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बहन कर रही भाई की रक्षा की कामना

उल्लास. सोहराय की मची धूम, थिरक रहा आदिवासी समाज कटोरिया व चांदन प्रखंड के आदिवासी बाहुल गांवों में सोहराय पर्व मनाया जा रहा है. क्षेत्रीय प्रधान के निर्णय के अनुसार तीन दिवसीय अनुष्ठान वाला यह पर्व कहीं आठ, तो कहीं नौ जनवरी से शुरू हुआ है. कटोरिया : सोहराय पर्व के पहले दिन आदिवासी समाज […]

उल्लास. सोहराय की मची धूम, थिरक रहा आदिवासी समाज

कटोरिया व चांदन प्रखंड के आदिवासी बाहुल गांवों में सोहराय पर्व मनाया जा रहा है. क्षेत्रीय प्रधान के निर्णय के अनुसार तीन दिवसीय अनुष्ठान वाला यह पर्व कहीं आठ, तो कहीं नौ जनवरी से शुरू हुआ है.
कटोरिया : सोहराय पर्व के पहले दिन आदिवासी समाज के सभी स्त्री-पुरूष व बच्चे नदी में स्नान कर आदिवासी गीत ‘तीही दोलेय उम का ना, दुल-दुली पुखुरी रे…’ गाते हुए जहार थान में विधि-विधान के साथ पूजा कर मुर्गी की बलि देते हैं. उस प्रसाद को जंगल में ही पूजा-स्थल पर सिर्फ पुरूष ग्रहण करते हैं. पर्व का दूसरा दिन होता है ‘गोहाल-पूजा’. इस दिन रिश्ते की सभी बहनें व भगिना-भगिनी आमंत्रण पर पहुंचते हैं. घर में रखे कृषि यंत्र जुआठ की सफाई नदी में करके लाया जाता है. उसके बाद सूअर व मुर्गी की बलि दी जाती है. इस प्रसाद का वितरण पड़ोसियों के बीच भी किया जाता है.
होती है प्रतियोगिता : पर्व का अंतिम और तीसरा दिन कहलाता है ‘बरध-खुट्टा’. यह दिन प्रतियोगिता और मनोरंजन का होता है. इसमें घर के बाहर दरवाजे पर बड़ा-सा गड्ढा खोद कर बांस का खूंटा खड़ा किया जाता है. गड्ढे की खाली जगह को मिट्टी की जगह लगभग डेढ़ मन धान से भर कर खूंटे में एक बैल बांध दिया जाता है. खूंटे के उपरी सिरे में नकदी व पकवान की पोटली बांध कर लटकाया जाता है. फिर खूंटे में लटके ईनाम को जीतने के लिए प्रतियोगिता शुरू हो जाती है. वहीं बगल में युवक-युवतियों की टोली घूम-घूम कर नगाड़ा, मानर व झाल बजाते हुए आदिवासी गीत ‘दईना-दईना मरांग दे, दला से दला ओडोंग मेय…’ गाते हुए खूंटे का चक्कर भी लगाती है. नगाड़ा-झाल की शोर से बंधा बैल मारने के लिए दौड़ता है. जबकि गांव के युवक नकदी व पकवान के लिए मौका देख खूंटे पर चढ़ने का प्रयास करते हैं. यदि युवक ईनाम नहीं जीत पाते हैं, तो ईनाम के साथ-साथ गड्ढे में भरा धान आमंत्रित दामाद को दे दिया जाता है.
कहते हैं ग्रामीण : जनकपुर गांव के गणेश टुडु, सुरेंद्र टुडु, टुघरो के जागेश्वर मरांडी, पपरेवा कला की सुषमा हेंब्रम, बुढ़ीघाट के किसुन टुडु आदि ने बताया कि पर्व के अनुष्ठान के दौरान बहनें साजिश और विपत्तियों से अपने भाई की रक्षा करने की मांग अपने देवता से करते हैं. सोहराय पर्व को लेकर बंगालगढ़, आरपत्थर, जनकपुर, गौरीपुर, बाबूकुरा, मोदीकुरा, जतकूटवा, सलैया, तेतरिया, लकरामा, मोचनमा, पलनियां, नैयाडीह, कचनार, कैथावरण, लेटवा, टुघरो, लौंगांय, सिमसिमकुरा आदि गांवों में जश्न का माहौल है.

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