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विश्व पर्यावरण दिवस: रस्म अदायगी की जद से निकलना होगा, केवल बात करके बात नहीं बनेगी- जीवेश रंजन सिंह

आज हम सब विश्व पर्यावरण दिवस मना रहे हैं, ऐसे में तरह-तरह की घोषणाओं और दावों के बीच इस सच से साक्षात्कार जरूरी है कि पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में कहां खड़े हैं. रस्म अदायगी की जद से निकलना होगा.

  • भागलपुर शहर के 21 नालों से प्रतिदिन 26 एमएलडी गंदा पानी गंगा में गिरता है, इनमें पांच नालों का पानी सर्वाधिक जहरीला है.

  • भागलपुर के औद्योगिक क्षेत्र से हर दिन 5 एमएलडी गंदा पानी गंगा में गिरता है.

  • भागलपुर निगम क्षेत्र से प्रतिदिन 350 मीट्रिक टन कचरा उठता है, जिसके निष्पादन की कोई व्यवस्था नहीं.

जीवेश रंजन सिंह, वरीय संपादक (प्रभात खबर): ऊपर लिखी गयी ये तीन सूचनाएं हमारे समाज का मुखड़ा हैं. आज हम सब विश्व पर्यावरण दिवस मना रहे हैं, ऐसे में तरह-तरह की घोषणाओं और दावों के बीच इस सच से साक्षात्कार जरूरी है कि पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में कहां खड़े हैं. जब तक इस सच को स्वीकार करने की हिम्मत हमारे अंदर नहीं आयेगी, चीजें ठीक नहीं हो सकतीं, आईवाश तक सिमट कर रह जायेंगी. दरअसल, रस्म अदायगी की जद से निकलने के लिए कुछ रिपोर्टों पर एक नजर डालनी चाहिए.

बुडको की एक रिपोर्ट के अनुसार यही स्थिति कायम रही तो वर्ष 2035 तक भागलपुर में गंगा में नालों से गिरने वाले गंदे व जहरीले पानी की मात्रा 26 एमएलडी से बढ़ कर 54 एमएलडी हो जायेगी. मेडिकल वेस्टेज की स्थिति भी गंभीर होगी, क्योंकि अब भी भारी संख्या में प्राइवेट अस्पताल, जांच घर व क्लिनिक सेनर्जी वेस्ट मैनेजमेंट से नहीं जुड़े हैं.

फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया के अनुसार भागलपुर में कुल भौगोलिक एरिया का 2.72 व बांका में 9.17 प्रतिशत ही वन क्षेत्र है, जो 33 प्रतिशत होना चाहिए. अब एक नजर शहर व शहर के आसपास डालें तो लगभग हर शहर के प्रवेश मार्ग पर नगर निकाय द्वारा फेंके गये कचरे का अंबार और उसके कारण सूख चुके पेड़ हमारी व्यवस्था पर सवाल उठाने के साथ-साथ शर्मिंदा भी करते हैं.

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ये आंकड़े व दृश्य जहां इस बात की गवाही देते हैं कि अभी बहुत कुछ करना है, वहीं पर्यावरण दिवस पर हर जगह चिंतन इस बात का भी शुभ संकेत देते हैं कि सबकी तमन्ना पर्यावरण को सुरक्षित रखने की है. ऐसे में एक गंभीर प्रयास की जरूरत है. केवल हर वर्ष आंकड़ों के खेल के लिए पेड़ लगाने और बाद में उसे सूखने या पशुओं के चारा के लिए खुला छोड़ने से चीजें नहीं बदलेंगी. इसके लिए शासन-प्रशासन से लेकर आम अवाम तक को सचेत होना होगा.

गंगा की कोख तक अतिक्रमित कर घर बनाने और उसमें गंदगी गिराने से लेकर उसे भरने की कोशिश करनेवालों में हमारा-आपका नाम भी अंकित है. इसे समझना होगा कि अगर भागलपुर की जमुनिया धार में शहर की सड़कों का कचरा उठा कर संबंधित विभाग फेंक रहा है, तो हम भी सवाल करने की जगह अपने घर का मलबा फेंक संतुष्ट हैं. यह चिंतनीय है.

और अंत में…

शिव खेड़ा ने कहा था कि अगर पड़ोसी पर संकट हो और आप चुप हैं तो मान लें अगला नंबर आपका ही है. इस कथन को पर्यावरण के संदर्भ में समझने की जरूरत है. जवाबदेहों की तो छोड़ दें, हमने तो खुद की जवाबदेही से भी आंख मोड़ लिया है. अगर अब भी नहीं चेते, केवल बात तक बात सिमट कर रह गयी तो आनेवाली पीढ़ी हमें माफ नहीं करेगी.

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