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कैंपस.. दया, बुद्धि व स्मृति का दूसरा नाम गीता

जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने किया संबोधन पीजी संस्कृत विभाग के राष्ट्रीय सेमिनार का समापन फोटो संख्या-16 व 17परिचय- समापन समारोह में विचार रखते जिला व सात्र न्यायाधीश व उपस्थित प्रतिभागीदरभंगा. गीता के अध्ययन से मानव पशु से अलग देवत्व को प्राप्त कर सकता है. दया, बुद्धि एवं स्मृति का दूसरा नाम है गीता. लनामिविवि […]

जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने किया संबोधन पीजी संस्कृत विभाग के राष्ट्रीय सेमिनार का समापन फोटो संख्या-16 व 17परिचय- समापन समारोह में विचार रखते जिला व सात्र न्यायाधीश व उपस्थित प्रतिभागीदरभंगा. गीता के अध्ययन से मानव पशु से अलग देवत्व को प्राप्त कर सकता है. दया, बुद्धि एवं स्मृति का दूसरा नाम है गीता. लनामिविवि के स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग के दो दिनी राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन के अवसर पर मुख्य अतिथि जिला व सत्र न्यायाधीश रतन किशोर तिवारी ने यह बातें कही. विशिष्ट अतिथि पं सुब्रहृमण्यम शास्त्री ने कहा कि गीता युवाओं, शिक्षितों का आध्यात्मिक हथियार है जिसके सुप्रयोग से मानव अपना सर्वथा कल्याण कर सकता है. राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान तिरूपति के प्रो राधाकांत ठाकुर ने कहा कि गीता का प्रत्येक उपदेश अमृत के समान है जिसके पान से मनुष्य जन्म-मरण, व्याधि से मुक्त हो जाता है. आयोजन सचिव डॉ जयशंकर झा ने बताया कि संगोष्ठी में बिहार एवं अन्य प्रांतों के 135 प्रतिभागियों ने अपना-अपना शोध आलेख प्रस्तुत किया गया. विभागाध्यक्ष डॉ कमलनाथ झा की अध्यक्षता में डॉ रामनाथ झा ने अतिथियों का स्वागत किया जबकि डॉ जीवानंद झा ने धन्यवाद ज्ञापित किया. संगोष्ठी में रश्मि कुमारी, ज्योत्सना कुमारी, गुड्डी कुमारी, कृष्ण कांत झा, मो शकील अहमद, डॉ वीणा मिश्र, डॉ कमलेश झा आदि के लेखों को काफी सराहा गया.

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