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नाम औद्योगिक क्षेत्र, पर कंपनियां हो गयीं गायब

बक्सर : बगैर औद्योगिक विकास के किसी राज्य अथवा क्षेत्र के विकास की कल्पना नहीं हो सकती. इसी सोच के तहत बक्सर के पूर्व सांसद एपी शर्मा जिला बनने से पूर्व ही 1978, में बक्सर शहर के बीचोबीच अपने नेतृत्व में बक्सर के विकास के लिए कैंप लगा कर 50 बीघे में बक्सर औद्योगिक क्षेत्र […]

बक्सर : बगैर औद्योगिक विकास के किसी राज्य अथवा क्षेत्र के विकास की कल्पना नहीं हो सकती. इसी सोच के तहत बक्सर के पूर्व सांसद एपी शर्मा जिला बनने से पूर्व ही 1978, में बक्सर शहर के बीचोबीच अपने नेतृत्व में बक्सर के विकास के लिए कैंप लगा कर 50 बीघे में बक्सर औद्योगिक क्षेत्र की स्थापना करवायी थी.

शुरू में लोगों में उद्योग लगाने के प्रति उत्साह भी दिखा़ करीब 50 बीघे जमीन में कुल 105 उद्योगों की आधारशीला रखी गयी, किंतु वर्तमान में इनमें चार से पांच उद्योगों को छोड़ शेष धरातल पर ही नहीं उतर पाये. औद्योगिक इकाई को अनियमित 6 से 8 घंटे बिजली की उपलब्धता, इकाइयों के कार्यशील पूंजी का सरकार से नहीं मिलना, बियाडा के कर्मचारियों का सहयोग नहीं

मिलना, बिहार राज्य वित निगम का स्वयं ही दिवालिया हो जाने के कारण औद्योगिक इकाइयों का निर्माण ही अधर में लटक गया़ औद्योगिक इकाइयों को प्रोजेक्ट के अनुसार स्वीकृत राशि देने के बजाय वित्त निगम ने अपना पैर पीछे खींच लिया. नतीजा हुआ कि सभी उद्योग स्थापित होने से पहले ही दम तोड़ दिये.कुछ उद्योगपतियों ने विपरीत आर्थिक परिस्थिति के बावजूद अपना उद्योग चला रहे हैं.

बिहार सरकार की अपनी इकाई विश्वामित्र मिल बोर्ड करोड़ों खर्च के बाद भी पटल पर नहीं आ सका़ आज इस महत्वपूर्ण औद्योगिक भूमि पर कुछ भू-सौदागरों की कुपित दृष्टि पड़ गयी है और इसे धीरे-धीरे अपने आगोश में लेते जा रहे हैं.

