बांका : कहने को राज्य में प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त और असरदार बनाने के लिए नित नई यी योजनाओं का शुभारंभ किया जा रहा है. स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति बढ़ाने और उन्हें कायम रखने के लिए भी अनेक कार्यक्रम चलाये जा रहे है. इन कार्यक्रमों के लिए करोड़ों का बजट पास है. लेकिन सोचा जा सकता है कि जब गुरुकुलों में गुरु ही नहीं रहेंगे, फिर शिष्यों के शैक्षिक भविष्य का क्या होगा. लगभग यही स्थिति बांका जिले की प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था का है.
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शिक्षकों के आधे से अधिक पद हैं रिक्त
बांका : कहने को राज्य में प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त और असरदार बनाने के लिए नित नई यी योजनाओं का शुभारंभ किया जा रहा है. स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति बढ़ाने और उन्हें कायम रखने के लिए भी अनेक कार्यक्रम चलाये जा रहे है. इन कार्यक्रमों के लिए करोड़ों का बजट पास है. लेकिन […]
बांका जिले के 758 प्राथमिक विद्यालयों में से ज्यादातर में प्रधानाध्यापक नहीं है. स्नातक प्रशिक्षित कला और विज्ञान के शिक्षकों की भी यही स्थिति है. बच्चे स्कूल तो आते हैं लेकिन शिक्षकों के अभाव में उन्हें खेल कर समय बिताना पड़ता है. उन्हें खेलने के लिए भी समय मिलता है तब, जब उन्हें मध्याह्न भोजन से फुरसत मिलती है.
रही सही कसर नेताओं और महापुरूषों की जयंतियों और पुण्यतिथियों पर निकलने वाली प्रभातफेरियां पूरी कर देती है. ऐसे में उनकी तालीम का क्या, इसे देखने वाला कोई नहीं. यही वजह है कि लोग अपने बच्चों के बेहतर भविष्य की गरज से सरकारी स्कूलों की बजाय निजी शिक्षण संस्थानों की ओर तेजी से मुखातिब हो रहे है.
खास बात यह भी है कि प्राथमिक विद्यालयों में जो शिक्षक है, उनका भी ज्यादा वक्त गैर शिक्षण कार्यों में ही बीतता है. यह उनकी मजबूरी होती है. प्रशासनिक स्तर पर उन्हें कभी जनगणना तो कभी पशुगणना में लगा दिया जाता है. यह तो एक उदाहरण है. ऐसे काम अनेक हैं जो उन्हें करने पड़ते हैं. शिक्षकों का बाकी समय बैठकों और प्रशिक्षणों में बीतता है.
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