कुछ दिनों पूर्व छात्रों से निगरानी ब्यूरो में हुई थी पूछताछ
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डीपीओ को रिमांड पर लेगी पुलिस
कुछ दिनों पूर्व छात्रों से निगरानी ब्यूरो में हुई थी पूछताछ बक्सर : वित्तीय वर्ष 14-15 व 15-16 में छात्रवृत्ति के नाम पर जिले में हुए सवा दो करोड़ के घोटाले का जिन्न शांत होने का नाम नहीं ले रहा है. वहीं रिश्वत लेते हुए रंगे हाथ निगरानी के हत्थे चढ़े शिक्षा विभाग के स्थापना […]
बक्सर : वित्तीय वर्ष 14-15 व 15-16 में छात्रवृत्ति के नाम पर जिले में हुए सवा दो करोड़ के घोटाले का जिन्न शांत होने का नाम नहीं ले रहा है. वहीं रिश्वत लेते हुए रंगे हाथ निगरानी के हत्थे चढ़े शिक्षा विभाग के स्थापना शाखा के पूर्व डीपीओ विनायक पांडेय की मुश्किलें भी बढ़ती जा रही हैं. छात्रवृत्ति घोटाले में जहां निगरानी ने अपना शिकंजा कसना शुरू कर दिया है. वहीं टाउन थाना पुलिस भी जांच के दायरे को बढ़ाते हुए डीपीओ को रिमांड पर लेने की तैयारी में है.
उल्लेखनीय है कि निगरानी ब्यूरो द्वारा जिले के करीब 50 छात्रों से पूछताछ की जा चुकी है. पूछताछ से लौटे छात्रों की मानें तो निगरानी ने सख्ती बरतने के संकेत दिये हैं. इसके लिए सिविल कोर्ट में अर्जी भी दाखिल की गयी है. एक छात्र ने बताया कि निगरानी के डीएसपी रमेश कुमार मल्ल ने आवश्यक पूछताछ की थी. अब डीपीओ को रिमांड पर लिए जाने की सूचना से शिक्षा विभाग में हड़कंप मच गया है. सूत्रों की मानें तो जांच की जद में कई और कर्मी भी आयेंगे. गौरतलब हो कि पिछड़े व दलित बच्चों का हक लूटने के लिए फर्जी नामों से स्कूल के एकाउंट खोले गये थे. इसमें कल्याण विभाग के अधिकारी पर भी गाज गिर चुकी है. विदित हो कि एक सेवानिवृत्त शिक्षक से उनकी सेवा पुस्तिका पर हस्ताक्षर करने के लिए रिश्वत लेते हुए डीपीओ को निगरानी ने रंगे हाथ पकड़ा था तभी से वह जेल में बंद है.
डीपीओ को डीएम ने जांच टीम से किया था बाहर: छात्रवृत्ति घोटाले की जांच टीम में पहले डीपीओ विनायक पांडेय भी शामिल थे, लेकिन विभागीय सूत्रों का कहना है कि छात्रवृत्ति वितरण कार्य राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान से संबंद्ध है और उस समय स्थापना डीपीओ विनायक पांडेय राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के ही डीपीओ थे. जाहिर सी बात है, विभागीय पदाधिकारी के जांच टीम में रहने से इसके प्रभावित होने की आशंका बलवती हो जाती. ऐसे में डीएम रमण कुमार ने छात्रवृत्ति घोटाले की जांच टीम से शिक्षा विभाग के स्थापना डीपीओ विनायक पांडेय को हटाकर कोषागार पदाधिकारी मो अजमत अली को प्राधिकृत किया था.
फर्जी स्कूलों के नाम पर अकाउंट में भेजी गयी थी राशि: नियमों के विरुद्ध विभाग का एकाउंट निजी बैंक में खोला गया था और बाद में उसी एकाउंट से घोटाले की रकम फर्जी स्कूलों के नाम पर ट्रांसफर की गयी थी. इससे संबंधित केनरा, विजया, एक्सिस व सेंट्रल बैंक के तत्कालीन बैंक प्रबंधक समेत जिला कल्याण पदाधिकारी व जिला कार्यक्रम पदाधिकारी लेखा व योजना से स्पष्टीकरण मांगा गया था. जिला कल्याण पदाधिकारी समेत 19 लोगों पर एफआइआर दर्ज की गयी थी.
अब तक दो लोग जेल भी जा चुके हैं. डीएम रमण कुमार द्वारा डीडीसी की अध्यक्षता में गठित जांच समिति द्वारा रिपोर्ट सौंपने के बाद अनियमितता पाये जाने पर कल्याण विभाग के तत्कालीन लिपिक समेत फर्जी विद्यालय और विद्यालयों का संचालन कर रही एजेंसी पर प्राथमिकी दर्ज करायी गयी थी.
इन फर्जी स्कूलों के नाम आवंटित हुई थी राशि
किशोरी सिन्हा बालिका उच्च विद्यालय इटाढ़ी – 320400
किशोरी उच्च विद्यालय तियरा – 3987000
सीताराम केताकि उच्च विद्यालय रौनी – 2948300
लक्ष्मी उच्च विद्यालय नगवार सिकरौल – 3059000
सूर्य नारायण हाइ स्कूल रहथुआ – 2827800
देवकीनंदन उच्च विद्यालय जमौली – 2327400
केताकि मेमोरियल उच्च विद्यालय तियरा – 2002500
किशोरी सिन्हा बालिका उच्च विद्यालय बक्सर – 1869600
ऐसे हुआ था घोटाले का खेल
जिले में छात्रवृत्ति के नाम पर हुए फर्जीवाड़े में सब कुछ फर्जी तरीके से किया गया था. जिन विद्यालयों के नाम पर छात्रवृत्ति की राशि बांटी गयी, वे विद्यालय धरातल पर थे ही नहीं. इन फर्जी विद्यालयों के संचालक का खाता तक बैंक में मौजूद था. बकायदा बच्चों के नाम भी दर्ज थे, जिनके नाम पर पैसों का आवंटन मंगाया गया है. उसी सूची के आधार पर छात्रों से निगरानी के अधिकारियों ने पूछताछ की थी.
ऐसे रची थी साजिश
निगरानी की जांच में इस बात का खुलासा हुआ कि समाज कल्याण विभाग के खाते निजी बैंक से संचालित हो रहे थे और इसी के माध्यम से फर्जी स्कूलों के नाम पर भुगतान हुआ था. फर्जी स्कूलों ने अपने फर्जी खाते केनरा बैंक, सेंट्रल बैंक व विजया बैंक में खोले थे. जांच में पता चला था कि सभी स्कूलों के प्रस्तावकों के नाम एक लेकिन, प्राचार्य के नाम अलग-अलग थे. जिससे जाहिर है कि पूरे सुनियोजित तरीके से घोटाले की साजिश रची गयी.
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