किसने बसाया औद्योगिक क्षेत्र
बक्सर औद्योगिक क्षेत्र की आधारशिला सन् 1978, में तत्कालीन सांसद एपी शर्मा ने रखा और उन्होंने अपने नेतृत्व में स्वयं कैंप कर बसाया था़ निर्माण के समय 105 उद्योग 50 बीघे भूमि में लोगों ने लगाया, पर प्रशासनिक उदासिनता की वजह से महज चार ही उद्योग धरातल पर मौजूद है़ं शेष आये ही नहीं तथा कुछ का अस्तित्व ही समाप्त हो चुका है़
क्यों उजड़ा औद्योगिक क्षेत्र
क्षेत्र के विकास के जिम्मेदार बियाडा के अधिकारियों का औद्योगिक इकाई लगानेवाले लोगों का अपेक्षित सहयोग नहीं मिला़ बिहार राज्य वित्तीय निगम ने इकाइयों को निर्धारित प्रोजेक्ट के अनुसार पूंजी नहीं मिली. जबकि वित्तीय निगम आइडीबीआइ से प्रोजेक्ट की पूरी राशि की निकासी कर ली गयी थी़ इकाइयों को वित्तीय सहयोग करनेवाला वित्त निगम औद्योगिक इकाइयों को अधूरे स्थिति में छोड़ स्वयं ही दिवालिया हो गया़
कार्यशील पूंजी की कमी
बिहार राज्य वित्त निगम के दिवालिया होने के बावजूद कुछ उद्यमियों ने अपने स्तर पर अपनी इकाई को चालू करने की हिम्मत जुटाई, पर स्थानीय बैंकों ने भी निर्धारित राशि की मंजूरी के बाद भी अधूरी राशि दी. इस तरह कार्यशील पूंजी बैंकों द्वारा नहीं दिये जाने से कुछ इकाइयों ने यूं ही दम तोड़ दिया़
बिजली की कमी
औद्योगिक इकाइयों के लिए पहली सबसे जरूरी चीज बिजली की भरपूर व्यवस्था होती है़ औद्योगिक इकाइयों का निर्माण, तो हुआ पर बिजली की कमी हमेशा बनी रही़ 24 घंटे में अनियमित महज 6-8 घंटे बिजली मिलती थी़ इसका भी इकाइयों पर असर पड़ा़
2007 में जगी थी आस
2007, में केके पाठक के बियाडा के प्रबंध निदेशक बनने के बाद औद्योगिक इकाइयों के पुनर्जीवित करने का मार्ग प्रशस्त हो चुका था. बाहरी उद्योगपतियों द्वारा छोड़ कर भागे इकाइयों को बियाडा द्वारा बेचा गया. साथ ही औद्योगिक एरिया का विकास के तहत पीसीसी ढलाई का निर्माण कराया गया, किंतु केके पाठक के अंयत्र स्थानांतरण के बाद काम बंद हो गया और पुन: लोगों का आशा निराशा में बदल गयी.
भवन बन गये गोदाम
औद्योगिक क्षेत्र में इकाइयों के गायब हो जाने के बाद स्वामित्ववाले लोग औद्योगिक भवनों का उपयोग गोदाम के रूप में कर रहे हैं. ध्यान औद्योगिक इकाइयों के विकास से हट गया है. शेड बनाकर लोगों ने आय का स्रोत गोदाम बनाकर व उसे विकसित कर कर रहे हैं.
इकाइयों के भूमि का हो रहा दुरुपयोग
कुछ औद्योगिक इकाइयों के जमीन पर भूमाफियाओं की गिद्ध दृष्टि पड़ चुकी है. वे विभिन्न इकाइयों के नाम पर औद्योगिक इकाइयों के जमीन को औने-पौने दाम में खरीद कर,उसे बेच कर अत्यधिक लाभ कमाने का काम शुरू कर दिये हैं. इस काम में बियाडा के बक्सर औद्योगिक इकाई के कर्मी व अधिकारी इन भूमाफियाओं का भरपूर सहयोग कर रहे हैं.
समस्या का हल भी है
आधारभूत संरचना, कार्यशील पूंजी की उपलब्धता और पुराने रुग्ण उद्यमी जो अपना उद्योग चला रहे हैं, उन्हें आर्थिक सहयोग कर पुन: औद्योगिक क्षेत्र का विकास किया जा सकता है. जो सरकार द्वारा हर साल योजनाएं नयी औद्योगिक नीति के तहत बनाती हैं, उसे धरातल पर फलीभूत करने के लिए ठोस पहल की जानी चाहिए.
ओटीएस का नहीं मिला लाभ
बियाडा द्वारा अंतिम ओटीएस 2014, में आया था, जिसमें औद्योगिक इकाइयों के डिफाल्टर लोगों को एक मुश्त राशि जमा करने का प्रावधान किया गया था, जिसमें शामिल होने के लिए बक्सर औद्योगिक क्षेत्र के कुछ उद्यमियों ने बियाडा को आवेदन दिया था. लेकिन, बियाडा द्वारा न ही कोई जवाब दिया गया और न ही उन्हें शामिल होने की कोई पहल की गयी.

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