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भगवान श्रीकृष्ण का नाम लेने से ही जीवन से सारे दुख व कष्ट मिट जाते हैं : डॉ शास्त्री

प्रखंड के नैपुर मानशाही गांव में शतचंडी महायज्ञ के अंतिम दिन श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी.

मंसूरचक. प्रखंड के नैपुर मानशाही गांव में शतचंडी महायज्ञ के अंतिम दिन श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी. वाराणसी काशी के सुप्रसिद्ध कथावाचक डॉ पुण्डरीक शास्त्री जी महाराज का प्रवचन सुन देर शाम तक लोग झूमते रहे. डॉ शास्त्री जी महाराज ने कहा कि ऊं श्री कृष्ण:शरणम् मम: हे परमप्रिय कृष्ण, मेरा सब कुछ आपको समर्पित हैं प्रभु, मुझे अपनी शण में ले लो. उन्होंने कहा कि श्रीकृष्ण का नाम लेने से ही जीवन से सारे दुःख और कष्ट मिट जाते हैं और व्यक्ति को शांति तथा परम आनंद की प्राप्ति होती है. हिंदू दर्शनशास्त्र के अनुसार प्रत्येक देवी-देवता के साथ कुछ विशेष गुण जुड़े होते हैं. जब भी हम भगवान शिव के बारे में सोचते हैं तो हमारे मन में ध्यान में बैठे हुए भगवान शिव का शांत, सौम्य चेहरा, जिनके माथे पर अर्द्धचन्द्राकार शशि सुशोभित है, की छवि ही दिखायी देती है. जब हम भगवान राम के विषय में सोचते हैं तो उनके विशेष गुण, विनम्रता, कर्त्तव्यपरायणता तथा न्याय पराण्यता पर ही ध्यान जाता है. इसी प्रकार देवी दुर्गा की छवि देवी मां की ही तरह दिखती है. किंतु, भगवान कृष्ण का व्यक्तित्व ऐसा है. जिनके साथ अनेकों गुण जुड़े हैं. वे ऐसे देवता है, जिन्होंने अपने शैशवकाल में ही पूतना जैसी राक्षसी का वध किया तथा अपनी मां यशोदा को अपने मुंह में संपूर्ण ब्रह्मांड, समष्टि के दर्शन करा दिये. उनको एक नटखट, चंचल बालक के रूप में भी जाना जाता है, जो बचपन में माखन चुरा कर खाता था, जिसने विशाल, नाग, कालिया को हराया तथा गोपियों संग मस्ती और लीलाएं की और बाद में कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि में गीता के रूप में अर्जुन को परम ज्ञान दिया. हमारे धर्मग्रन्थों के अनुसार प्रत्येक जीव कुछ विशेष गुणों सहित, जिन्हें कलाएं कहा गया है. इस पृथ्वी पर जन्म लेता है. और अधिकतम यह संख्या 16 हो सकती है, जिनके होने पर वह जीव “संपूर्ण अवतार” हो जाता है. श्रीमद् भागवत् में कृष्ण जन्म से जुड़ी अनेक कथाएं है. ऐसी मान्यता है कि किसी देवता, किसी भगवान को उनके बालपन वाले रूप में दर्शन करना अपने आप में एक अत्यंत दुर्लभ घटना है. जिसके लिए देवता लोग भी युगों तक राह देखते है. एक लोकप्रिय कहानी के अनुसार, एक बार भगवान शिव भी योगी का रूप धारण कर गोकुल आये थे, ताकि भगवान कृष्ण को बाल रूप में देख सकें. इस पूरे दृष्टांत पर अनेक भजन गाये गये हैं. तथापि, इस घटना से जुड़ी हुई एक और कहानी भी है, जिसके विषय में चंद लोगों को ही जानकारी है. उन्होंनें कहा भगवान शिव को भगवान कृष्ण के बाल स्वरूप में दर्शन करने के लिए किन किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, ऋषि नारद ने भगवान शिव तथा भगवान कृष्ण, दोनों को आमने सामने ही पूछ लिया. नारद ऋषि यह जान कर गद-गद हो गए कि भगवान शिव व भगवान कृष्ण, दोनों ही एक दूसरे को “भगवान” कह कर संबोधित करते थे, और दोनों यह बताते थे कि वह दूसरे के भक्त हैं. उस समय ऋषि नारद ने उन दोनों से विनती की कि आखिर कौन किसका भक्त है, यह सच्चाई बतायी जाये, तब भगवान शिव ने प्रकट किया कि वे तो हमेशा से ही भगवान कृष्ण के भक्त रहे हैं और जिस जिस रूप में उन्होंने अवतार लिया है, शिव ने एक भक्त बन कर, सेवक के रूप में कृष्ण की सेवा की है. भगवान शिव ने यह भी सूचना दी कि वे तो भगवान कृष्ण के सबसे बड़े भक्त हैं. यह सुन कर भगवान कृष्ण मुस्कुराए और तुरंत प्रत्युत्तर दिया कि चूंकि भगवान शिव उनके भक्त हैं, इसलिए वे स्वत: ही उनके (शिव के) भक्त हो जाते हैं.यह वार्तालाप सुन कर नारद ऋषि की आंखों से आंसू बहने लगे और वह दोनों देवताओं के आगे नतमस्तक हो गये. कथावाचक डाक्टर पुण्डरीक शास्त्री जी ने कहा यह उन अनेक उदाहरणों में पहला अवसर था जब भगवान कृष्ण ने यह कहा है कि वे अपने भक्तों के सेवक हैं। यह उस लोकप्रिय मान्यता को भी उद्धृत करता है कि भले ही श्री कृष्ण समूचे ब्रह्मांड के लिए भगवान हों, परंतु वे सदैव अपने भक्तों की इच्छाओं का ही पालन करेंगे. जैसे भगवान शिव को “देवों के देव” माना जाता है, भगवान कृष्ण को “भक्तों के भक्त” के रूप में जाना जाता है.कथा समापन के बाद शास्त्री जी महाराज ने सभी श्रद्धालुओं को आशीर्वाद दिया. सभी श्रोताओं ने शास्त्री जी का ससम्मान विदाई दी. शास्त्री जी महाराज ने अपनी नम आंखों से सभी आयोजक मंडल, श्रोताओं के प्रति आभार व्यक्त किया.

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