बीहट. कार्तिक कल्पवास महोत्सव के शुभ अवसर पर सर्वमंगला ज्ञान मंच पर महर्षि चिदात्मन वेद विज्ञान अनुसंधान न्यास के तत्वावधान में कवि कोकिल विद्यापति एवं राष्ट्रकवि दिनकर स्मृति पर्व समारोह पूर्वक आयोजित किया गया. समारोह में मुख्य अतिथि प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ सच्चिदानंद पाठक ने कहा कि मैथिल कवि कोकिल विद्यापति की कविता में लोक भाषा सर्वजन, सुलभ, सहज, निश्चल और निर्विकार होती है. बोलचाल की भाषा में दुख-सुख,हर्ष-विषाद को समाहित करने की क्षमता है.वहीं दिनकर संस्कार की भाषा और भाषा के संस्कार हैं.दिनकर राष्ट्रीय चेतना क ध्वजवाहक हैं. डॉ नरेश विकल ने कहा कि विद्यापति ने लोक भाषा को स्थापित किया है.इसके कारण ही सूर,तुलसी, भूषण आदि कवि भी स्थापित हुए हैं. तुलसीदास ने रामायण की रचना लोक भाषा में की. रोसड़ा से पधारे प्रवीण कुमार प्रभु रंजन ने कहा कि महाकवि विद्यापति रचना में जन चेतना का विचार है, तो राष्ट्रकवि दिनकर की रचना में राष्ट्रीय चेतना के विचार हैं.प्रो अवधेश झा ने कहा कि महाकवि विद्यापति और राष्ट्रकवि दिनकर के काव्य राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत हैं.महाकवि विद्यापति ने कीर्ति लता और कीर्ति पताका लिखकर भारत की रक्षा में भागीरथी प्रयास किया. वैसे ही राष्ट्रकवि दिनकर ने गुलाम भारत से पूछा, तू पूछ अवध से राम कहां वृंदा बोलो घनश्याम कहां, मगध कहां,मेरे अशोक व चंद्रगुप्त बल धाम कहां, ऐसी कविता लिखकर दिनकर ने भावनाओं का जयकार किया. डॉ जनार्दन चौधरी ने कहा कि विद्यापति मतलब मिथिला और मिथिला मतलब विद्यापति.आने वाले संतति को इस पर चिन्तन और मनन करना चाहिए.विद्यापति आम आदमी के भाषा में धार्मिकता पिरोते थे,वहीं दिनकर ने सत्ता और शासन से जुड़े होने के बावजूद भी आम आदमी और राष्ट्रीय एकता के प्रबल समर्थन में काव्य रचना की. इसके पूर्व आचार्य नारायण झा व पंडित वरुण पाठक के द्वारा स्वस्तिवाचन वाचन किया गया. तत्पश्चात योग शिक्षक कृष्ण सारस्वत जय जय भैरवी गीत गाकर लोगों का मन मोह लिया.आगत अतिथियों का न्यास के निदेशक डॉ विजय झा एवं पीठाधीश्वर के अध्यक्ष सुलभानंद के द्वारा मिथिला परंपरा के अनुसार अंग वस्त्र व मिथिला पाग से सम्मानित किया गया. संचालन सुधीर चौधरी ने किया और न्यास के उप सचिव प्रो प्रेम के द्वारा सभी आगत अतिथियों का न्यास से प्रकाशित साहित्य उपहार स्वरूप भेंट प्रदान किया गया.धन्यवाद ज्ञापन डॉ घनश्याम झा के द्वारा किया गया.
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