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51 सद्धिपीठों में विराटपुर मां चंडी मंदिर भी है शामिल

51 सिद्धपीठों में विराटपुर मां चंडी मंदिर भी है शामिल मां छिन्नमस्तिका की प्रतिमा मानी जाती है पालयुगीन चिरंजीव, सोनवर्षाराज. संपूर्ण भारत के प्रसिद्ध 51 सिद्धपीठों में क्षेत्र के विराटपुर स्थित मां चंडी मंदिर भी एक है. जिसका न केवल धार्मिक महत्व भी है. विराटपुर स्थित मां छिन्नमस्तिका की प्रतिमा पालयुगीन मानी जाती है. जिसका […]

51 सिद्धपीठों में विराटपुर मां चंडी मंदिर भी है शामिल मां छिन्नमस्तिका की प्रतिमा मानी जाती है पालयुगीन चिरंजीव, सोनवर्षाराज. संपूर्ण भारत के प्रसिद्ध 51 सिद्धपीठों में क्षेत्र के विराटपुर स्थित मां चंडी मंदिर भी एक है. जिसका न केवल धार्मिक महत्व भी है. विराटपुर स्थित मां छिन्नमस्तिका की प्रतिमा पालयुगीन मानी जाती है. जिसका निर्माण महाभारत कालीन राजा विराट द्वारा वर्ष 1870 के समय करवाया गया था. यहां दशहरा के 10 दिन विभिन्न जिले से आने वाले लोगों की भीड़ पूजा अर्चना हेतु लगी रहती है.संतान की होती है प्राप्ति मंदिर से सटे तालाब को जीवछ कुंड कहा जाता है. यहां यह मान्यता है कि जो नि:संतान स्त्री इस कुंड में स्नान कर मंदिर के पुजारी से आदेश पुष्प लेकर मां छिन्नमस्तिका का पूजा अर्चना करती हैं, उसकी संतान की मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है. जनश्रुति के अनुसार मंदिर की मूर्तियां राजा विराट के कुल गुरु महर्षि वशिष्ठ द्वारा प्रतिष्ठित की गयी थी. परंतु इतिहास के अवलोकन से यह निश्चित हो जाता है कि उत्खनन से प्राप्त काले व चमकदार पत्थर की ये मूर्तियां पालयुगीन सदी की है. अधिकांश पाल शासक बौद्ध धर्म के अनुयायी थे. यही वजह है कि मंदिर में कुछ बचे इन मूर्तियों पर तिब्बत तथा चीनी कलाओं का स्पष्ट प्रभाव नजर आता है. लंबे समय में मंदिर के गर्भ में समा जाने के उपरांत जलसीमा गांव निवासी राजा प्राण सिंह की दूसरी पत्नी चमेली कुंवरी के अनुरोध पर लोक देवता लक्ष्मीनाथ गोसाईं ने तीन दिनों तक मां चंडी के प्रतिमा के समक्ष निर्माण की पुर्णाहुति दी. इसके बाद मंदिर का नये ढंग से निर्माण कार्य करवाया गया. सती के अंग की हुई थी प्राप्तिविशाल मंदिर की ऊंचाई 52 हाथ है. लगभग 20 हाथ की ऊंचाई पर मंदिर की चारोंं ओर आठ स्तूप बने हुए हैं जो नवदुर्गा का प्रतीक है. तंत्र शास्त्र के अनुसार, माता सती की आंख महिषी की आदि शक्ति मां तारा के रूप में, हाथ धमहारा स्थित मां कात्यायनी तथा गर्दन से नीचे का भाग विराटपुर की मां चंडी के रूप में अवस्थित है. मंदिर स्थित प्रतिमा के बगल में एक छोटा कुंड है जिसमें कितना भी जल चढ़ाया जाये उसका जल स्तर एक समान बना रहता है. जल कुंड की यह विशेषता है कि मां छिन्नमस्ता को चढ़ाया गया जल गुप्त मार्ग से महिषी की मां तारा एवं धमहारा की मां कात्यायनी तक पहुंच जाता है. इस तरह यहां पूजन करने से तीनों स्थानों की भगवती के पूजन का फल भक्तजनों को प्राप्त हो जाता है. मंदिर के गर्भगृह में मां छिन्नमस्ता की प्रतिमा के अतिरिक्त मां गहिल, महिषासुर मर्दिनी तथा अष्टभुजी दुर्गा की प्रतिमा है. जो खंडित अवस्था में है. मंदिर के द्वार के सम्मुख मां छिन्नमस्तिका का चबूतरानुमा सिंहासन काले पत्थर का बना हुआ है. जिसके ऊपर बीसा यंत्र अंकित है. इसके ऊपर एक लकड़ी की चौकी रखी हुई है. मां छिन्नमस्ता की पूजा के उपरांत इसी सिंहासन की पूजा की जाती है. फोटो- चंडी 15- मां चंडी का विशाल मंदिर फोटो- चंडी 16- मां चंडी की प्रतिमा

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