संजीव झा/ Bihar News: आज भागलपुर का स्थापना दिवस मनाने की जिला प्रशासन ने पुरजोर तैयारी की है. टाउन हॉल में विविध सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे. फोटोग्राफी प्रदर्शनी, प्रतिभा सम्मान, सांस्कृतिक कार्यक्रम, पुरस्कार वितरण का आयोजन होगा. इन 252 वर्षों में जिला ने बहुत कुछ पाया. इसके बावजूद खामियां भी हैं. फिलहाल खामियों को दरकिनार कर स्थानीय लोग स्थापना दिवस को लेकर उत्साहित हैं. वर्ष 1863 में प्रत्येक जिला में एक जिला स्तरीय स्कूल खोलने का फैसला हुआ. जिसके बाद भागलपुर जिला स्कूल की स्थापना हुई. यह स्कूल 1871 तक किराया के मकान में चलता था. प्रारंभ में जिला स्कूल वर्तमान समाहरणालय में चलता था. आइसीएस अधिकारी फ्रैंक लायल (1906-1907) ने रूचि लेकर स्कूल को अन्यत्र स्थानांतरित किया.
ऐसे मिला था पहले कलक्टर को प्रभार
चार मई, 1773 को सुपरवाइजर विलियम हारउड को निर्देश मिला कि मार्च व अप्रैल माह का खजाना सहित अन्य लेखा-जोखा का विवरण देते हुए अपनी जिम्मेदारी जेम्स बर्टन को सौंपें. इसी दिन जेम्स बर्टन ने राजमहल व भागलपुर कलक्टर का पद ग्रहण करते हुए कंपनी सरकार को सूचना दी कि उन्होंने हारउड से कलेक्ट्रियेट का चार्ज ले लिया है. राजस्व अधिकार के साथ जेम्स बर्टन को राजमहल व भागलपुर का कलक्टर बनाया गया. पश्चिम बंगाल राज्य अभिलेखागार (भवानी दत्त लेन, कॉलेज स्ट्रीट), कोलकाता से प्राप्त अभिलेखीय प्रमाण के आधार पर जेम्स बर्टन ही भागलपुर के प्रथम सिविल कलक्टर थे. इसी कारण चार मई को जिला का स्थापना दिवस घोषित किया गया है.
06.12.2018 को कमेटी ने तय किया था स्थापना दिवस
वर्ष 2018 में तत्कालीन जिलाधिकारी ने अपर समाहर्ता की अध्यक्षता में जिला स्थापना दिवस की तिथि निर्धारित करने के लिए एक कमेटी का गठन किया था. इसमें अनुमंडल पदाधिकारी को सदस्य सचिव और आयुक्त कार्यालय स्थित क्षेत्रीय अभिलेखागार के पुराभिलेखापाल सहित सुंदरवती महिला कालेज के इतिहास विभाग के शिक्षक प्रो रमन सिन्हा को समिति का सदस्य बनाया गया था. बैठक में डॉ सिन्हा ने स्थापना दिवस से संबंधित कई साक्ष्य प्रस्तुत किये. उनके द्वारा बताया गया कि चार मई 1773 को मिस्टर जेम्स बर्टन द्वारा राजमहल व भागलपुर के कलेक्टर का पद ग्रहण किया गया था. इसकी पुष्टि जिलाधिकारी कार्यालय में लगी नाम पट्टिका से भी होती है. लिहाजा समिति द्वारा चार मई को ही भागलपुर जिला का स्थापना दिवस माने जाने का सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया. यह प्रस्ताव मुख्यालय भेजा गया, जहां से जिला स्थापना दिवस चार मई तय हुआ.
