ठकराहा. प्रभु श्रीराम के कथा से शील, धैर्य, मर्यादा के साथ एक सच्चे पुत्र के कर्तव्यों के साथ मोह भंग की सीख मिलती है. यदि प्रभु के जीवन कथा को अपने जीवन में आत्मसात किया जाए तो भाई-भाई, बाप-बेटा तथा मा-बेटे के रिश्ता का सही मायने समझ में आ जाएगा. भाई-भाई के रिश्ते में दौलत कभी भी दरार पैदा नहीं कर सकता है. मां के दिलों को सुकून, पिता के वचन के पालन तथा भाई के राजयोग के लिए सहज वन को निकलने वाले प्रभु श्रीराम धन्य है. हमें इस कथा से वैसे धन, वैसे राजयोग जो परिवार व रिश्तों में बाधक हो उसका परित्याग करना चाहिए. उक्त बातें मां सोना भवानी दरबार में चल रहे शतचंडी महायज्ञ के छठे दिन शुक्रवार को कथा वाचिका मधुश्री उपाध्याय व पूजा श्री ने प्रभु श्रीराम के वनवास प्रसंग की कथा सुनाते हुए कही. उन्होंने कहा कि अयोध्या के राजा दशरथ गुरु वशिष्ठ के परामर्श से प्रभु राम के तिलक की तैयारी में जुटे थे. वहां की जनता खुशी में पटाखे फोड़ कर दीये जला रही थी. इधर मंथरा ने सबसे छोटी रानी कैकेयी के मन में विद्वेष की भावना पैदा कर दिया. कैकेयी ने राजा दशरथ से दो वरदान के बदले राम को 14 वर्ष का वनवास और भरत को अयोध्या का राजा बनाने की मांग रख दी. राजा दशरथ को कैकेयी की इच्छा जानकर काफी दुख हुआ. अंत में प्रभु श्रीराम मां सुमित्रा के आदेश पर लक्ष्मण को साथ ले जाने के लिए तैयार हुए. साथ में सीता भी वन गमन के लिए प्रस्थान की. भगवान के वन गमन की कथा सुनकर श्रोता भावुक हो गए. सभी के आंखें छलक उठे. छठे दिन कथा का शुभारंभ महायज्ञ के संयोजक कृष्ण मुरारी तिवारी, जगीराहा पंचायत के पूर्व मुखिया रमिला देवी तथा सपत्नीक विशाल तिवारी ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर किया. यज्ञ समिति द्वारा उक्त सभी को अंगवस्त्र व मां का फोटो देकर सम्मानित किया गया.
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