संजीव पाठक, बौंसी
मंदार क्षेत्र के ऐतिहासिक लखदीपा मंदिर के खंडहर में दीपावली की पूर्व संध्या पर सैकड़ों की संख्या में दीप जलाकर दीपावली मनायी जायेगी. मालूम हो कि सेवा संकल्प संस्था बौंसी व प्रजापति कन्या कुमारी के सदस्यों सहित बाजार के गणमान्य लोगों के द्वारा दीप जलाया जायेगा. संस्था के अध्यक्ष राजीव कुमार सिंह की अगुवाई में बौंसी बाजार के कई व्यवसायी, वार्ड पार्षद सहित अन्य लोग लखदीपा मंदिर के ताखों पर तिल तेल और सरसों तेल के दीये जलाने का कार्य करेंगे. जानकारी हो कि पिछले 5 वर्षों से मंदार से जुड़े आस्थावान श्रद्धालु लखदीपा में पहुंच कर दिवाली मनाते हैं.विश्व का अनोखा इकलौता मंदिर जहां जलते थे लाखों दीये
धार्मिक ऐतिहासिक और पौराणिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण समुद्र मंथन की कहानी से जुड़े मंदराचल के गर्भ में कई अवशेष अभी पड़े हुए हैं. उन्हीं भग्नावशेष में लखदीपा मंदिर का भी अवशेष है. जहां दीपावली के अवसर पर लाखों दीये जलाने की परंपरा थी. क्षेत्र के इतिहासकार उदयेश रवि की माने तो यहां कभी एक घर से एक दिया जलाने का नियम था. बौंसी तब वालिशा नगरी थी. इसी बौंसी के लखदीपा मंदिर में दीप जलाने की परंपरा को जनमानस के द्वारा जीवंत करने के उद्देश्य से दीप जलाने की शुरुआत की गयी थी. हालांकि अब इसके भग्नावशेष ही बचे हैं.लाखों दीयों जलाने की परंपरा
मान्यता है कि दीपावली पर हर घर से एक दीपक लाकर यहां एक लाख दीपक जलाये जाते थे, जो इस मंदिर को अद्वितीय बनाता था. इतिहासकारों के अनुसार, इस मंदिर की बनावट दक्षिण भारतीय सभ्यता से प्रभावित थी, जो इसे अन्य मंदिरों से अलग करती है. इसे लगभग 1500 ई. में किसी दक्षिण भारतीय चोल नरेश द्वारा बनवाया गया था, जिन्होंने पापहरणी सरोवर में स्नान कर रोग-मुक्त होने की खुशी में यह मंदिर बनवाया था. आज इस मंदिर के टूटे-फूटे अवशेष को सजाने और संवारने की जरूरत है. नहीं तो मंदार का यह ऐतिहासिक स्थल अतीत के पन्नों में गुम हो जायेगा. इतिहासकारों की माने तो काला पहाड़ ने इस मंदिर को तहस-नहस कर दिया, जिससे यह गौरवशाली परंपरा समाप्त हो गयी थी.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