भागलपुर का पहला
- पहले डीएम जेम्स बार्टन (04.05.1773 से 19.11.1779)
- पहले कमिश्नर जेपी वार्ड (1824)
- भागलपुर विवि के पहले वीसी ब्रह्मदेव प्रसाद जमुआर (12.07.1960 से 19.11.1962)
- पहले जोनल आइजी एसएम मिश्रा (04.04.1983 से 18.01.1984)
- पहले डीआइजी आरएपी हरे (जनवरी 1944 से 23.04.1945)
- पहले एसपी कर्नल एन गॉर्डन (1863 से 1864)
- पहले जिला व सत्र न्यायाधीश आइ सैंडिस (1857 से 1860)
- आइएमए के पहले प्रेसिडेंट डॉ नानी लाखा लहरी (1930)
भागलपुर में कब कौन-सी संस्था आयी
- 1883 में टीएनबी कॉलेज की स्थापना
- 1952 से टीएनबी कॉलेज में ही विधि (कानून) की पढ़ाई आरंभ हुई.
- 1941 में मारवाड़ी कॉलेज की शुरुआत हुई.
- 15 अगस्त 1949 को एसएम कॉलेज 12 छात्राओं के साथ मोक्षदा गर्ल्स स्कूल में खोला गया.
- 25 सितंबर 1950 से बिहार लैंड रिफार्म एक्ट लागू हुआ. जून 1952 से 17 जमींदारों की संपत्ति अधिग्रहित हुई.
- 1948 में नियोजन कार्यालय खोला गया.
- 1950 में पीएचईडी की स्थापना की गयी, जिसका उद्देश्य पानी की आपूर्ति करना था.
- 1957 की पहली जुलाई तक भागलपुर के जिला जज के अधीन भागलपुर सहित सहरसा जिला भी था.
- 1960 के नवंबर में श्रम विभाग द्वारा खंजरपुर में श्रम कल्याण केंद्र खोला गया.
- 1949 में नौ जून को भागलपुर में अंधा स्कूल खुला.
- 1954 में 21 अगस्त को कला केंद्र की शुरुआत हुई.
- 1954 में राज्य सरकार द्वारा टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेज की स्थापना की गयी.
- 1955 में लीला दीप नारायण इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट शुरू हुआ.
- 1956 में 20 मई को श्री यतींद्र नारायण अष्टांग आयुर्वेद कॉलेज का प्रारंभ प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद के कर कमलों से हुआ.
- 1943 में केंद्रीय उत्पाद विभाग की स्थापना की गयी. इसके अंतर्गत भागलपुर, संताल परगना, मुंगेर, सहरसा व पूर्णिया आते थे.
- 1944 में वाणिज्य कर विभाग का भागलपुर सर्किल कार्यालय का निर्माण किया गया. इसके क्षेत्राधिकार में भागलपुर सदर व बांका सबडिवीजन आते थे.
- 1957 में कलकत्ता की दो कंपनियों आइजीएन और आरएसएन ने स्टीमर सेवा बंद कर दी, जो 1828 में शुरू हुई थी. तब उत्तर-पूर्व रेलवे ने बरारी से महादेवपुर घाट तक अपनी स्टीमर सेवा प्रारंभ की.
- सबौर प्रखंड अंतर्गत बिहार कृषि कॉलेज की स्थापना 17 अगस्त, 1908 को बंगाल के तत्कालीन लेफ्टिनेंट गवर्नर सर एंड्रयू हेंडरस लेथ फ्रेजर ने की थी.
सिर्फ एक सवाल : 252 साल के जिले में क्या कमी पाते हैं ?
प्रो रमन सिन्हा, तत्कालीन प्राचार्य सह इतिहास के शिक्षक, एसएम कॉलेज
जवाब : भागलपुर में सबसे बड़ी कमी राजनीतिक व प्रशासनिक इच्छाशक्ति की है. ये दोनों एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं. अधिकारियों को भागलपुर के दर्द से कोई मतलब नहीं और राजनीतिज्ञों को सिर्फ घोषणाएं करनी हैं. विक्रमशिला विश्वविद्यालय स्थापित होगा. हवाई जहाज उड़ेगा. 10 साल से सिर्फ सुन ही रहे हैं.
