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आध्यात्मिक आस्था का केंद्र कंकाली मंदिर

आध्यात्मिक आस्था का केंद्र कंकाली मंदिर फोटा- 7परिचय- रामबाग स्थित राजपरिसर में कंकाली मंदिर. दरभंगा. दरभंगा राज परिसर रामबाग स्थित कंकाली मंदिर आध्यात्मिक आस्था का केंद्र बना है. कंकाली भगवती की अपनी आध्यात्मिक महत्ता है. साधक अपनी साधना के लिए यहां दूर-दूर से आते हैं. विशेषकर चारों नवरात्र के अवसर पर यहां विशेष रूप से […]

आध्यात्मिक आस्था का केंद्र कंकाली मंदिर फोटा- 7परिचय- रामबाग स्थित राजपरिसर में कंकाली मंदिर. दरभंगा. दरभंगा राज परिसर रामबाग स्थित कंकाली मंदिर आध्यात्मिक आस्था का केंद्र बना है. कंकाली भगवती की अपनी आध्यात्मिक महत्ता है. साधक अपनी साधना के लिए यहां दूर-दूर से आते हैं. विशेषकर चारों नवरात्र के अवसर पर यहां विशेष रूप से पूजा अर्चना का विधान है. इस अवसर पर भक्तजनों की भीड़ उमड़ती है. शक्ति साधना के लिए चर्चित यह मंदिर प्राकृतिक वातावरण में शहर के कोलाहल से दूर इस परिसर में अवस्थित है. मंदिर के पूरब तालाब यमुना सागर और पश्चिम स्थित तालाब गंगासागर के नाम से मशहूर है. वहीं मंदिर से सटे उत्तर नहर एवं दक्षिण देवी मंदिर की मनोरम दृश्य देखने को मिलती है.कंकाली भगवती के स्थापना के संबंध में बताया जाता है कि दरभंगा महाराज के पूर्वज महामहोपाध्याय महेश ठाकुर को भगवती की मूर्ति 1556-57 ई. के करीब दिल्ली स्थित यमुना नदी में मिली. जहां से महामहोपाध्याय महाराज श्री ठाकुर नेअपने गांव राजेग्राम की इसकी स्थापना की. तभी से इनके आर्थिक स्थिति में सुधार की शुरुआत हुई और अपने तंत्र साधना के बलपर दरभंगा राज की सम्पत्ति प्राप्त हुई. इसके उपरांत 1802 ई. में तत्कालीन महाराज लक्ष्मीश्वर सिंह ने भगवती की मूर्ति गांव से लाकर दरभंगा स्थित रामबाग में स्थापित की. अभी भी राज परिवार के अराध्य देवी के रूप में इनकी पूजा अर्चना होती है. राज परिवार के कुल देवता गोसाउन के बाद किसी भी शुभ कार्य व अनुष्ठान इसी मंदिर में पूजा कर प्रारंभ किये जाने की परंपरा आज भी प्रचलित है. इस मंदिर की यह विशेषता रही है कि मंदिर के गर्भगृह में सभी का प्रवेश वर्जित है. राजपरिवार के अलावा अन्य लोग गर्भगृह में प्रवेश नहीं कर सकते हैं. बाहर से ही लोग भगवती का दर्शन करते हैं. मंदिर के पुजारी राजीव कुमार झा बताते हैं कि एक बार भक्ति स्वप्न में महेश ठाकुर को ” महेश तनयद्रोही स्वर्गारोही भविष्यती अचिरेनैव कालेन कंकाली कबली कृत:” कही थी. यह उक्ति भगवती के द्वारा राजा महेश ठाकुर को मिला था. जिसका अभिप्राय यह था कि महेश ठाकुर के वंश का या इसके सम्पत्ति को जो कोई हनन करेगा उसका सर्वनाश होगा. कहते हैं कि आज यह देखने को मिल रहा है. पहले वर्ष भर 365 दिन के प्रत्येक दिन बलिप्रदान होता था पर अब यह व्यवस्था नहीं है. पर शारदीय नवरात्र में कलश स्थापना से लेकर नवमी तक बलिदान की प्रथा है. अभी भी दूर दराज से साधक व भक्त पहुंचकर अपने मनोवांच्छित फल प्राप्त करते हैं.

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