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बिहार: कभी बांग्लादेश तक सुनाई देती थी कुढ़नी बांसुरी की धुन, जानें अब क्यों कम हो गई मांग

‍Bihar News: बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के कुढ़नी में कारीगर बांसुरी बनाते है. यहां कई लोग चार पीढ़ियों से बांसुरी बनाने का काम करते है. कभी इन बांसुरी की बिक्री बांग्लादेश तक हुआ करती थी. बांसुरी का निर्यात बांग्लादेश तक हुआ करता था. लेकिन, अब इनका समय बदल गया है.

Bihar News: बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के कुढ़नी में कारीगर बांसुरी बनाते है. यहां कई लोग चार पीढ़ियों से बांसुरी बनाने के काम में लगे हुए है. कभी इन बांसुरी की धुन बांग्लादेश तक सुनाई देती थी. इसका मतलब यह बांसुरी का निर्यात बांग्लादेश तक हुआ करता था. वह दिन कुछ और हुआ करता था. लेकिन, अब इनका समय बदल चुका है. इसका कारण भी है. कारीगर अब मदद की गुहार लगाने को मजबूर है. बता दें कि बांग्लादेश के अलावा पूरे राज्य में इस बांसुरी की एक जमाने में डिमांड हुआ करती थी.

15 मुस्लिम परिवार बांसुरी का करते है निर्माण

जिले के कुढ़नी प्रखंड के बड़ा सुमेरा मुर्गिया चक गांव में सुरीली बांसुरी का निर्माण होता है. इसकी तान नेपाल से बांग्लादेश तक गुंजती है. बता दें कि गांव के 15 मुस्लिम परिवार बांसुरी को बनाते है. इन परिवारी की चौथी पीढ़ी लगातार बांसुरी बनाने के काम में लगी हुई है. कुढ़नी में बनी बांसुरी की मांग रहती है. इन परिवारों के बारे में खास बात बता दें कि यहां बड़ों से लेकर बच्चे भी इस काम को खुब पसंद करते है. सभी इस काम में लगे रहते है. बांसुरी बनाने वाले शख्स नूर मोहम्मद बताते है कि वह 10 साल की उम्र से ही बांसुरी बनाने के काम में लगे हुए. वह मात्र 10 साल की उम्र से ही बांसुरी बनाते है.

नरकट की खेती के बाद बांसुरी का निर्माण

बांसुरी का निर्माण करने के लिए यह नरकट की खेती करते है. मान्यता है कि द्वापर युग में कृष्ण के हाथों में रहने वाली बांसुरी नरकट की होती थी. नरकट से कलम के साथ- साथ बांसुरी का निर्माण किया जाता है. गांठ रहित इसकी लकड़ी से बांसुरी बनाना आसान होता है. बांसुरी में नरकट की लकड़ी का इस्तमाल किया जाता है. वहीं, अब नरकट के पौधे में कमी आई है. यह कम देखने को मिलते है. कहते है कि इसके बदले अब चीनी माल देखने को मिलते है. वहीं, कुढ़नी में कारीगर आज भी नरकट की खेती करने के बाद बांसुरी का पारंपरिक तरीके से निर्माण करते है.

दूसरे जिले से भी नरकट की खरीदारी

कुढ़नी के कारीगर बांसुरी निर्माण के लिए दूसरे जिले से भी नरकट को खरीदकर लाते है. शहर को चंदवारा, बड़ा सुमेरा, लकड़ीढाई, मोतीपुर में नरकट की खेती की जाती है. गांव के कारीगर मोहम्मद रिजवान ने स्थानीय मीडिया को जानकारी दी है कि वह एक रूपए में नरकट को खरीदकर लेकर आते है. वहीं, एक बांसुरी को बनाने में चार से पांच रूपए तक का खर्च आता है.

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दिनभर में 100 से 110 बांसुरी का निर्माण

यहां कारीगर दिनभर में 100 से 110 बांसुरी का निर्माण करते है. इसमें एक के निर्माण में चार से पांच रूपए का खर्च आता है. वहीं, रिजवाना खातून के अनुसार बांसुरी के निर्माण से ही उनका घर चलता है. यहां कई ऐसे परिवार है, जिनका भरन पोषण बांसुरी बनाने के काम को करने के बाद होता है. यहां कई ऐसे परिवार है, जो सिर्फ नरकट से बांसुरी बनाने का काम किया करते है. यह दूसरा और कोई काम नहीं करते है.

करीगरों ने की आर्थिक सहायता की मांग

बांसुरी के कारीगरों की पीड़ा है कि उनकी कला को बचाए रखने के लिए कोई मदद नहीं मिल पा रही है. इनकी मांग है कि सरकार की ओर से इन्हें आर्थिक सहायता प्रदान की जाए. सरकार की ओर से अगर इन्हें अनुदान मिलता है, तो इनके हालात में कुछ सुधार होंगे. कारीगर आज सरकार से मदद मांगने को मजबूर है. साथ ही यह नरकट की खेती के लिए बीज और अनुदान की भी डिमांड कर रहे है.

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मोबाइल ने कारोबार पर डाला बुरा असर

मालूम हो कि मेला और साथ ही पर्व त्योहारों में बांसूरी की खूब मांग होती है. लेकिन, मोबाइल ने कारीगरों की आय पर काफी बुरा असर डाला है. अब लोग मोबाइल पर ज्यादा समय गुजार रहे है. इससे पहले बांसुरी बेचने वाले गली और मोहल्लों में घूमकर बांसुरी बेचा करते थे. लेकिन, अब बच्चे भी फोन पर ज्यादा वक्त देते है. फोन लोगों के जीवन का हिस्सा बन गया है. इस कारण बांसुरी का बाजार पीछे छूट रहा है. इसकी मांग में कमी आई है. पहले लोगों को अपनी घरों के आसपास बांसुरी की तान सुनाई देती थी. यह काफी आकर्षक भी हुआ करता था. यह सुनना अच्छा लगता था. लेकिन, अब यह कम होता जा रहा है.

Published By: Sakshi Shiva

Sakshi Shiva
Sakshi Shiva
Worked as Anchor/Producer from March 2022 to January 2023 at DTV Bharat TV channel. Have worked with Sixth Sense weekly newspaper from August 2021 to January 2022. Have done 21 days internship at Clinqon India as a Social media intern. Post Graduated in Journalism and Mass Communication from Central University of South Bihar, Gaya. Graduated in English from Purnea Mahila College, Purnea.

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