉक्टरों ने कहा कि ऐसे मंच युवा डॉक्टरों को सीखने और अपनी प्रतिभा को निखारने का बेहतरीन अवसर प्रदान करते हैं.

कार्यक्रम के अंत में ऑर्गनाइजिंग कमेटी ने विशेषज्ञों, प्रतिभागियों, स्वयंसेवकों और संस्थान प्रशासन के प्रति आभार जताया. इसमें ऑर्गनाइजिंग चेयपर्शन डॉ बिजेन्द्र मिश्रा, सेक्रेटरी डॉ संजीव कुमार, ज्वाइंट सेक्रेटरी डॉ पीके मित्रा, साइंटिफिक हेड डॉ विश्व पी. झा, ट्रेजरर डॉ कमरुद्दीन अंसारी, डॉ कन्हैया झा, डॉ प्रियरंजन व समिति के अन्य सदस्यों की भूमिका अहम रही.

पेपर प्रेजेंटेशन में आइजीआइएमएस के डॉ दानिश पुरस्कृत

कांफ्रेंस के दौरान पेपर व पोस्टर प्रेजेंटेशन में सात प्रतिभागियों को पुरस्कृत किया गया. पेपर प्रेजेंटेंशन में आइजीआइएमएस के डॉ दानिश हुसैन को पहला पुरस्कार मिला. दूसरे स्थान पर डॉ निलोफर, तीसरे पर डॉ अभिमन्यु रहे. वहीं पोस्टर प्रेजेंटेशन में आइजीआइएमएस के ही डॉ नेत्रानंद आचार्य ने बाजी मारी. दूसरा स्थान डॉ समीर कुमार व तीसरे स्थान पर संयुक्त रूप से डॉ सौरव कुमार व डॉ सोनू कुमार रहे. सफल प्रतिभागियों को पुरस्कृत किया गया.

भविष्य की सर्जरी का आधार बनेगा लेप्रोस्कोपिक तकनीक

दरभंगा. आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने सर्जरी की दुनिया में क्रांतिकारी बदलाव ला दिया है. खासकर लेप्रोस्कोपिक तकनीक ने ऑपरेशन की परिभाषा बदल दी है. अब पित्त की थैली यानी गॉल ब्लैडर में बनने वाली पथरी और किडनी स्टोन जैसी जटिल बीमारियों का इलाज बिना बड़ा चीरा के ही आसानी से संभव हो गया है. इस तकनीक से मरीजों को न केवल कम दर्द सहना पड़ता है, बल्कि उन्हें अस्पताल में लंबे समय तक भर्ती भी नहीं रहना पड़ता है. आइजीआइएमएस पटना से आये डॉ राहुल ने बताया कि लेप्रोस्कोपिक सर्जरी में पेट पर बड़ा चीरा लगाने की जरूरत नहीं होती है. इसके बजाय केवल कुछ मिलीमीटर के सूक्ष्म छेद किए जाते हैं. इन छोटे छेदों के माध्यम से दूरबीन नुमा कैमरा और पतले उपकरण अंदर पहुंचाए जाते हैं. सर्जन मॉनिटर पर प्रभावित हिस्से को देखकर अत्यंत सटीकता से ऑपरेशन करते हैं. इस कारण खून का बहाव कम होता है, दर्द बहुत कम होता है और संक्रमण का खतरा लगभग नगण्य रहता है. यही वजह है कि आज अधिकांश मरीज इस आधुनिक तकनीक को पारंपरिक सर्जरी की तुलना में अधिक प्रचलित हो रहा है. बताया कि अस्पतालों में ऐसे मामलों में आमतौर पर मरीजों को 24 घंटे या अधिकतम दो दिन तक ही भर्ती रखा जाता है. कई मरीज तो अगले दिन ही डिस्चार्ज होकर अपने घर लौट जाते हैं.

धीरे और गहरी सांसें लेने से नियंत्रित रहता ब्लड प्रेशर

दरभंगा. डीएमसीएच में आयोजित मेडिकल संगोष्ठी के दौरान एनएमसीएच पटना से आये विशेषज्ञ डॉ मीत वर्मा ने स्वसन की सही प्रक्रिया पर विस्तार से जानकारी दी. उन्होंने बताया कि आज की व्यस्ततम जीवनशैली में लोग गलत तरीके से सांस लेते हैं, जिसका सीधा असर फेफड़ों की क्षमता, हृदय गति, मानसिक स्वास्थ्य और शरीर की समग्र कार्यप्रणाली पर पड़ता है. डॉ वर्मा ने कहा कि सामान्यतः लोग छाती की सतही सांस लेते हैं, जबकि वैज्ञानिक रूप से शरीर के लिए वही श्वास लाभदायक है जिसमें डायाफ्राम सक्रिय होता है. उन्होंने बताया कि सही श्वास में पहले पेट ऊपर उठता है, फिर फेफड़ों का ऊपरी हिस्सा फैलता है और अंत में सांस धीरे-धीरे बाहर छोड़ी जाती है. इससे ऑक्सीजन का आदान-प्रदान बेहतर तरीके से होता है. शरीर अधिक रिलैक्स महसूस करता है. बताया कि धीरे और गहरी सांसें लेने से ब्लड प्रेशर नियंत्रित रहता है. तनाव कम होता है. दिमाग को पर्याप्त ऑक्सीजन मिलती है. उन्होंने कहा कि यदि लोग सही तरीके से सांस लेना सीख लें तो कई श्वसन संबंधी बीमारियों जैसे दमा, एलर्जी और सांस फूलने की समस्या को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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