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प्रधानाचार्य फर्जी प्रमाणपत्र पर कर रहे नौकरी!

दरभंगा : राघवेंद्र संस्कृत कॉलेज, नौबतपुर के प्रधानाचार्य डॉ अनिल कुमार ईश्वर की नियुक्ति प्रधानाचार्य के पद पर फर्जी प्रमाण-पत्रों के सहारे हुई थी. विधानसभा की समिति ने अपनी जांच रिपोर्ट में यह बात कही है. फर्जी अनुभव प्रमाण पत्र तथा शोध कार्य का अनुभव शून्य रहने के बावजूद उनका चयन कर लिया गया था. […]

दरभंगा : राघवेंद्र संस्कृत कॉलेज, नौबतपुर के प्रधानाचार्य डॉ अनिल कुमार ईश्वर की नियुक्ति प्रधानाचार्य के पद पर फर्जी प्रमाण-पत्रों के सहारे हुई थी. विधानसभा की समिति ने अपनी जांच रिपोर्ट में यह बात कही है. फर्जी अनुभव प्रमाण पत्र तथा शोध कार्य का अनुभव शून्य रहने के बावजूद उनका चयन कर लिया गया था. समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विवि में उस समय नियुक्त किये गये डॉ ईश्वर समेत सभी 23 प्रधानाचार्यों की नियुक्ति में गंभीर अनियमितता वरती गयी थी. समिति ने सभी की नियुक्ति रद्द करते हुए नये सिरे से विज्ञापन निकाले जाने की अनुशंसा की थी.

रिपोर्ट पर अब तक किसी प्रकार की कार्यवाही नहीं की है. बता दें कि मध्यमा तथा उपशास्त्री के अंकपत्र में हेराफेरी मामले में डॉ ईश्वर को सीबीआइ ने पिछले दिनों गिरफ्तार किया है. सरकार और विवि द्वारा कार्यवाही नहीं होते देख एक जनहित याचिका सीडब्ल्यूजेसी 21601/2014 दायर की गई थी. इसमें हाइ कोर्ट ने सरकार, विश्वविद्यालय और राजभवन को समुचित कारवाही करने को कहा. बावजूद कोई कार्यवाही नहीं की गई है.

क्या- क्या हुई थी अनियमितता
कमेटी ने कहा था कि सूचना के अधिकार के तहत समरेन्द्र कुमार सुधांशु द्वारा प्राप्त अभिलेख कमेटी को उपलब्ध कराया गया. इसके अनुसार डॉ ईश्वर, पंडित सरयू हजारी अभ्युदय संस्कृत उच्च विद्यालय अभ्युदय नगर बांका में शिक्षक के पद पर कार्य कर चुका बताया गया. उन्हें कॉलेज में पढ़ाने का अनुभव प्राप्त नहीं था. उन्होंने माइनारिटी कॉलेज भागलपुर में अध्यापन करने का प्रमाण पत्र जनवरी 1992 से नियुक्ति तक का दिया. जबकि उसी अवधि में वे संस्कृत हाईस्कूल में कार्यरत थे और वेतन भुगतान प्राप्त कर रहे थे. कॉलेज के अनुभव प्रमाण पत्र को कमिटी ने फर्जी माना. इसी प्रकार घनश्याम मिश्रा के अनुभव प्रमाण पत्र को फर्जी पाया गया. वही अन्य की नियुक्ति में अंक देने में गड़बड़ी पाई गई.
23 प्रधानाचार्यों की हुई थी नियुक्ति: संस्कृत विवि के कॉलेजो में प्रधानाचार्यों की नियुक्ति हेतु विज्ञापन निकाला गया था. इस नियुक्ति में काफी धांधली हुई थी. शिकायत मिलने पर विधान परिषद में इसे लेकर हंगामा हुआ. तत्कालीन सभापति ने वासुदेव सिंह की अध्यक्षता में 10 सदस्यों की जांच कमिटी बनाई. कमेटी ने अपनी रिपोर्ट 4/9/2009 को विप को सौंप दी. बताया जाता है कि इसमें सदस्यों ने सर्व सम्मति से सभी 23 प्रधानाचार्यो की नियुक्ति में गंभीर अनिमितता बताते हुए अनियमित नियुक्ति को रद्द करते हुए नए सिरे से विज्ञापन करने का निर्देश दिया था.

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