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एक फॉगिंग मशीन के जरिए 39 लाख आबादी को मच्छरों से नियंत्रित कर रहा हेल्थ विभाग

फागिंग मशीनों की खरीद करने का आदेश जारी होने के बाद भी लौरिया को छोड़ किसी भी स्वास्थ्य केंद्र ने नहीं की खरीदारी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों व मलेरिया विभाग की है जिम्मेवारी, दोनों हैं मौन बेतिया : जिले में मच्छरों के पनपने का यह सबसे मुफीद मौका नजर आ रहा है. एक तो तापमान की […]

फागिंग मशीनों की खरीद करने का आदेश जारी होने के बाद भी लौरिया को छोड़ किसी भी स्वास्थ्य केंद्र ने नहीं की खरीदारी

सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों व मलेरिया विभाग की है जिम्मेवारी, दोनों हैं मौन
बेतिया : जिले में मच्छरों के पनपने का यह सबसे मुफीद मौका नजर आ रहा है. एक तो तापमान की दृष्टि से मार्च-अप्रैल इनके फलने-फूलने के लिए बेहतर समय है.
दूसरे इन्हें नियंत्रित करने वाले विभागों के पास न तो संसाधन हैं, न कार्ययोजना और न ही इच्छा शक्ति.
नतीजा गांवों के अधिसंख्य लोग मच्छरों की तानाशाही से पीड़ित हैं और जानलेवा मच्छर जनित बीमारियों की दहशत में जीने को मजबूर हैं. हालात यूं है कि महज एक फॉगिंग मशीन के जरिए जिले के करीब 39 लाख की आबादी पर मच्छरों का नियंत्रण किया जा रहा है.
विशेषज्ञों के मुताबिक हर 15 दिनों के भीतर नालियों में एंटी लार्वा का छिड़काव होना चाहिए. पर ऐसा नहीं हो रहा. जिससे लोगों का जीना दुश्वार है. मच्छरों के प्रकोप को कम करने की जिम्मेदारी सामुदायिक व प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों तथा जिला मलेरिया विभाग की है. पर कोई कार्यवाही होता नहीं दिख रहा है.
इधर, मच्छरों का प्रकोप दिनों दिन बढ़ता ही जा रहा है. दिन का समय तो लोग किसी तरह से गुजार ले रहे हैं, लेकिन रात गुजारना मुश्किल हो रहा है. शाम होते ही घरों में मच्छरों का आतंक शुरू हो जाता है. ऐसे में लोग मच्छरदानी के अंदर कैद होने को मजबूर हैं. जिलेवासियों का कहना है कि शाम होते ही मच्छर हमला करना शुरू कर देते हैं. न ही घर के अंदर चैन से बैठने देते हैं और न ही बाहर. यहां इतने अधिक मच्छर हो गये हैं कि लोगों को अब मलेरिया जैसी घातक बीमारी होने का डर सताने लगा है.
जिले में मच्छर मारने के नाम सालाना लाखों रुपये निकायों व स्वास्थ्य विभाग की ओर से खर्च की जाती है. इस राशि से ऑयल व केमिकल की की खरीद के अलावे डीडीटी छिड़काव के दावे किये जाते हैं. लेकिन, हकीकत में यह नहीं दिखते हैं.
एक मच्छर से होती हैं
आठ बीमारियां
मलेरिया
डेंगू
कालाजार
चिकुनगुनिया
पीत ज्वर
इंसेफेलाइटिस
अक्तूबर से मार्च तक सबसे अधिक मच्छर लेते हैं जन्म
आम तौर पर मच्छरों के जन्म लेने की प्रक्रिया सालों भर चलती रहती है, परंतु अक्तूबर माह से लेकर फरवरी-मार्च तक सबसे अधिक मच्छर जन्म लेते हैं. इस दौरान मौसम का तापमान भी 20-30 डिग्री के बीच में रहता है, जो इनके लिए सही समय होता है. हालांकि तापमान पांच डिग्री से कम होने या 40 डिग्री अधिक होने पर ज्यादातर मच्छर मर जाते हैं. जलजमाव वाले क्षेत्र, नाली व कचरे के ढेर में सबसे ज्यादा मच्छर जन्म लेते हैं.

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