आलोक अग्रवाल, उपाध्यक्ष, ईस्टर्न बिहार इंडस्ट्रीज एसोसिएशन
जवाब : हमारे जनप्रतिनिधि में इच्छाशक्ति की कमी है. कभी हम समृद्ध थे. जो घोषणा करते हैं उसे पूरा तो करें. एक अदद भोलानाथ पुल बनने की बात 20 साल से सुन रहे हैं. विक्रमशिला सेतु भी दो-चार साल का भविष्य सोच कर बना. करीब 50 साल पहले हमारे पास हवाई जहाज था. तीन मध्यम श्रेणी के उद्याेग थे.
प्रो कमल प्रसाद, वैज्ञानिक, नैनो साइंस
जवाब : अतिक्रमण के अलावा सड़क व नाला जाम की समस्या सबसे बड़ी कमी है. इसकी वजह से एयर और वाटर पॉल्यूशन से स्वास्थ्य प्रभावित हो रहे हैं. कहीं चले जाएं हवा शुद्ध नहीं मिलेगी, जबकि यह सबसे जरूरी है. प्रशासन बिल्कुल उदासीन नहीं है. लेकिन किये हुए काम के बाद शिकायत निवारण का मैकेनिज्म नहीं है.
संजीव कुमार दीपू, वरिष्ठ रंगकर्मी
जवाब : यह पौराणिक शहर है. यहां हवाई सेवा चाहिए. विकास तो धीरे-धीरे हो रहा है. कोई आयोजन करते हैं, तो राष्ट्रीय कलाकार को नहीं बुला पाते हैं. वे सीधा कहते हैं कि हवाई सेवा की सुविधा नहीं है, नहीं जा पायेंगे. कलाकारों के लिए ऑडिटोरियम नहीं है, जहां कम पैसे में आयोजन किया जा सके.
राय प्रवीर कुमार, सितार गुरु
जवाब : सबसे बड़ी दिक्कत लोगों में जागरूकता की कमी की है. सांस्कृतिक विकास की है. इससे प्रशासन को भी मतलब नहीं है. दीवारों पर चित्र बनाये जाते हैं, तो लोग उसके नीचे कचरा फेंक देते हैं. ये कैसा मानस है. भागलपुर के इतिहास से नयी पीढ़ी को जानकारी देने की जरूरत है, ताकि वे गौरव को महसूस करें.
हबीब मुर्शीद खान, सामाजिक कार्यकर्ता
जवाब : यहां जो स्कीम बनती है वह सोच कर नहीं बनती है. सैंडिस कंपाउंड चार महीने से वीरान पड़ा है. पदाधिकारी पब्लिक के बीच आते नहीं है. वे पब्लिक की बात सुनते भी हैं, तो सुन कर उड़ा देते हैं. विकास के जो काम हो रहे हैं वह कॉमर्शियल हो रहे हैं. जनप्रतिनिधियों का भी कोई वैल्यू नहीं है.
राम कुमार मिश्रा, वरिष्ठ अधिवक्ता
जवाब : यह सोया हुआ शहर है. अधिकारी, नेता, स्मार्ट सिटी कंपनी सोये हुए हैं. एक ऐसी बस चले जो कम किराये पर सेवा उपलब्ध कराये, जो टोटो के किराये के अनुरूप हो. ट्रैफिक मैनेजमेंट नहीं है यहां. कहीं भी टोटो पैसेंजर बैठाता और उतारता रहता है. लोग सही समय पर गंतव्य तक नहीं पहुंच पाते हैं.
प्रो क्षेमेंद्र कुमार सिंह, पूर्व कुलपति, टीएमबीयू
जवाब : सबसे बड़ी कमी यहां राजनीतिक दलों में समन्वय का अभाव है. इसके कारण जिले का विकास नहीं हो रहा. जो भी दल सत्ता में रहा उसमें भी समन्वय का अभाव रहा. गलाकाट प्रतिस्पर्धा रही. दूसरा छोटा-छोटा जिला आगे बढ़ गया. हमारे यहां गिरावट ही आयी. नगर निगम तक गिरावट से ही ग्रसित रहा है.