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घर में हो मजहबी माहौल, तो बच्चों पर भी होता असर

दरभंगा/अलीनगर : माहे रमजान की अजमत को न केवल वयस्क और बड़े बुजुर्ग ही समझते हैं बल्कि घरों में मजहबी माहौल हो तो बच्चों पर भी उसकी छाप पड़ जाती है. रमजान में ऐसा देखने को शहर से लेकर गांव तक मिल रहा है. छोटे छोटे बच्चे-बच्चियां भी आस्था व उत्साह के साथ रमजान के […]

दरभंगा/अलीनगर : माहे रमजान की अजमत को न केवल वयस्क और बड़े बुजुर्ग ही समझते हैं बल्कि घरों में मजहबी माहौल हो तो बच्चों पर भी उसकी छाप पड़ जाती है. रमजान में ऐसा देखने को शहर से लेकर गांव तक मिल रहा है. छोटे छोटे बच्चे-बच्चियां भी आस्था व उत्साह के साथ रमजान के कई-कई रोजे रख रहे हैं.

ऐसे ही बच्चों में जाले प्रखंड के महुली नानकार गांव के खुर्शीद अंसारी के 11 वर्षीय पुत्र मो. सोहराब, नासिर हुसैन के 11 वर्षीय पुत्र मो. हम्माद, तौकीर आलम के सात वर्षीय पुत्र तौसीफ आलम, अब्दुल मन्नान के 10 वर्षीय पुत्र अब्दुल मालिक, मो. शाहिद की 10 वर्षीया पुत्री सायमा परवीन एवं जकी अहमद की नौ वर्षीया पुत्री राशिदा परवीन है. इन सभी ने अबतक के कुल सात रोजों में से चार रोजे रखे हैं. आगे भी कई रोजे रखने की इच्छा व्यक्त किये हैं.

इन सब का कहना है, घर के लोग रोजा रहते हैं, तो उन्हें भी रखने का शौक रहता है. इससे उनके माता व अन्य संबंधी काफी खुश रहते हैं. कई रिश्तेदारों ने उन्हें और उनके माता-पिता को मुबारकबाद भी दिया है.

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