Darbhanga News: दरभंगा. भाई-बहन के अनोखे प्रेम का प्रतीक लोकपर्व सामा-चकेबा से रात खिलखिला रही है. ननद-भाभी की हंसी-ठिठोली से तर गीतों से जहां वातावरण में आनंद रस प्रवाहित हो रहा है, वहीं भाई की उन्नति एवं उनकी मंगल कामना के भाव नीरव रात में इस अनोखे प्रेम का प्रकटीकरण कर रहे हैं. शाम ढलने के बाद भोजन आदि से निवृत्त होकर डाला में सामा-चकेबा के साथ तैयार किये गये वृंदावन, चुगला आदि काे लेकर बहनों की टोली जब घर से गीत गाती हुई निकलती है तो रात सुरमयी हो उठती है. सामचक-सामचक अबिह हे, जोतला खेत में बैसिह हे… से जहां भगवती श्यामा (सामा) के प्रति आस्था का भाव मिलता है, वहीं सामा खेल गेलहुं भैया के आंगन हे, कनियां भौजो लेल लुलुआय छोड़ह ननदो आंगन हे सरीखे लोकगीतों से ननद-भाभी की हंसी-ठिठोली वातावरण में मिठास घाेल देती है. भाईयों के दीर्घायु एवं समृद्ध जीवन की मंगल कामना से लबरेज गीतों के साथ जब बहनें दूसरों की चुगली करने के प्रतीक चुगला का दहन करते हुए कहती हैं कि धान-धान-धान भैया कोठी धान, भुस्सा-भुस्सा-भुस्सा चुगला कोठी भुस्सा तो इनके भाई के प्रति अगाध प्रेम का दर्शन होता है. लोकपर्व सामा-चकेबा खेलने के क्रम में बहनें वनस्पति संरक्षण का संदेश भी भाईयों को दे रही हैं. इसकी झलक वृंदावन में आगि लागल कियो ने मिझावै हे, हमराे से सभे भैया गोकुला से आबे हे, हाथ में सोवर्णा साठी वृंदावन मिझाबे हे… पंक्ति से मिलती है. बता दें कि आधुनिकता की अंधी बयार के बीच भी पर्यावरण एवं मेहमान पक्षियों के संरक्षण के प्रतीक पर्व सामा-चकेबा की धूम मची है. शहर से लेकर गांव तक बहनों की टोली पूरे उत्साह व उमंग के साथ इस लोकपर्व में जुटी हैं. इसका समापन कार्तिक पूर्णिमा के दिन सामा-चकेबा की प्रतिमा विसर्जन के साथ किया जायेगा.
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