कला संस्कृति व युवा विभाग और जिला प्रशासन की ओर से सैंडिस कंपाउंड में तीन दिवसीय मंजूषा महोत्सव के दूसरे दिन सोमवार को व्याख्यान, सांस्कृतिक कार्यक्रम व चित्रांकन का आयोजन किया गया. लोगों ने प्रदर्शित मंजूषा चित्रकला प्रदर्शनी का भी अवलोकन किया. व्याख्यान (मंजूषा संगीति) के दौरान वक्ताओं ने कहा कि मंजूषा चित्रकला में प्रयोग होना चाहिए. लेकिन कला की मूल भावना से छेड़छाड़ नहीं होना चाहिए. मंजूषा कला में अपार संभावनाएं हैं. इसे संरक्षित करने की जरूरत है. मंजूषा कलाकार के बीच में जातिवाद नहीं दिखता है, यह बहुत अच्छी बात है. इसकी अध्यक्षता वरीय उपसमाहर्ता मिथिलेश सिंह कर रहे थे. व्याख्यान में कला समीक्षक सुनील कुमार, पूर्व संयुक्त निदेशक शिवशंकर सिंह पारिजात, लोक कलाकार सुमन कुमार, कलाकार मृदुला सिंह, मंजूषा कलाकार बेबी देवी ने भाग लिया. 15 कलाकारों का आर्टिस्ट कैंप आयोजित किया गया. देवानंद पंडित मंजूषा पॉट बना रहे थे. बाकी कलाकर चित्रण कर रहे थे. मंजूषा गुरु मनोज कुमार पंडित, सविता पाठक, अमन सागर, पवन कुमार सागर, सारिका कुमारी, अनुपमा कुमारी, उलूपी झा, कुमार संभव, विजय कुमार साह, मृदुला सिंह, राजेंद्र मलाकार, अश्विनी आनंद मंजूषा कथा पर चित्र बना रहे थे.
वर्ष 2005 में हुई थी मंजूषा महोत्सव की शुरुआत
मंजूषा प्रशिक्षक मनोज पंडित ने बताया कि उन्होंने मंजूषा महोत्सव की शुरूआत वर्ष 2005 में माया तेतर लोक सेवा संस्थान व कला सागर सांस्कृतिक संगठन द्वारा की थी. इसमें शुरुआती दौर में कम कलाकार थे. बाद में इसी मंजूषा महोत्सव में 108 कलाकारों की प्रदर्शनी लगायी गयी. 11 वर्षों तक उन्होंने महोत्सव का आयोजन किया. इसके बाद 12वें वर्ष 2016 में अशोक कुमार सिन्हा के नेतृत्व में उपेंद्र महारथी शिल्प अनुसंधान द्वारा महोत्सव का आयोजन किया गया. वर्ष 2023 से जिला प्रशासन द्वारा कला संस्कृति व युवा विभाग के सहयोग से किया जा रहा है.
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