सबौर बीएयू सबौर कीट विज्ञान विभाग द्वारा विश्व मधुमक्खी दिवस पर समारोह का आयोजन किया गया. मधुमक्खी पालन सह शहद उत्पादन इकाई सबौर ने मधुमक्खी के प्रकृति का अनुपम विषय पर सेमिनार सह जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया. उद्घाटन निदेशक शोध बीएयू सबौर डॉ अनिल कुमार सिंह के द्वारा किया गया. विशिष्ट अतिथि बीएयू सबौर के प्राचार्य डॉ एमके सिन्हा के साथ पूर्व प्राचार्य डॉ एसएन राय एवं डॉ किरण कुमारी अध्यक्ष कीट विज्ञान विभाग सबौर के विषय विशेषज्ञ भी सेमिनार में मौजूद थे. कार्यक्रम में बिहार के विभिन्न जिलों से आए 105 मधुमक्खी पालकों ने भी सेमिनार में हिस्सा लिया. डॉ अनिल कुमार सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि मधुमक्खी पालन के क्षेत्र में किसानों के बढ़ते रुझान एवं निरंतर प्रगति शीलता की सराहना की. बताया कि शहद की गुणवत्ता की जांच एवं शुद्धता प्रमाणीकरण के लिए विवि में शीघ्र ही एनए बीएल लैब की स्थापना की जाने वाली है. जिसका सीधा लाभ मधुमक्खी पालकों को अपने उत्पादों के बाजारी करण के लिए मिलेगा. डॉ एसएन राय ने कहा कि मधुमक्खी बक्सों के प्रबंधन की वैज्ञानिक जानकारी के साथ कार्यरत प्रगतिशील मधुमक्खी पालकों, वैज्ञानिकों एवं नीति निर्माता के बीच समन्वय स्थापित कर उत्पादक संघ के गठन की आवश्यकता बतायी. डॉ किरण कुमारी ने कहा कि मधुमक्खियों के शरीर की बनावट मधुमक्खी बक्से से मिलने वाले विभिन्न प्रकार के उत्पाद शहद का निष्कासन शोध बॉटलिंग उपयोगिता एवं इसके औषधि गुण इत्यादि की जानकारी दी. डाॅ रामानुज विश्वकर्मा ने बताया कि संयुक्त राष्ट्र संघ एवं राष्ट्रीय मधुमक्खी परिषद नई दिल्ली के तत्वाधान में आज के दिन यह कार्यक्रम पूरे भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में मनाया जाता है. इस अवसर पर कुलपति डॉक्टर डीआर सिंह ने अपने भेजे में कहा कि मधुमक्खियां कृषि जैव विविधता की रीढ़ हैं, इनका संरक्षण एवं संवर्धन हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए. सेमिनार में प्रगतिशील मधुमक्खी पालक भागलपुर के संजय चौधरी, सुपौल के प्रदीप भारती एवं वैशाली के पप्पू कुमार रंजन ने मधुमक्खी के महत्व के बारे में जानकारी दी. रामस्वरूप प्रसाद सिंह, दीपलेखा घोष, सोनू कुमार झा, अभिलाष कुमार, राजेश कुमार राय आदि ने अपने अनुभव साझा किये. कार्यक्रम का संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापन वैज्ञानिक डॉ संजय कुमार शर्मा ने किया. कार्यक्रम को सफल बनाने में डॉ तारकनाथ गोस्वामी, डॉ आरडी रंजन, डॉ श्याम बाबू साह, डॉ भूपल नामदेव, डॉ के शंकर राव, डॉ अनु किरण साहू, अशोक कुमार आदि ने योगदान दिया.
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