Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार कई सीटों पर दिलचस्प मुकाबले देखने को मिल रहे हैं, जहां महागठबंधन के ही उम्मीदवार एक-दूसरे के आमने-सामने हैं. ऐसी ही एक हाई-प्रोफाइल सीट है नवादा जिले की वारिसलीगंज, जहां पर सियासी जंग बेहद रोचक हो गई है. यहां कांग्रेस और आरजेडी, दोनों पार्टियों ने अपने-अपने उम्मीदवार उतारे हैं, जिससे विपक्षी एकजुटता की बजाय अंदरूनी फाइट साफ दिख रही है.
वारिसलीगंज से आरजेडी ने अनीता कुमारी को टिकट दिया है, जो बाहुबली नेता अशोक महतो की पत्नी हैं. वहीं कांग्रेस ने सतीश कुमार को उम्मीदवार बनाया है. इस सीट पर महागठबंधन की इस आपसी लड़ाई का सीधा फायदा एनडीए को मिल सकता है, क्योंकि वोट बंटने की पूरी संभावना है.
बीजेपी ने अखिलेश सिंह की पत्नी को दिया है टिकट
बीजेपी ने मौजूदा विधायक अरुणा देवी पर भरोसा जताया है, जो खुद एक और प्रभावशाली नेता अखिलेश सिंह की पत्नी हैं. यानी मुकाबला दो बाहुबलियों की पत्नियों के बीच है. एक ओर हैं अशोक महतो की पत्नी अनीता कुमारी, तो दूसरी तरफ अखिलेश सिंह की पत्नी अरुणा देवी. दोनों ही अपने-अपने परिवारों के राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव के दम पर मैदान में हैं.
अशोक महतो अपनी पत्नी के लिए कर रहे प्रचार
अशोक महतो, जो कभी नवादा जेल ब्रेक केस में 17 साल तक जेल में रहे, दिसंबर 2023 में रिहा होने के बाद अब खुलकर अपनी पत्नी के लिए प्रचार कर रहे हैं. हालांकि, वे खुद चुनाव नहीं लड़ सकते, लेकिन इलाके में उनकी पकड़ अब भी मजबूत है.
अखिलेश सिंह और अशोक महतो की सियासी लड़ाई पुरानी
वारिसलीगंज की राजनीति में अशोक महतो और अखिलेश सिंह की प्रतिद्वंद्विता कोई नई नहीं है. पिछले तीन दशक से दोनों परिवार इस इलाके की राजनीति में अहम भूमिका निभाते आए हैं. 1990 के दशक में जो लड़ाई जातीय और प्रभाव के आधार पर शुरू हुई थी, अब वह पूरी तरह राजनीतिक रूप ले चुकी है. 2000 के विधानसभा चुनाव में अरुणा देवी ने पहली बार जेडीयू के टिकट पर जीत हासिल की थी. 2005 में प्रदीप महतो मैदान में आए, जो अशोक महतो के करीबी माने जाते हैं. पहले चुनाव में हारने के बाद उसी साल हुए पुनर्निर्वाचन में उन्होंने अरुणा देवी को हरा दिया. बाद में 2010 में प्रदीप महतो ने सीट बरकरार रखी, लेकिन 2015 में अरुणा देवी ने फिर वापसी की और 2020 में बीजेपी प्रत्याशी के रूप में 25 हजार से ज्यादा वोटों से जीत दर्ज कर अपनी स्थिति मजबूत की.
क्षेत्रीय पृष्ठभूमि और संघर्ष
वारिसलीगंज का चुनावी इतिहास 1990 के दशक से ही इन दोनों बाहुबली परिवारों के गुटीय संघर्ष और वर्चस्व की लड़ाई का केन्द्र रहा है. इस इलाक़े की राजनीति पिछले लगभग दो दशकों से इन्हीं दोनों परिवारों के आसपास घूमती रही है. जातीय, सामाजिक और क्षेत्रीय समीकरण भी इन्हीं के पक्ष या विपक्ष में सेट होते रहे हैं.
क्यों यह सियासी मुकाबला चर्चे में?
एनडीए की ओर से बीजेपी की अरुणा देवी और महागठबंधन से आरजेडी की अनीता देवी के बीच सीधे टकराव के कारण स्थानीय समीकरण बदला हुआ है. पिछली बार अरुणा देवी ने अच्छे-खासे मार्जिन से जीत हासिल की थी, लेकिन इस बार अशोक महतो के सीधे तौर पर प्रचार में आने से चुनावी मुकाबला बेहद दिलचस्प हो गया है. कांग्रेस उम्मीदवार के नाम वापसी से सीधा मुकाबला दो बाहुबली घरानों की पत्नियों में सिमट गया है.

