भागलपुर बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग से असिस्टेंट प्रोफेसर की बहाली में फर्जी अनुभव प्रमाण पत्र जमा करने का मामला सामने आया है. बताया जा रहा है कि विश्वविद्यालयों से जिन संबद्ध कॉलेज को मान्यता नहीं मिल पाया है. उन कॉलेज से भी अनुभव प्रमाण पत्र बनाकर दस्तावेजों में उपयोग किया गया है. जबकि बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग से वर्ष 2020 में सहायक प्राध्यापक द्वारा सहायक प्राध्यापक के लिए विज्ञापन प्रकाशित किया गया था. इसमें नियमावली के अनुसार शैक्षणिक योग्यता, शोध पत्र, पुरस्कार व अनुभव प्रमाण पत्र के आधार मेरिट लिस्ट तैयार किया जायेगा, लेकिन कंडिका 5.5 में वर्णित नियमावली ऐसे ही शिक्षकों का अनुभव प्रमाण पत्र मान्य होगा. जिनकी सेवा यूनिवर्सिटी कमेटी, कॉलेज सर्विस कमीशन व कालेज सलेक्शन कमेटी से संपुष्ट हो, लेकिन कंडिका 5.5 के नियमों का उल्लंघन खुलेआम हो किया जा रहा है. हालांकि, सूचना अधिकार के तहत कार्यकर्ताओं ने आयोग से पूरे मामले में जवाब मांगा था. उसमें आयोग ने कहा है कि कंडिका 5.5 का पूरी तरह पालन किया जा रहा है. बता दें कि शिक्षा विभाग व आयोग ने टीएमबीयू को पत्र भेजकर शिक्षक अभ्यर्थी का अनुभव प्रमाण पत्र जांच का निर्देश दिया था. इस बाबत विवि प्रशासन ने कमेटी बनाकर जांच शुरू कर दी है.
2007 के बाद शिक्षकों की नियुक्ति मान्य नहीं होगी
शिक्षा विभाग के विशेष सचिव सतीश चंद्र झा ने पत्र जारी कर कहा कि मान्यता प्राप्त महाविद्यालयों में शिक्षकों की अहर्ता पूर्ण नहीं है. जारी पत्र में 19-04-2007 के बाद शिक्षकों की नियुक्ति मान्य नहीं होगी. गौरतलब हो कि 2008 में जिस लिस्ट को शिक्षा विभाग भेजा गया है. उसमें हेर-फेर कर विश्वविद्यालय के अधिकारी ने 2007 से नियुक्ति दिखा कर 2017 में चयन समिति करा दिया है. विवि के एक पूर्व अधिकारी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के एक मामला गीतांजलि तिवारी बनाम स्टेट के केश में स्पष्ट है कि सेवा संपुष्ट उसी का होगा. जिनकी सेवा वेतनमान, ग्रेजुएटी व अन्य सेवाओं का लाभ नियमित रूप से मिलता हो, लेकिन संबद्धता प्राप्त महाविद्यालय में शिक्षकों की नियुक्ति एवं आधार छात्रों के उत्तीर्ण होने के आधार पर अनुदान पर होता है.
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